[ प्रदीप सिंह ]: देश में इस समय बड़ा घमासान मचा हुआ है। मैं कोरोना महामारी की बात नहीं कर रहा। मैं बंगाल में चुनाव बाद सरकारी संरक्षण में हो रही राजनीतिक हिंसा की बात भी नहीं कर रहा हूं। पिछले सात साल में एक नया वर्ग बना है। इसे लेफ्ट लिबरल कहिए, गिद्धों का गिरोह कहिए, लुटियंस बिरादरी कहिए या फिर खान मार्केट गैंग। इन सबका डीएनए एक ही है। इन्हें कोरोना की गर्दन नहीं चाहिए। बंगाल में हत्या, दुष्कर्म, आगजनी करने वालों की गर्दन भी नहीं चाहिए। इन्हें देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गर्दन चाहिए। यह बिरादरी पहले भी थी और ज्यादा ताकतवर थी। उनकी तकलीफ यहीं से शुरू होती है। वह ताकत चली गई है। उन्हें लगता है कि मोदी की गर्दन एक बार हाथ में आ जाए तो फिर उनके सामने खड़े होने की हिम्मत कौन करेगा? आज से पहले इस बिरादरी को रसद-खाद सत्ता से मिलती थी। मोदी ने इनकी सप्लाई लाइन काट दी। सात साल से लगे हैं, लेकिन जोड़ नहीं पा रहे। कारण कि इनकी ऊर्जा का जो पात्र था, जिसे ये अक्षय पात्र (मूलत: कांग्रेस और कम्युनिस्ट) समझते थे, उसी का क्षय हो गया है।

मोदी विरोधी विदेशी मीडिया, चीनियों से मोदी विरोध में लिखवाया जा रहा

पहले पांच साल तो उसमें हवा भर-भर फुलाने की कोशिश करते रहे, पर उसमें इतने छेद हैं कि हवा टिकती ही नहीं। इसलिए फिलहाल उसे किनारे कर दिया। बड़ी लकीर खींचना तो संभव नहीं है। इसलिए उसे छोटा करने की कोशिश हो रही है। उनका अस्तित्व संकट में है, इसलिए जहां से मदद मिले, ले रहे हैं। मदद करने वाला भारत विरोधी हो तो क्या फर्क पड़ता है? इसलिए भारत विरोधी और खासतौर से मोदी विरोधी विदेशी मीडिया संस्थानों का बेशर्मी से इस्तेमाल हो रहा है। लैंसेट जैसी पत्रिका में चीनियों से मोदी विरोध में लिखवाया जा रहा है।

भारत तेजी से इलेक्ट्रिक वाहनों के उत्पादन को बढ़ावा देने जा रहा

मोदी भारत में ही नहीं, दुनिया में बहुत से लोगों के लिए खतरा बने हुए हैं। आत्मनिर्भर भारत अभियान से दुनिया की बहुत सी कंपनियों को खतरा नजर आ रहा है। सबसे बड़ा हथियार आयातक भारत यदि इस मामले में आत्मनिर्भर हो गया तो किसको परेशानी होगी, यह बताने की जरूरत नहीं। भारत दुनिया की फार्मेसी बन रहा है। भारत तेजी से इलेक्ट्रिक वाहनों के उत्पादन को बढ़ावा देने जा रहा है। फिर तेल उत्पादकों का तेल कौन खरीदेगा? आपको लगता है, वे इसे चुपचाप देखते रहेंगे। भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के क्वाड का विस्तार होने जा रहा है। बहुत से देशों ने इसमें रुचि दिखाई है। चीन और उसके मित्र देशों के लिए इस संकट के केंद्र में मोदी हैं।

कोरोना की पहली लहर में भारत का काम विकसित देशों से बेहतर रहा

कोरोना आया तो उसकी पहली लहर में भारत का काम दुनिया के तमाम विकसित देशों से बेहतर रहा। पीपीई किट, वेंटिलेटर, मास्क और सैनिटाइजर आयात करने वाला देश कुछ ही महीनों में निर्यात करने की स्थिति में आ गया। यह बात दुनिया के दूसरे उत्पादकों को कैसे पसंद आएगी? सारी दुनिया कोरोना की वैक्सीन जल्दी से जल्दी बनाने में लगी थी। चीन की भी कोशिश थी कि उसकी वैक्सीन पहले आए और वह दुनिया का तारणहार बने। वैक्सीन तो आई पर गीले पटाखे जैसी निकली। दो डोज से भी काम नहीं चल रहा। अब तीसरी देने की बात हो रही है।

भारत की वैक्सीन की आज दुनिया भर में तारीफ हो रही

भारत ने दो वैक्सीन बना लीं। एक अपनी देसी और एक विदेशी मदद से। भारत की वैक्सीन जिसकी आज दुनिया भर में तारीफ हो रही है। उस पर पहला हमला भारत के विपक्षी दलों और मीडिया के एक हिस्से ने किया। इसके बावजूद भारत वैक्सीन के मामले में दुनिया में गर्व से सिर उठाकर चलने वाला बन गया। 90 से ज्यादा देशों को वैक्सीन दी। इन सब उपलब्धियों की केंद्रीय शक्ति केवल एक शख्स है, जिसका नाम नरेंद्र दामोदरदास मोदी है। इसलिए वह कांटे की तरह चुभ रहा है।

कोरोना की दूसरी लहर ऐसी तबाही मचाएगी किसी को पता नहीं था

कोरोना की दूसरी लहर आएगी, सबको पता था, पर सुनामी की तरह कुछ ही दिनों में ऐसी तबाही मचाएगी, यह किसी को पता नहीं था। अब कोई भी ज्ञानी चाहे जो दावा करे। फरवरी में केंद्र ने राज्यों में 75 टीमें भेजीं, ताकि राज्य दूसरी लहर के लिए तैयारी करें। इससे पहले आक्सीजन प्लांट लगाने के लिए पैसे और सलाह, दोनों दीं। टीकाकरण के लिए सबसे अच्छी नीति बनाई ताकि पहले इलाज और मरीजों की मदद-सेवा करने वाले सुरक्षित हों। फिर सबसे ज्यादा खतरे में रहने वाले बुजुर्ग और फिर 45 साल से ऊपर वाली आबादी। इसके अलावा अन्य तमाम कदम केंद्र सरकार ने उठाए, पर याद क्या रहा! सिर्फ दो बातें। मोदी की चुनावी रैली, बाकी किसी नेता की नहीं। दूसरी, 18 साल के ऊपर वालों को वैक्सीन लगाने की घोषणा के बाद वैक्सीन की कमी। वैक्सीन कोई आलू चिप्स नहीं है। यह बात इसलिए कह रहा हूं कि अरविंद केजरीवाल की ताजा मांग है कि दूसरी कंपनियों को भी वैक्सीन बनाने की इजाजत दे दीजिए।

मोदी विरोध का एकतरफा एजेंडा चलाया जा रहा

जब केंद्रीय स्तर से लॉकडाउन का फैसला हुआ तो कहा कि तानाशाही है। स्वास्थ्य राज्य का विषय है। राज्यों को फैसला करने दीजिए। अब कह रहे हैं केंद्र क्यों नहीं लगाता? यही दोमुहांपन वैक्सीन के मामले में भी है। प्रधानमंत्री को दिन-रात गाली देते हैं। उनकी मृत्यु की दुआ भी करते हैं और अगली सांस में कहते हैं, मोदी के राज में बोलने की आजादी नहीं है। प्रधानमंत्री ने किसी राज्य सरकार या किसी पार्टी के नेता के खिलाफ एक शब्द नहीं बोला, पर मोदी विरोध का एकतरफा एजेंडा चलाया जा रहा है।

मानवता के दुश्मनों को कोरोना आपदा में अवसर नजर आ रहा

जैसे कालाबाजारियों, रिश्वतखोरों, लुटेरों और मानवता के दुश्मनों को इस आपदा में अवसर नजर आ रहा है, वैसे ही एक राजनीतिक बिरादरी को भी अवसर दिख रहा है मोदी को गिराने का। वे भूल जाते हैं कि अंधेरा कितनी भी ताकत लगा ले, वह उजाले को आने से रोक नहीं सकता।

देश की बागडोर उस मोदी के हाथ में है, जिसके लिए पहले नंबर पर देश है

आम लोगों को मोदी से शिकायत हो सकती है, नाराजगी भी हो सकती है, पर जरा सोचिए कि इस समय मनमोहन, राहुल गांधी, ममता बनर्जी, शरद पवार, मायावती या अखिलेश यादव प्रधानमंत्री होते तो...। आप इसकी कल्पना से भी सिहर उठेंगे। इस समय देश की बागडोर उस मोदी के हाथ में है, जिसके लिए पहले नंबर पर देश है, दूसरे नंबर पर भी और तीसरे और आखिरी नंबर पर भी।

( लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं )