[ प्रदीप सिंह ]: सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई ने अपने लेख ‘सदाचार का ताबीज’ में लिखा है, ‘एक राज्य में हल्ला हो गया कि भ्रष्टाचार बहुत फैल गया है। राजा ने विशेषज्ञों को बुलवाया और जांच करने को कहा। जांच पूरी हुई तो राजा ने कहा दिखाओ भ्रष्टाचार कहां है। विशेषज्ञों ने कहा कि वह स्थूल नहीं है, सूक्ष्म है, अगोचर है, पर सर्वत्र व्याप्त है। राजा ने कहा कि ये गुण तो ईश्वर के हैं। तो क्या भ्रष्टाचार ईश्वर हो गया। विशेषज्ञों ने कहा, ‘हां महाराज, अब भ्रष्टाचार ईश्वर हो गया है।’ पिछले चार-पांच दशकों से तो हम लोग भी मानने लगे थे कि भ्रष्टाचार भगवान हो गया है। उसे महसूस किया जा सकता है, पकड़ा नहीं जा सकता।

चिदंबरम पर भ्रष्टाचार का आरोप

हम भ्रष्टाचारी की विराटता देखने के इतने आदी हो गए कि हमें वह दिखता ही नहीं था। निराशा ऐसी थी कि भ्रष्टाचार के साथ जीने को नियति मान बैठे। पूर्व केंद्रीय गृह और वित्त मंत्री को सीबीआइ की ओर से हिरासत में लिए जाने से जैसे सपने से जगा दिया। सूक्ष्म भी दिख सकता है यदि देखने और दिखाने वाले में इच्छाशक्ति हो। चिदंबरम पर भ्रष्टाचार का आरोप भगवान तो नहीं बन पाया, पर संस्था जरूर बन गया। दिल्ली हाईकोर्ट के जज के मुताबिक चिदंबरम आइएनएक्स मीडिया घोटाले के मुख्य साजिशकर्ता हैं। जज ने यह बात सीबीआइ और प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी द्वारा पेश सुबूतों और दस्तावेजों के आधार पर कही।

कानून की नजर में सब बराबर

दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले से पिछले कई दशकों में बनी इस आम धारणा को भी तोड़ा कि देश के कानून की नजर में सब बराबर नहीं हैं। यह भी कि व्यक्ति के रसूख से तय होता है कि कानून के लंबे हाथ की पहुंच उस तक है या नहीं? हाईकोर्ट ने कहा कि सांसद या बड़ा वकील होने से आप कानून से बच नहीं सकते। चिदंबरम और उनकी कांग्रेस पार्टी कई साल से कह रही थी और आज भी कह रही है कि यह सब राजनीतिक बदले की भावना से की गई कार्रवाई है। सो अदालत में भी यही कहा गया, पर हाईकोर्ट ने कहा कि इसे राजनीतिक बदले की कार्रवाई कहना हास्यास्पद है। हाईकोर्ट से अग्रिम जमानत की अर्जी खारिज होने पर कांग्रेस के वकील नेताओं की फौज सुप्रीम कोर्ट दौड़ी।

सुप्रीम कोर्ट ने नहीं सुनी चिदंबरम की पुकार

चिदंबरम की हालत देखकर महाकवि भूषण की यह कविता याद आती है-तीन बेर खाती थीं, वे तीन बेर खाती हैं। यानी जो दिन में तीन बार खाती थीं अब तीन बेर पर गुजारा कर रही हैं। विडंबना देखिए जिन कांग्रेस नेताओं/वकीलों की गुहार पर सुप्रीम कोर्ट के ताले आधी रात को खुल जाते थे उनकी पुकार पर शाम साढ़े चार बजे भी सुनवाई नहीं हुई। सुप्रीम कोर्ट से निराशा हाथ लगने के बाद वह चिदंबरम जो नरेंद्र मोदी सरकार से रोज पूछते थे कि माल्या, नीरव मोदी और मेहुल चोकसी कैसे भागा, वही शाम पांच बजे के बाद खुद लापता हो गए। सीबीआइ और ईडी की टीम उनके आवास पर उनका इंतजार करती रही। रात में घर के बाहर नोटिस चिपकाया गया। सुबह मामला सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच के सामने गया तो उन्होंने कह दिया कि मुख्य न्यायाधीश इसे सुनेंगे। इसके बाद भी चिदंबरम कई घंटे लापता रहे।

प्रियंका भी चिदंबरम के समर्थन में बोलीं

राजनीतिक भ्रष्टाचार का पर्याय बन चुकी कांग्रेस पार्टी से शायद कुछ लोगो को उम्मीद रही होगी कि अपनी इस छवि को बदलने के लिए पार्टी भ्रष्टाचार के आरोपी नेताओं से दूरी बनाकर रखेगी, मगर पार्टी के वरिष्ठ नेता ही नहीं, बल्कि नेहरू-गांधी परिवार की नई नेता प्रियंका गांधी वाड्रा भी चिदंबरम के समर्थन में खुलकर आ गई हैं। इतना ही नहीं, चिदंबरम को पार्टी दफ्तर में प्रेस कांफ्रेंस करने की सुविधा भी दी गई। इसका क्या मतलब समझा जाए कि पूरे कुएं में भांग पड़ी हुई है या पार्टी और परिवार एक संदेश दे रहा है कि भ्रष्टाचार के आरोप में फंसे नेता उसकी थाती हैं अथवा यह निकट भविष्य के आसन्न खतरे को देखते हुए अपने लिए समर्थन बनाए रखने की कोशिश है? ध्यान रहे कि नेशनल हेराल्ड मामले में अन्य लोगों के साथ सोनिया और राहुल भी जमानत पर हैं।

चिदंबरम फंसे कानूनी शिकंजे में

चिदंबरम के कानूनी शिकंजे में फंसने से आम लोगों की सोच में बड़ा बदलाव आएगा। एक धारणा जो मन में घर कर गई थी कि पांच सौ रुपये की रिश्वत लेने वाले सिपाही जैसी छोटी मछलियां तो पकड़ी जाएंगी, लेकिन बड़े मगरमच्छों पर कभी कोई हाथ नहीं डालेगा। आम आदमी ही नहीं सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने भी हाल में कहा कि राजनीतिक रसूख वालों के खिलाफ सीबीआइ की जांच प्रभावी नहीं होती। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह ग्रंथि कितने गहरे पैठी हुई है।

कानून का डर होना ही चाहिए

वैसे बदलाव भारतीय जनतंत्र के उन ‘सुल्तानों’ की सोच में भी आएगा जो मानकर चलते थे कि उनके ऊपर हाथ डालने की किसी में हिम्मत नहीं है। उन्हें यकीन था कि सत्ता में कोई हो, सिस्टम उनका दास है। उनका यह यकीन मुगालता साबित हो रहा है। चिदंबरम और कांग्रेस नेताओं की बदहवासी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के लिए अच्छी है। कानून का डर होना ही चाहिए। केवल आम आदमी को ही कानून से क्यों डरना चाहिए। रसूख वालों का यह डर अच्छा है। इससे गरीब आदमी को सुकून मिलेगा कि कानून की नजर में सचमुच सब बराबर हैं।

चिदंबरम का बचाव

कांग्रेस ने अतीत में बहुत सी गलतियां की हैं, पर संगठन मजबूत स्थिति में हो तो गलती का नुकसान अपेक्षाकृत कम होता है। भ्रष्टाचार के मामले में चिदंबरम का बचाव करने का फैसला करने से पहले पार्टी कार्यसमिति की बैठक नहीं हुई। मां सोनिया और बेटे राहुल की बैठक में तय हुआ कि चिदंबरम का बचाव करना है और पूरी पार्टी बचाव में कूद पड़ी। ऐसा लगा जैसे चिदंबरम भ्रष्टाचार के आरोपी न होकर स्वतंत्रता संग्राम के सिपाही हों।

‘करम गति टारै नाहीं टरी...

सवाल है कि पार्टी के युवा नेता जिनका अभी लंबा राजनीतिक जीवन है, वे भ्रष्टाचार के इस दाग को क्यों ढोएंगे? जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने और राज्य के पुनर्गठन के मुद्दे पर पार्टी के अंदर से निकली बगावत की आग अभी ठंडी भी नहीं पड़ी थी कि पार्टी ने एक और आत्मघाती फैसला ले लिया। इस फैसले से कांग्रेस आम लोगों को बता रही है कि सत्ता में रहते हुए उसके नेताओं पर भ्रष्टाचार के जो आरोप लगे उसकी वास्तविकता को नजरअंदाज कर, वह बचाव करेगी। यदि चिदंबरम ने कुछ गलत नहीं किया तो फिर डर कैसा और गलत किया है तो बचाव क्यों? कहते हैं इस जीवन का किया-अनकिया सब यहीं रहता है। कांग्रेस और चिदंबरम दोनों, जीवन की इस सच्चाई से भाग रहे हैं। ऐसे ही लोगों के लिए कबीर दास बहुत पहले लिख गए हैं-‘करम गति टारै नाहीं टरी..।’

( लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं )