नई दिल्ली, राजीव सचान। यह पहली बार नहीं जब मीडिया के लोग या उनका कोई एक समूह या संगठन किसी के झांसे में आया हो। ताजा मामले का जिक्र करने से पहले कुछ पुराने मामलों की चर्चा करना ठीक रहेगा। बहुत समय नहीं हुआ जब पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक किशोरवय छात्र ने यह दावा कर वाहवाही बटोरनी शुरू की थी कि उसने नासा की वह परीक्षा पास कर ली है जो इसके पहले एपीजे अब्दुल कलाम ने पास की थी। इस कथित मेधावी छात्र की चर्चा खुद कलाम तक पहुंची। वह उस समय राष्ट्रपति थे। जब तक राष्ट्रपति भवन से यह स्पष्टीकरण आया कि एपीजे अब्दुल कलाम ने तो ऐसी कोई परीक्षा दी ही नहीं और नासा ऐसी कोई परीक्षा कराता भी नहीं तब तक वह छात्र कई संगठनों की ओर से पुरस्कृत हो चुका था। उसे पुरस्कृत करने वालों के साथ मीडिया भी ठगा सा रह गया, क्योंकि उसने उसके दावे का अपनी ओर से परीक्षण करने की जहमत नहीं उठाई थी।

ऐसा ही एक किस्सा तमिलनाडु का है। यह शायद 1994-95 की बात है। रामर पिल्लई नाम के एक युवक ने यह खूबसूरत, किंतु सनसनीखेज दावा किया कि उसने उन पौधों की खोज कर ली है जिनसे पेट्रोल बनाया जा सकता है। अगले दिन दक्षिण भारत ही नहीं, देश भर के अखबारों में उसके बारे में खबरें प्रकाशित हुईं। जल्दी ही पता चला कि उसके दावे में कोई दम नहीं और वह वस्तुत: मीडिया को मूर्ख बनाने में सफल रहा।

ताजा किस्सा सैयद शुजा नाम के तथाकथित हैकर का है। खुद को तकनीशियन बताने वाले इस हैकर ने लंदन स्थित इंडियन जर्नलिस्ट एसोसिएशन के एक कार्यक्रम में ईवीएम की हैकिंग को लेकर कुछ अनाप-शनाप दावे किए। ये दावे इतने हास्यास्पद और मूर्खतापूर्ण थे कि सैयद शुजा की तुलना शेखचिल्ली से ही हो सकती है। उसकी मूर्खता तब उसके सिर चढ़कर बोलती दिखी जब उसने कहा, ‘‘2014 के आम चुनाव के साथ कुछ और चुनावों में ईवीएम को हैक करके चुनाव नतीजे प्रभावित किए गए, लेकिन मेरे पास इसके कोई सबूत नहीं।’’ कायदे से ऐसी मूर्खतापूर्ण बात सुनकर इंडियन जर्नलिस्ट एसोसिएशन को खुद के ठगे जाने का अहसास हो जाना चाहिए था, लेकिन शायद यह एसोसिएशन पत्रकारों की नहीं या फिर उनका वही एजेंडा है जो भारत में कुछ लोगों का है। जो भी हो, इंडियन जर्नलिस्ट एसोसिएशन के इस तमाशे में भागीदार बने फॅारेन प्रेस एसोसिएशन को अपनी भूल का अहसास हुआ। उसने शुजा के दावों से खुद को अलग कर लिया।

इस संगठन की निदेशक ने शुजा को अविश्वसनीय करार देते हुए कहा कि उसे तो ऐसा कार्यक्रम करने की इजाजत ही नहीं देनी चाहिए थी। साफ है कि इस संगठन को यह समझ आ गया कि इंडियन जर्नलिस्ट एसोसिएशन ने उसका भी तमाशा बना दिया। इस तमाशे में कांग्रेस के नेता कपिल सिब्बल भी मौजूद थे। उनका तर्क है कि वह निजी हैसियत से वहां गए थे। अपनी सफाई देने के क्रम में वह यह कहने से भी नहीं चूके कि यह काम तो आप पत्रकारों का है कि शुजा के दावों का परीक्षण करें। उन्होंने यह कहने की जरूरत नहीं समझी कि शुजा के दावे बकवास हैं। वह ऐसा शायद इसलिए नहीं कह सके, क्योंकि उनका राजनीतिक हित ईवीएम को संदिग्ध करार देने में है। लगता है वह यह भी भूल गए कि 2014 में चुनाव परिणाम आने तक कांग्रेस सत्ता में थी और शुजा तो एक तरह से उनकी ही सरकार की खिल्ली उनके सामने ही उड़ा रहा था।

हालांकि कांग्रेस ने हाल में तीन राज्यों में ईवीएम के सहारे ही जीत हासिल की है, लेकिन शायद उसे ईवीएम को संदिग्ध करार देने में वैसी ही खुशी मिलती है जैसे आधार की आलोचना करने में। जैसे यह एक सच्चाई है कि आधार की जनक कांग्रेस है वैसे ही यह भी कि कांग्रेस के शासनकाल में ही ईवीएम का इस्तेमाल शुरू हुआ था। ईवीएम के खिलाफ दुष्प्रचार को दो उच्च न्यायालयों के साथ उच्चतम न्यायालय भी खारिज कर चुका है, लेकिन उसे संदिग्ध बताने वालों को चैन नहीं। यह सनद रहे कि कोलकाता में विपक्षी दलों की रैली के बाद जो चार सदस्यीय समिति बनी है उनमें एक सदस्य कांग्रेस के हैं और इस समिति का काम ईवीएम में गड़बड़ी रोकने के उपाय खोजना है। ईवीएम के खिलाफ कोई फर्जी खबर गढ़ने या फिर शरारत के सहारे उसे बदनाम करने की कोशिश नई नहीं है। याद करें वह फर्जी खबर जिसके तहत यह कहने की कोशिश की गई थी कि ईवीएम का कोई भी बटन दबाएं, वोट भाजपा के खाते में ही जाते हैं। इसी तरह की एक फर्जी खबर यह भी थी कि उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव लड़ी सहारनपुर की निर्दलीय प्रत्याशी शबाना को एक भी और यहां तक कि खुद उसका भी वोट उसे नहीं मिला। इस सनसनीखेज खबर में शबाना को यह दावा करते हुए पेश किया गया था कि उसके हिस्से में तो परिवार के लोगों के 16-17 वोट भी नहीं दिख रहे। यह फर्जी खबर जंगल में आग की तरह तब तक फैलती रही जब तक चुनाव आयोग ने सुबूतों के साथ यह नहीं बताया कि शबाना झूठ बोल रही हैं और उसे 87 वोट मिले हैं।

इसी दौरान यह फर्जी खबर भी खूब चली थी कि जहां बैलट पेपर से मतदान हुआ वहां भाजपा का प्रदर्शन फीका रहा और जहां ईवीएम से हुआ वहां उसका प्रदर्शन बेहतर रहा। यह किसी का ख्याली पुलाव था, लेकिन जब तक सच सामने आता तब तक झूठ के पांव लगाए जा चुके थे। लंदन में इंडियन जर्नलिस्ट एसोसिएशन की ओर से प्रायोजित तमाशे को देखकर वह तमाशा भी स्मरण हो आया जो दिल्ली विधानसभा में आयोजित हुआ था और जिसके तहत एक नकली ईवीएम के सहारे शुजा की तरह वोटिंग मशीन को हैक करने का दावा किया गया था।

यह सही है कि फर्जी खबरें शरारती तत्वों और एजेंडा चलाने वालों के जरिये फैलती हैं, लेकिन अक्सर उन्हें फैलाने में इंडियन जर्नलिस्ट एसोसिएशन सरीखे संगठन भी सहायक बनते हैं। इस पर हैरान न हों कि इंडियन जर्नलिस्ट एसोसिएशन सामान्य समझदारी को दरकिनार कर शुजा के बहकावे में कैसे आ गया, क्योंकि राफेल सौदे पर राहुल गांधी के दावे को सच मानने वालों की कमी नहीं। यह कमी राहुल गांधी की ओर से दिए गए इस बयान के बाद भी नहीं दिख रही कि ‘‘मेरे पास सुबूत नहीं, लेकिन राफेल में चोरी हुई है।’’ क्या राहुल का यह बयान ठीक वैसा ही नहीं जैसा सैयद शुजा ने ईवीएम को लेकर दिया?

(लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडीटर हैं)