कोरोना को हराने के लिए एकमात्र उपाय है 'लॉकडाउन', भारत के फैसले की दुनिया में हो रही तारीफ
कोरोना वायरस को खत्म करने के लिए भारत में किए गए Complete Lockdown की तारीफ दुनिया भर में हो रही है। इटली ने यह फैसला लिया लेकिन देर से... डॉक्टर यशवर्धन ने दी है ये जानकारियां
[डॉक्टर यशवर्धन पाठक]। दूसरे देशों से सबक लेते हुए भारत ने समय रहते ही 21 दिनों के लिए पूर देश को लॉकडाउन कर दिया है। दुनिया के विकसित देशों के तमाम डॉक्टरों का मानना है कि नए कोरोना वायरस को खत्म करने का एकमात्र तरीका 'लॉकडाउन' ही है क्योंकि संक्रमित मरीज से यह वायरस दूसरों तक जाने के लिए 14-15 दिनों का समय लेता है। इस वायरस को लेकर पाठकों को महत्वपूर्ण और काफी अहम जानकारी दे रहे हैं अनुभवी डॉक्टर यशवर्धन पाठक-
जब से कोरोना के प्रकोप के कारण घर में बैठ कर एकांतवास करना पड़ा है, मेडिकल कॉलेज के पुराने साथियों से बातें व वाट्सएप ग्रुप पर चर्चाएं चल रही हैं। मेरी स्मृति में मेडिकल कॉलेज के हॉस्टल और कॉलेज की घटनाएं आ जाती हैं। हॉस्टल में जब भी हमारा कोई साथी बीमार होता था और उसे बुखार, बदन दर्द, कमजोरी इत्यादि शिकायतें होती थी तो हमारे सीनियर अपने नए अर्जित ज्ञान का उस बेचारे जूनियर पर जी भरकर प्रयोग करते थे। किसी की राय में यह सामान्य वायरल फीवर होता था, कोई इसे बैक्टीरियल इंफेक्शन कहता था तो कोई इसे मलेरिया के शुरुआती लक्षण बताता था। इससे जूनियर परेशान हो जाता था कि कौन सी बात माने। तब मेरा रूम मेट और अभिन्न मित्र डॉक्टर (सरदार) गुरिंदर सिंह मजाकिया अंदाज में कहता था- ‘दो बड़े और सफल डॉक्टर की राय किसी बीमारी पर कभी भी एक सी नहीं होती, इसलिए हॉस्टल के ये सभी बड़े डॉक्टर जिन्होंने अभी MBBS पूरा नहीं किया है, इनकी राय लेने की अपेक्षा अस्पताल के किसी एक अच्छे डॉक्टर से इलाज कराया जाए।’
सभी डॉक्टरों ने कहा- लॉकडाउन ही है उपाय
समय के साथ मेरे मित्र की यह बात और डॉक्टरों के प्रति मेरी यह धारणा और दृढ़ होती गई। आज 25 वर्ष बाद पहली बार कोरोना की इस भयावह महामारी में पाया कि देश के तमाम डॉक्टरों की एक ही राय है- पूर्ण लॉकडाउन। फिर चाहे वह दिल्ली मेदांता के नरेश त्रेहन हों या बेंगलुरू नारायण हृदयालय के प्रमुख डॉक्टर नारायण रेड्डी। इसका पूरा श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जाता है क्योंकि उन्होंने सख्त लेकिन कारगर निर्णय लिया। भारत जैसी बड़ी आबादी वाले देश में पूरी तरह लॉकडाउन का निर्णय और उससे जुड़े व्यवधानों की कल्पना आसान नहीं है परंतु इस सबसे बड़ी वैश्विक महामारी के रोकथाम के लिए कोई और कदम कारगर भी नहीं होता।
कोरोना वायरस के प्रकोप ने अमेरिका, इटली, फ्रांस जैसे संपन्न और वैज्ञानिक रूप से अग्रणी देशों को घुटने पर ला दिया है। अब तक इटली में करीब 7,000 मौतें हुई हैं और अमेरिका में करीब 1,000। चीन में तो काल के ग्रास बने लोगों पर कई अटकलें लगाई जा रही हैं। कहा जा रहा है कि 5,000 से अधिक लोग अकेले चीन के वुहान शहर के थे जिनकी मौत हुई।
पब्लिक हेल्थ इमर्जेंसी
ऐसी त्रासदी से निपटने के लिए 21 दिनों का पूर्ण लॉकडाउन कोई बहुत सख्त एवं गैरजरूरी कदम बिल्कुल नहीं है, बल्कि एक विवेक व सूझबूझ से लिया हुआ दृढ निर्णय है। मुझे हैरानी होती है जब लोग इस निर्णय के आर्थिक पहलू की सूक्ष्मता से बात करते हैं और उसपर अनावश्यक चर्चे करते हैं। कुछ लोग जरूरी खाद्य पदार्थ व दवाओं की किल्लत इत्यादि व सप्लाई चेन डिस्पर्शल की बातें करते हैं जबकि केंद्र व राज्य सरकारें बार-बार इसका पूरा ध्यान रखने की बात कर चुके हैं। इतनी बड़ी समस्या, इतनी बड़ी आबादी का देश और इस फैसले के बाद कोई दिक्कत न हो, यह तो शायद संभव नहीं है, पर आश्चर्य तब होता है जब शिक्षित वर्ग भी इस संकट को समझने के बजाए इस निर्णय की आवश्यकता पर बहस करता है। यह एक पब्लिक हेल्थ इमर्जेंसी है और इसपर डॉक्टर निर्णय लेंगे न कि अर्थशास्त्री या वामपंथी सोच वाले चिंतक।
दूसरों की गलतियों से लिया सबक
समझदार व कुशल प्रशासक वही होता है जो दूसरों की गलतियों से सबक ले कर निर्णय ले। प्रकृति की कृपा रही कि यह महामारी हमारे यहां बाद में आयी जब चीन, इटली आदि देशों की गलतियां हमारी जानकारी में आ चुकी थी। मेरे बहुत से डॉक्टर मित्र आज यूरोप और अमेरिका में इस महामारी के मरीजों का इलाज कर रहे हैं व उन सबका एक सुर में मानना है कि पूर्ण लॉकडाउन को सफल न कर पाना ही यूरोपीय देशों में ज्यादा मृत्यु व संक्रमण का कारण बना। इटली के लोम्बार्डी शहर में करीब 3,500 लोग काल के ग्रास बने और वहां काफी विलंब से रेस्त्रां व पब को बंद करने का फैसला लिया गया। यह समझना बहुत आवश्यक है कि इस बीमारी से बुजुर्ग व पहले से बीमार लोगों पर ज्यादा गंभीर आक्रमण होता है, वहीं नौजवान व स्वस्थ लोगों में इसका कम खतरा रहता है। हताहत लोगों में 85 फीसद ऐसे हैं जिनकी आयु 50 वर्ष से अधिक है। पर इसका कारण वे नवयुवक है जो संक्रमण उन बुजुर्गों तक पहुंचा रहे हैं।
शरीर से बाहर 24 घंटे रहता है जीवित
इस बीमारी के वायरस शरीर से बाहर करीब 24 घंटे तक जीवित रहते हैं। संक्रमित व्यक्ति के खांसने-छींकने से वायरस का संक्रमण फैलता है। एक मरीज करीब 14-15 दिन तक दूसरे लोगों को संक्रमित कर सकता है। उसके द्वारा छुई गई सभी वस्तुओं आदि पर इस बीमारी के वायरस रह जाते हैं। इसलिए मरीज को क्वारंटाइन कर दिया जाता है। इसके तहत उन्हें 14 दिनों का एकांतवास दिया जाता है जो उनके परिवार, सगे-संबंधियों व समाज के लिए आवश्यक होता है।
भारत में स्वस्थ हो घर गए 50 मरीज
मेरे एक डॉक्टर मित्र इंग्लैंड के एक बड़े अस्पताल में वरिष्ठ पद पर हैं। उनका कहना है कि यूरोप के देशों में इस बीमारी का संक्रमण फैलने के पीछे मुख्य कारण वहां के लोगों की समझ है जो लॉकडाउन का अर्थ नहीं समझ सके। साथ ही अधिक संख्या में बुजुर्गों का होना व व्यापारिक गतिविधियों को जारी रखना भी कारण है। भारत में अब तक के आंकड़ों के अनुसार, 600 एक्टिव मरीज हैं। इसमें खुशी की बात यह है कि 50 मरीज स्वस्थ हो अपने घर वापस लौट गए हैं। डॉक्टरों का यह भी मानना है कि 100 में से 85 मरीज केवल फ्लू जैसे लक्षणों वाले होंगे जो 15 दिनों में खुद ही स्वस्थ हो जाएंगे। 100 में से 10 मरीजों को अस्पताल में दाखिले की जरूरत व पांच को आइसीयू की आवश्यकता पड़ सकती है।
दृढ़संकल्प की है जरूरत
चिंता का विषय यह है कि हमारी आबादी के अनुपात में यह 5 फीसद भी बहुत है। इसलिए अगर लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग के माध्यम से हमारे यहां संक्रमण कम हो रहा है तो इस महामारी से हम सफलतापूर्वक लड़ कर संपूर्ण विश्व व मनुष्यता को एक संदेश देने में सफल रहेंगे और यह असंभव नहीं है। जरूरत है तो एक दृढसंकल्प की, जो हमें अपने घर के बाहर न निकलने के लिए प्रेरित करें। हम खुद संक्रमित न हों और औरों में भी न फैलाएं। अनावश्यक तफरीह की आदत पर संयम रखें। परिवार व बच्चों के साथ समय बिताएं, कुछ सीखें-कुछ सीखाएं, कुछ पढ़ें-कुछ पढ़ाएं। व्हाट्सएप के इस दौर में कई प्रकार के ग्रुप बने रहते हैं। स्कूल कॉलेज नौकरियों आदि के ग्रुप है। चर्चाएं होती हैं, अगर चर्चा थोड़ी जानकारी के साथ हो तो अपनी अनभिज्ञता व नादानी छुपी रहती है वरना उपहास का विषय बन जाती है। समय काटना इतना मुश्किल भी नहीं इस डिजिटल युग में।
भारत में बाहर से आया है संक्रमण
स्वास्थ्य विशेषज्ञों व विश्व स्वास्थ्य संगठन तक का यह मानना है कि भारत में अब तक सारे मरीज बाहरी देशों के संक्रमण से ही आए हैं। यहां पर समाज के अंदर सभी संक्रमण जिसे ‘कम्युनिटी ट्रांसमिशन’ कहते हैं शुरू नहीं हुआ है। यह बहुत अच्छी बात है। अगर हम कम्युनिटी ट्रांसमिशन कंट्रोल कर लेते हैं या इसे जब तक हो टाल जाते हैं, तो हम इसकी भयावह तबाही से अपने को बचा पाएंगे। अन्यथा नुकसान कितना होगा, इसका आकलन करना भी अभी मुश्किल है। इस 21 दिनों के लॉकडाउन को अगर हम सबने मिलकर सफल कर दिया तो न सिर्फ हम देश एवं समाज को इस भयानक त्रासदी से बचा लेंगे बल्कि हमारे डॉक्टर, नर्स और बाकी हेल्थ वर्कर का भी मनोबल कायम रहेगा। इस बीमारी के संक्रमण से डॉक्टर नर्स समेत हमारा समाज बर्बाद हो सकता है, पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा जाएगी।
अभी हमारे पारंपरिक नववर्ष की शुरुआत हुई है, नवरात्र पर्व चल रहा है। इस दौरान नौ दिन शक्ति की प्रतीक मां दुर्गा के विभिन्न रूपों की उपासना की जाती है। विश्व के विकसित देशों- अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया व यूरोप में काम करने वाले अपने डॉक्टर मित्रों से बात की। इससे पता चला कि पूरी दुनिया की निगाहें अभी भारत पर है कि यह किस तरह इस त्रासदी से निबटेगा।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हमारे अब तक के कोरोना से संघर्ष की तारीफ भी की है। विकसित देश भी दबी जुबान में हमारे कोरोना नियंत्रण के प्रयास के तहत अपनाए गए सोशल डिस्टेंसिंग व लॉकडाउन की तारीफ कर रहे हैं। साथ ही इससे आने वाले परिणामों को भी मॉनिटर किया जा रहा है। हम सब भारत को विश्व गुरू व विश्व शक्ति के तौर पर देखना चाहते हैं। भारत के कोरोना संघर्ष और इसके नियंत्रण में सफलता से विश्व को एक बार फिर हमारी संस्कृति व सभ्यता का लोहा मानना पड़ेगा, जिसमें विज्ञान व ईश्वरीय आस्था का सामंजस्य है।
[Dr. Yashovardhan Pathak MBBS, IRS Former Private Secretary to Hon'ble Health Minister, MoS, Govt. of India]