उत्तराखंड, कुशल कोठियाल। Legislative assembly elections in 2022 उत्तराखंड गठन के बाद से सबसे बुरे हालात से गुजर रही कांग्रेस आगामी विधानसभा चुनाव के लिए अभी से कमर कस रही है। प्रदेश के आला नेता जगहजगह भरी दोपहर में लालटेन जुलूस निकाल रहे हैं। संदेश यह है कि जिस विकास का प्रदेश की भाजपा सरकार ढोल पीट रही है वह तो लालटेन से खोज कर भी नहीं मिल रहा है। उधर भाजपाइयों का कहना है कि कांग्रेस बुढ़ापे के दौर में है, दृष्टिदोष होना स्वाभाविक है।

कांग्रेस के ही एक और दिग्गज नेता मंत्री प्रसाद नैथानी राज्य में देव याचना यात्रा निकाल रहे हैं। उद्देश्य धार्मिक नहीं, बल्कि घोषित रूप से राजनीतिक है। वह देव यात्रा निकाल कर भाजपा सरकार को कोस रहे हैं। साथ ही उत्तराखंड के देवी-देवताओं से सरकार के पतन की याचना कर रहे हैं। इस पर भाजपाई कांग्रेस पर धार्मिक भावनाओं का गलत इस्तेमाल करने का आरोप लगा रहे हैं। वैसे यह आरोप पारंपरिक तौर पर कांग्रेस वाले भाजपा पर लगाते थे, लेकिन अब कांग्रेस भाजपा को यह मौका दे रही है।

हालांकि विधानसभा चुनाव को अभी दो साल बचे हैं, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस के बड़े एवं बुजुर्ग नेता हरीश रावत अभी से चारा फेंकने लगे हैं। दिल्ली में केजरीवाल की सफलता का राज जानने के बाद से हरदा ने अभी से भारी-भरकम चुनावी चारा जनता के बीच फेंक दिया है। कांग्रेस की सरकार बनी तो प्रदेश में बिजली, पानी फ्री। क्या बात है, हरदा के इस पासे से तो कांग्रेसी भी सकते में हैं। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष प्रीमत सिंह कह रहे हैं, पहले सरकार तो आने दो फिर बताएंगे क्या-क्या फ्री हो सकता है।

कार्यकारिणी का फर्क : आजकल राजनीतिक गलियारों में भाजपा की प्रदेश कार्यकारिणी चर्चा में है। जहां विधानसभा में 11 सदस्य वाली कांग्रेस की प्रदेश कार्यकारिणी में 280 सदस्य हैं वहीं 57 विधायकों वाली भाजपा ने केवल 28 सदस्यीय कार्यकारिणी घोषित की है। छोटी एवं सक्रिय कार्यकारिणी बनाने का दावा तो कांग्रेस ने किया था, लेकिन बना डाला भाजपा ने। अब भाजपाई चुटकी लेते कह रहे हैं कि कांग्रेस केवल कहती है एवं भाजपा कर डालती है। गौरतलब है कि कांग्रेस को पिछले माह घोषित कार्यकारिणी बनाने में वर्षों लगे।

सरकार फिर चली गैरसैंण : प्रदेश सरकार विधानसभा का बजट सत्र इस बार गैरसैंण में करा रही है। तीन मार्च से शुरू हो रहे इस सत्र के लिए सारा सरकारी अमला बजटरी लाव-लश्कर के साथ गैरसैंण पहुंच गया है। करोड़ों रुपये की लागत से गैरसैंण में बने विधानसभा भवन की प्रासंगिकता को दिखाने के लिए साल भर में सरकारें एक सत्र वहां पर करती हैं, भले तीन दिनों का ही क्यों न हो। विशुद्ध रूप से पहाड़ की भावनाओं से खेलने के लिए करोड़ों खर्च कर यह आयोजन किया जाता रहा है। सांकेतिक महत्व के इस आयोजन पर होने वाले खर्च को अगर पहाड़ के गांवों पर लगा दिया जाता तो अब तक कई गांवों की शक्ल ही बदल गई होती।

राजधानी पर पिछले लगभग बीस सालों से खेले जा रहे इस सियासी खेल के चलते अभी तक छोटे से उत्तराखंड राज्य को स्थायी राजधानी नहीं मिल पाई। 70 सदस्यीय विधानसभा में 57 विधायकों का ऐतिहासिक बहुमत होने के बावजूद भाजपा सरकार भी इस पर कोई फैसला नहीं ले पा रही है। इस विषय पर जस्टिस दीक्षित आयोग ने कई एक्सटेंशन के बाद जो रिपोर्ट सरकार को सौंपी उसे देखने की हिम्मत भी कांग्रेस एवं भाजपा की सरकारें नहीं जुटा पाईं। सवाल जब वोटों की खातिर जनता को भरमाने का हो तो दोनों दल एक ही साथ खड़े नजर आते हैं।

फॉरेस्ट गार्ड भर्ती परीक्षा में घपला : उत्तराखंड वन महकमे में वन आरक्षी पदों पर भर्ती परीक्षा में घपले का प्रकरण एक बार फिर से सुर्खियों में है। भर्ती परीक्षा में फर्जीवाड़े की परतें धीरे-धीरे खुल रही हैं और दो सरकारी कार्मिकों की गिरफ्तारी भी हो चुकी है। ऐसे में परीक्षा की निष्पक्षता पर सवाल उठने लगे हैं और साथ ही जोर-शोर से उठने लगी है इस परीक्षा को रद करने की मांग। हालांकि अभी सरकार ने इस बारे में फैसला नहीं लिया है, लेकिन परीक्षा की शुचिता को लेकर उस पर भी सवाल उठ रहे हैं। बता दें कि यह पहला मौका नहीं है, जब वन आरक्षी पदों पर भर्ती का मसला विवादों में हो। पूर्व में भी इन पदों पर भर्ती के प्रयास हुए, लेकिन तब इसके मानकों को लेकर युवाओं में उबाल रहा था। नतीजतन मानकों के शिथिलीकरण के नाम पर पूर्व में यह परीक्षा रद की गई थी। अब नए मानकों के आधार पर भर्ती परीक्षा हुई तो दोबारा विवादों में आ गई।

[स्थानीय संपादक, उत्तराखंड]