नई दिल्‍ली [रिजवान अंसारी]। बार-बार एकजुटता का आह्वान करने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फिर से एकता और भाईचारा का संदेश दिया है। मोदी ने लिंक्डइन नामक वेबसाइट पर एक लेख के जरिये धर्म और जाति से परे हटकर कोरोना वायरस से लड़ने की आह्वान किया है। उन्होंने कहा है कि कोविड-19 धर्म, जाति, रंग, भाषा और सीमा नहीं देखता और इसलिए इस समय हमारा आचरण एकता तथा भाईचारे वाला होना चाहिए।

बिगड़ता धार्मिक सौहार्द

उन्होंने कहा कि हमारे पास न केवल भारत के लिए, बल्कि संपूर्ण मानव जाति के लिए एक सकारात्मक बदलाव लाने की क्षमता होनी चाहिए। लेकिन चिंता की बात है कि प्रधानमंत्री मोदी के आह्वान से इतर कई जगहों से सांप्रदायिक सौहार्द के बिगड़ने की खबरें आ रही हैं। इस नाजुक वक्त में सरकार न केवल कोरोना वायरस से लड़ रही है, बल्कि बिगड़ता सांप्रदायिक सौहार्द भी एक चुनौती बन कर उभर रहा है। सवाल है कि पहले इस विश्वव्यापी महामारी से लड़ा जाए या बिगड़ते धार्मिक सौहार्द से।

घातक वायरस के साथ एक और चुनौती

दरअसल सांप्रदायिक सौहार्द के बिगड़ने की खबरों ने सरकार और प्रशासन के सामने कोरोना के समानांतर एक दूसरी चुनौती खड़ी कर दी है। जब प्रधानमंत्री मोदी बार-बार एकजुट होकर कोरोना से लड़ने का आह्वान कर रहे हैं, तब समाज की यह विद्रूपता चिंतित कर रही है। सवाल है कि कुछ लोगों की गलतियों के कारण पूरे समुदाय या वर्ग को हम गलत कैसे ठहरा सकते हैं? यह हमारी बौद्धिकता के ही खिलाफ है कि हम एक ही डंडे से पूरे समाज को हांकने की कोशिश करें। हमें समझना होगा कि कोई भी धर्म अधर्मी-कृत्यों की इजाजत नहीं देता। फिर अगर कोई व्यक्ति ऐसा कार्य करता है तो वह व्यक्तिगत रूप से इसका जिम्मेदार है। कोई धर्म या उस धर्म के सभी अनुयायी इसके लिए जिम्मेदार कैसे हो सकते हैं? यह कतई उचित नहीं है कि कुछ लोगों की गलतियों की वजह से हम समाज के शरीफ लोगों को भी इसमें घसीटें।

‘एक गलत तो सब गलत’ की सोच से निकलें

सोचिए कि अगर एक राजनेता भ्रष्ट निकल जाता है तो क्या हम राजनेताओं के पूरे वर्ग को भ्रष्ट करार दे देते हैं? खेल प्रतिस्पर्धाओं में खिलाड़ियों का डोपिंग टेस्ट होता है और कई मौके ऐसे भी आए हैं जब कोई खिलाड़ी यह टेस्ट पास नहीं कर पाता। तब हम पूरी टीम पर इसका आरोप नहीं मढ़ देते। जाहिर है, कुछ लोगों की वजह से हम पूरे कौम को गलत नहीं ठहरा सकते। दरअसल एक ही समुदाय में कई तरह के विचार रखने वाले लोग होते हैं। कुछ लोग प्रगतिशील होते हैं, जबकि कुछ दकियानूसी सोच रखने वाले। ऐसे में दकियानूसी सोच रखने वालों के द्वारा असामाजिक कार्य करने के कारण हम प्रगतिशील लोगों को भी गलत नहीं कह सकते। कुछ लोगों की गलती का ताल्लुक भला एक गरीब सब्जीवाले, दूधवाले या चायवाले से कैसे हो सकता है? लेकिन फिर भी समाज में इन लोगों का बहिष्कार कर देना सामाजिक ताने-बाने को कमजोर कर देने जैसा है।

समाज सुरक्षित तो देश सुरक्षित

दरअसल, हमें समझना होगा कि समाज को सुरक्षित रखने से ही देश सुरक्षित होगा। अगर हम देश की उन्नति के बारे में सोचते हैं तो पहले हमें समाज के बारे में सोचना होगा और यही हमारी देशभक्ति है। दरअसल हिंदू-मुस्लिम की तर्ज पर सोचने के बजाय हमें केवल एक भारतीय के तौर पर सोचने की जरूरत है। अगर बहुधार्मिक देश होने के बावजूद पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे देशों से भारत अलग पहचान रखता है तो इसकी वजह है कि यहां इन देशों की तरह धार्मिक उन्माद व्याप्त नहीं है। अगर भारत की संस्कृति दुनिया भर में अद्वितीय है तो सिर्फ इसलिए कि सहिष्णुता और विनम्रता ही हमारी विशेषता रही है।

जिम्‍मेदारियों को समझने की जरूरत

सवाल है कि धार्मिक उन्माद को बढ़ावा देने से क्या कोरोना वायरस से हम निजात पा लेंगे? ऐसा सोचना ही गलत है। किसी भी वर्ग, समुदाय या व्यक्ति विशेष को नुकसान पहुंचाने से हम अंतिम रूप से देश को ही नुकसान पहुंचा रहे हैं और हमें यह हमेशा याद रहना चाहिए। सोचिए कि क्या हमेशा सांप्रदायिकता पर बल देने से वाकई देश का भला हो सकता है। किसी व्यक्ति या समुदाय को भले ही कितना भी प्रताड़ित कर लिया जाए, आखिर उन्हें रहना इसी देश में है। किसी दीवार की एक ईंट के कमजोर होने से वह दीवार कमजोर हो जाती है और हर एक व्यक्ति दीवार रूपी देश की ईंट होता है। समझना होगा कि राष्ट्र निर्माण में एक इकाई के तौर पर हर व्यक्ति महत्वपूर्ण है। चाहे वह हिंदू हो या मुस्लिम, सिख हो या ईसाई, मजदूर हो या कोई व्यवसायी, डॉक्टर हो या इंजीनियर सभी को राष्ट्र और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझने की जरूरत है।

इस महामारी के समय हमें सरकार के हाथों को मजबूत करने की जरूरत है। हमें लोकतांत्रिक, संवैधानिक और मानवीय मूल्यों को समेटते हुए आगे बढ़ने की जरूरत है। सिर्फ सरकार को अपने कर्तव्य नहीं निभाने हैं, बल्कि नागरिक के तौर पर हमें भी अपनी जिम्मेदारियां निभानी हैं। अभी एक प्रगतिशील नागरिक का परिचय देकर दुनिया को कोरोना के खिलाफ लड़ाई में अपनी एकजुटता का संदेश देने का समय है। बहरहाल कोरोना के खिलाफ जंग में जिस तरह अब तक प्रधानमंत्री के आह्वानों का अनुसरण करते आए हैं, उसी तरह एकता तथा भाईचारे के उनके संदेश को भी आत्मसात करने की जरूरत है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)