ब्रजबिहारी। यह दिनोंदिन स्पष्ट होता जा रहा है कि देश की कम्युनिस्ट पार्टयिों को अपने राजनीतिक भविष्य की कोई चिंता नहीं है। इसलिए एक-एक कर दो राज्य उनके हाथ से फिसल गए। इसके बावजूद उनके पास आने वाले दिनों का कोई खाका नहीं है। अगर ऐसा होता तो इन पार्टयिों के शीर्ष प्रतिनिधि हाल में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) के 100वें स्थापना दिवस पर नई दिल्ली में चीनी दूतावास के कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए होते। जिस देश के साथ सीमा पर तनाव चल रहा है और जो हमारी जमीन से पीछे हटने को तैयार नहीं है, उसके देश की पार्टी के कार्यक्रम में जाने से उसे भारत में राजनीतिक रूप से क्या लाभ मिला, यह कोई कामरेड आपको नहीं बता पाएगा। इस बारे में सवाल किए जाने पर वही अहंकार भरा जवाब, आप हमें क्या बताएंगे। हमने तो 35 साल बंगाल में और 25 साल त्रिपुरा में शासन किया है। लगातार दूसरी बार केरल में सत्ता में आए हैं। कहना न होगा कि जो पार्टी भविष्य के बजाय भूत में जीने लगे, उसका तो पतन निश्चित है।

कम्युनिस्ट पार्टयिों को अपनी फिक्र होती तो केरल में मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) के नेतृत्व वाली वामपंथी सरकार ने लव जिहाद, मतांतरण और आतंकवाद जैसी राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के खिलाफ कोई ठोस रणनीति बनाई और लागू की होती। ऐसा नहीं हुआ है। इसके ठीक उलट केरल इस्लामिक कट्टरपंथ का गढ़ बनता जा रहा है। इसमें इतनी ज्यादा संभावना पैदा हो गई है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ अफगानिस्तान में अपना बर्बर शासन स्थापित करने की ओर बढ़ रहे तालिबान के साथ मिलकर कश्मीर के अलावा केरल को भी निशाना बनाने की साजिश रच रही है।

ब्रिटेन में रह रहे गुलाम कश्मीर के पत्रकार अमजद अयूब मिर्जा के अनुसार केरल पर पाकिस्तान की नजर अचानक नहीं पड़ी है, बल्कि वह काफी समय से इस पर काम कर रहा है। उल्लेखनीय है कि केरल में हाल ही में अफगानिस्तान में बनी हाई क्वालिटी की ड्रग्स की बरामदगी के मामलों में बढ़ोतरी से स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि राज्य में तालिबान का असर बढ़ रहा है। दो दशक तक अमेरिकी सैनिकों की मौजूदगी के बावजूद पोश्त और उससे निकलने वाली अफीम की खेती-व्यापार पर तालिबान का ही कब्जा है। उसके लिए धन का बड़ा स्रोत अफीम से बनने वाले ड्रग्स की तस्करी है।

इस संबंध में अयूब का पूरा लेख पढ़कर केरल की कम्युनिस्ट सरकार की आंखें खुल जानी चाहिए, लेकिन वह तो कुछ देखना ही नहीं चाहती है। भारत को अस्थिर करने के लिए कश्मीर में पिछले कई दशकों से छद्म युद्ध लड़ रहा पाकिस्तान किसी भी सूरत में तालिबान को अफगानिस्तान की सत्ता पर बिठाना चाहता है। उसके नापाक इरादों को पूरा करने के लिए यह जरूरी है। इसलिए उसने भारत के साथ दिखावे के लिए संघर्ष विराम की घोषणा की है और वहां से सेना हटाकर उन्हें उत्तरी सीमा पर तालिबानियों की मदद में तैनात कर दिया है और भारत में लगातार ड्रोन भेज-भेजकर उसे उलझाए हुए है।

केरल सरकार राज्य में इस्लामिक कट्टरवाद को बढ़ावा देने वालों के खिलाफ कार्रवाई इसलिए नहीं करती है, क्योंकि वही उसके वोटर हैं। वोट की राजनीति के कारण राज्य देश विरोधी तत्वों का अड्डा बनता जा रहा है। देश के अंदर आतंक की जड़ें मजबूत करने वाला यासीन भटकल केरल का ही रहने वाला है। इन दिनों तिहाड़ जेल में बंद इस आतंकी की इंडियन मुजाहिदीन की स्थापना में अहम भूमिका थी। देश भर में इस्लामी कट्टरता को बढ़ावा दे रहा पापुलर फ्रंट आफ इंडिया (पीएफआइ) का ठिकाना भी केरल ही है।

कश्मीर के बाद केरल में पाकिस्तान के नापाक मंसूबे अगर सच साबित होते हैं तो भारत की खुफिया एजेंसियों और सैन्य बलों के लिए यह बहुत बड़ी चुनौती होती। यह छद्म युद्ध का एक और मोर्चा खुलने जैसा होगा। जाहिर है जब तक केरल में कम्युनिस्ट सरकार है, तब तक तो इसकी उम्मीद नहीं की जानी चाहिए कि वह राष्ट्रविरोधी तत्वों के खिलाफ कोई ठोस कदम उठाएगी और देश की सुरक्षा को सुनिश्चित करेगी। यह चिंताजनक है।

वामपंथी दलों के नेताओं द्वारा चीनी दूतावास के कार्यक्रम में शामिल होना यह दर्शाता है कि चीन की भारत विरोधी हरकतों से वे लोग कुछ भी सबक सीखने को तैयार नहीं हैं।