[ कुलदीप नैयर ]: पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को सजा सुना दी। इस फैसले के बारे में आम राय है कि यह काफी कठोर है। उनके साथ उनकी बेटी मरयम नवाज को भी सजा सुनाई गई है। इस फैसले के वक्त नवाज शरीफ बेटी मरयम के संग लंदन में इलाज करा रहीं अपनी पत्नी के पास थे। वह लंदन से जैसे ही पाकिस्तान लौटे उन्हें और उनकी बेटी को विमान से बाहर आने के पहले ही गिरफ्तार कर लिया गया। फिलहाल दोनों जेल में हैैं। ऐसा लगता है कि एक बार फिर गैर-फौजी शासकों और फौज के बीच टकराव बढ़ रहा है। शायद फौज को यह पसंद नहीं आया कि लोगों ने मजबूती से अपनी बात रखनी शुरू कर दी है।

नवाज शरीफ खाकी वर्दी का समर्थन करने वालों के हाथों का औजार बनना नहीं चाहते थे। यह मानने के पर्याप्त कारण हैैं कि पाकिस्तानी फौज को यह आभास हो गया था कि यदि नवाज शरीफ की सत्ता में वापसी हुई तो उसके प्रभुत्व के लिए चुनौती पैदा होगी। मैंने नवाज शरीफ से लंदन के बीचोबीच स्थित उनके आलीशान मकान में मुलाकात की थी। उनकी अमीरी से मुझे अचरज नहीं हुआ। भारतीय उपमहाद्वीप के कई नेताओं के फ्लैट इंग्लैंड में हैं।

अंग्रेजों के शासन ने उनके दिल में यह बात बैठा दी है कि लंदन का मतलब विलासिता और ताकत है। नवाज शरीफ के पास इतना पैसा है कि वह जुर्माने से भी अधिक रकम आसानी से चुका सकते हैैं। नवाज शरीफ ने मुझे नाश्ते पर बुलाया था, लेकिन मेज पर मांसाहार के बेहतरीन पकवान थे। पाकिस्तान और सऊदी अरब में उनके परिवार के कई कारखाने हैं। इसलिए मुझे इससे कोई अचरज नहीं हुआ कि उनकी पत्नी और बेटी के एक-एक फ्लैट लंदन में हैं। जहां तक नवाज शरीफ के खिलाफ लगे आरोपों की बात है, उनकी सच्चाई का पता लगाना मुश्किल है।

जब आखिरी शब्द फौज की ओर से ही आने हैं तो आरोप सही नहीं भी हो सकते। बेशक पाकिस्तान में न्यायपालिका स्वतंत्र है, लेकिन उसे ऐसे हालात से बच कर रहना पड़ता है जो फौज को चुनौती की तरह लगे। माना जाता है कि दबाव और धमकियों के बावजूद दो जजों ने जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी की सजा दिए जाने का विरोध किया था। बाद में उन्होंने चुपके से देश छोड़ दिया था, क्योंकि उन्हें अपनी हत्या का डर था।

नवाज शरीफ अपने खिलाफ आए फैसले से भागना नहीं चाहते थे। उन्होंने कहा भी था कि वह पाकिस्तान वापस जाएंगे और सजा का सामना करेंगे। लोकप्रिय बने रहने के लिए नेताओं को ऐसी कीमत चुकानी पड़ती है। नवाज शरीफ पाकिस्तान नहीं लौटते तो लोगों को लगता कि वह अपने विरोध में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले की परवाह नहीं कर रहे।

एक समय था जब देश चलाने में भूमिका मांग रही फौज के हमलों से अपनी लोकतांत्रिक व्यवस्था की रक्षा के लिए पाकिस्तान के लोग सड़कों पर उतर आए थे। आज वे ही लोग यह चाहते हैं कि लोकतांत्रिक ढांचे के बचे-खुचे हिस्से के लिए फौज लोगों के बचाव में आए। इसे लोगों ने प्रत्यक्ष तौर पर तब देखा भी था जब प्रधानमंत्री पद पर रहते समय नवाज शरीफ सहयोग के आग्रह के साथ सेनाध्यक्ष जनरल राहिल शरीफ से मिले थे। नवाज शरीफ ने सोचा था कि एक गैर-फौजी प्रधानमंत्री के रूप में फौजी सहायता मांग कर वह आसानी से बच निकल सकते हैं, लेकिन फौज ने एक पे्रस बयान जारी कर कहा कि प्रधानमंत्री ने जो आग्रह किया था उसे फौज ने ठुकरा दिया गया है। फौज की दलील थी कि एक लोकतांत्रिक ढांचे में फौज की परंपरागत भूमिका देश की रक्षा की है, उसे चलाने की नहीं।

वास्तव में पद से हटाए गए नवाज शरीफ ने खुद ही मुसीबत मोल ली है। उनके कुशासन ने लोगों को उनसे दूर कर दिया है। नवाज शरीफ चाहते थे कि उनके साथ पंजाब के मुख्यमंत्री शहबाज शरीफ भी पद छोड़ेें और मध्यावधि चुनाव कराए जाएं। शहबाज शरीफ उनके भाई हैैं। हालांकि नवाज शरीफ ने अपने समर्थन का प्रस्ताव संसद से पारित करा लिया, लेकिन इससे हालत सुधारने में कोई मदद नहीं मिली। तहरीक-ए-इंसाफ के इमरान खान और पाकिस्तान आवामी तहरीक के कादरी उनके विरोध में हैैं।

नवाज शरीफ का विरोध करने वाले कुछ नेताओं ने मध्यावधि चुनाव की मांग की थी। उनका कहना था कि लोग फिर से तय करें कि वे नवाज शरीफ को देश चलाने देना चाहते हैं या किसी और को? अधिक दिन नहीं हुए जब फौज ने नवाज शरीफ को प्रधानमंत्री पद से नीचे उतारा था। उन्होंने यह नहीं समझा कि जब भी जरूरत होगी, फौज तख्ता पलटने से हिचकेगी नहीं। यही वजह है कि नवाज शरीफ ने अपने बयानों में संसदीय लोकतंत्र का जिक्र किया ताकि इस पर जोर दिया जा सके कि सेना की भूमिका ज्यादा से ज्यादा, अस्थाई होगी। मैं बंटवारे के बाद पहली बार नवाज शरीफ से दिल्ली में मिला था जब वह पंजाब के मुख्यमंत्री थे। उन्होंने कहा कि मैं सियालकोट से हूं। उनके मुताबिक मेरी पंजाबी में एक विशेष किस्म का जायका है-एक खास उच्चारण है जो सिर्फ सियालकोट के रहने वालों की बोली में होता है।

लाहौर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नवाज शरीफ से मुलाकात से एक नए अध्याय की शुरुआत होनी चाहिए थी। अगर दोनों देशों ने दोस्ती बढ़ाई होती तो आज हालात अलग होते। दोनों के बीच पूंजीगत माल के आयात और निर्यात का व्यापार दुबई होकर करने के बदले अपनी सीमाओं के जरिये होना चाहिए था। अपनी पाकिस्तान यात्रा के बाद के मोदी ने बयान दिया था कि इस तरह की बातें अब सामान्य तौर पर होंगी और वे एक-दूसरे के देश में बिना सरकारी शिष्टाचार के आते-जाते रहेंगे। यह पहले ही हो जाना चाहिए था। तब ऐसा लगा था कि मोदी अटल बिहारी वाजपेयी की राह पर चल रहे हैं।

लाहौर यात्रा के बाद वह वाजपेयी से मिले थे जो भाजपा में एक उदार चेहरा माने जाते हैैं। वह अब शारीरिक रूप से अक्षम हैं, लेकिन उन्होेंने अपने हाव-भाव से बताया था कि मोदी ने वही किया है जो कुछ वह खुद करते। मोदी के शासन में वह भावना दिखाई देनी चाहिए थी। भले ही नवाज शरीफ दस साल की सजा का सामना कर रहे हों, लेकिन पाकिस्तान में लोग इसके कुछ ठोस सबूत देखना चाहेंगे कि शरीफ और उनके परिवार ने भ्रष्टाचार किया था।

[ लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैैं ]