देवेंद्रराज सुथार। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 73वें स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले के प्राचीर से देश को संबोधित करते हुए कई अहम मसलों की चर्चा की। प्रधानमंत्री ने बढ़ती जनसंख्या के प्रति चिंता जताते हुए परिवार नियोजन की बात कही। प्रधानमंत्री ने कहा कि छोटा परिवार रखना भी देशभक्ति है। राज्य सरकारें बेहतर योजनाओं के जरिये परिवार नियोजन के लिए लोगों को प्रोत्साहित कर रही हैं, लेकिन अब भी इस दिशा में क्रांतिकारी बदलाव आना शेष है। प्रधानमंत्री मोदी ने देश की जनता से अपील की कि वे इस बाबत जागरूकता फैलाने का काम करें। उन्होंने कहा कि बढ़ती जनसंख्या को हम जागरूकता के माध्यम से ही नियंत्रित कर सकते हैं। अभी चीन में प्रति मिनट 11 बच्चे पैदा होते हैं तो हिंदुस्तान में यह आंकड़ा 33 बच्चे प्रति मिनट का है। हालांकि अभी चीन की आबादी हिंदुस्तान से ज्यादा है, लेकिन ठीक छह साल बाद यानी 2025 में हिंदुस्तान, दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन जाएगा। जनसंख्या विस्फोट एक बड़ी समस्या बनकर उभरी है।

‘द वर्ल्ड पॉपुलेशन प्रोस्पेक्ट्स 2019 हाईलाइट्स’
संयुक्त राष्ट्र की नई रिपोर्ट में अनुमान व्यक्त किया गया है कि 30 वर्षों में विश्व जनसंख्या में दो अरब लोगों की आबादी और जुड़ जाएगी। फिलहाल दुनिया की जनसंख्या लगभग 7 अरब 70 करोड़ है और 2050 तक यह बढ़कर 9 अरब 50 करोड़ से ज्यादा हो जाएगी। इस सदी के अंत यानी 2100 तक विश्व आबादी 11 अरब के आंकड़े को छू सकती है। नि:संदेह जनसंख्या वृद्धि पर लगाम कसने का सबसे सरल उपाय परिवार नियोजन ही है। लोगों में जन-जागृति का अभाव होने के कारण दस-बारह बच्चों की फौज खड़ी करने में वे कोई गुरेज नहीं करते हैं। इसलिए सबसे पहले उन्हें जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणामों के प्रति जागरूक करने की आवश्यकता है। यह समझने की जरूरत है कि जनसंख्या को बढ़ाकर हम अपने आने वाले कल को ही खतरे में डाल रहे हैं। वस्तुत: बढ़ती जनसंख्या के कारण भारी मात्रा में खाद्यान्न संकट उत्पन्न हो रहा है। जिसके कारण देश में भुखमरी, पानी एवं बिजली की समस्या, आवास की समस्या, अशिक्षा का दंश, चिकित्सा की बदइंतजामी एवं रोजगार के कम होते विकल्प आदि समस्याओं से जूझना पड़ रहा है।

आम जनता जनसंख्या वृद्धि के लिए उत्तरदायी
जनसंख्या वृद्धि रोकने में जनता की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। वर्षों पहले प्रतिपादित भूगोलवेत्ता माल्थस के जनसंख्या सिद्धांत के मुताबिक मानव जनसंख्या ज्यामितीय आधार पर बढ़ती है, लेकिन वहीं भोजन और प्राकृतिक संसाधन अंकगणितीय आधार पर बढ़ते हैं। यही वजह है कि जनसंख्या और संसाधनों के बीच का अंतर उत्पन्न हो जाता है। कुदरत इस अंतर को पाटने के लिए आपदाएं लाती हैं। सीमित जनसंख्या में हम बेहतर और अधिक संसाधनों के साथ आरामदायक जीवन जी सकते हैं, जबकि जनसंख्या वृद्धि के कारण यही आराम संघर्ष में परिवर्तित होकर शांति-सुकून को छीनने का काम करता है। जनसंख्या वृद्धि रोकने के लिए सरकारी कर्मचारियों एवं सरकारी सेवाओं का लाभ लेने वाले गिने-चुने लोगों के लिए सरकारी फरमान जारी करने से स्थायी और कारगर समाधान नहीं खोजा जा सकता है। सरकारी कर्मचारियों से कहीं अधिक आम जनता जनसंख्या वृद्धि के लिए उत्तरदायी है। शिक्षित समुदाय जनसंख्या की समस्या से भलीभांति अवगत है। यदि कोई अनभिज्ञ है तो वह अशिक्षित और अनपढ़ वर्ग जिसे जनसंख्या के बढ़ने के हानिकारक पहलुओें से रूबरू कराना बेहद जरूरी है।

‘दो बच्चे ही अच्छे’ के सिद्धांत से भी कोसों दूर
सरकारें अपना वोटबैंक सुरक्षित करने के लिए जनसंख्या नियंत्रण अभियान एवं योजनाओं को हल्के में जाने देती हैं। आखिर कोई सरकार क्यों अपने ही हाथों से अपने पैरों पर कुल्हाड़ी चलाएगी! इन्हीं सब कारणों से हम ‘दो बच्चे ही अच्छे’ के सिद्धांत से भी कोसों दूर हैं। यदि आंकड़ों के अनुसार देखें तो आजादी के समय भारत की जनसंख्या 34 करोड़ थी, जो 2011 में बढ़कर लगभग 121.5 करोड़ हो गई तथा साल 2018 तक हमारे देश की कुल आबादी लगभग 133 करोड़ से अधिक आंकी जा रही है। देश की कुल आबादी में 62.31 करोड़ जनसंख्या पुरुषों की एवं 58.47 करोड़ जनसंख्या महिलाओं की है। सर्वाधिक जनसंख्या वाला राज्य उत्तर प्रदेश है जहां की कुल आबादी 19.98 करोड़ है तो वहीं न्यूनतम आबादी वाला राज्य सिक्किम है जहां की कुल आबादी लगभग 6 लाख है।

जनसंख्या नियंत्रण एवं परिवार नियोजन
हमारे देश में विशाल होती जनसंख्या का एक कारण पुरुषवादी मानसिकता का होना भी है। घर चलाने एवं वंश की पहचान के तौर पर बेटे के इंतजार में बेटियों की संख्या में वृद्धि कर लंबा-चौड़ा परिवार बढ़ाया जाता है। वहीं सरकार द्वारा निर्धारित उम्र से कम उम्र में बाल विवाह कराए जाने से भी जनसंख्या का भार बढ़ रहा है। यह सच है कि आज कई राज्यों की सरकारें इस विषय को लेकर गंभीर हुई हैं। विकास पथ पर आगे बढ़ने के लिए यह निहायत जरूरी है कि हम जनसंख्या नियंत्रण एवं परिवार नियोजन की दिशा में ठोस और सार्थक प्रयास करें। बड़ी जनसंख्या तक विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के लाभों का समान रूप से वितरण संभव नहीं हो पाता, जिसकी वजह से हम गरीबी और बेरोजगारी जैसी समस्याओं से दशकों बाद भी उबर नहीं सके हैं। हमें देश की उन्नति के साथ अपने सुरक्षित भविष्य एवं बेहतर जीवन की अभिलाषा के लिए आज और अभी से सचेत होना होगा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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