हर्षवर्धन त्रिपाठी। Pinjra Tod Delhi Riots संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार समिति दिल्ली दंगों की साजिश के आरोपियों को छोड़ने का दबाव बना रही है। यूएनएचआरसी यानी संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार समिति की तरफ से जारी एक हालिया बयान में कहा गया है कि दिल्ली पुलिस ने छात्रों और नागरिक समाज के लोगों को नागरिकता कानून का विरोध करने की वजह से गिरफ्तार किया है और यह लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है। कमाल की बात यह है कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार समिति के बयान में दिल्ली में हुए दंगों का कोई जिक्र नहीं है। दिल्ली में हुए दंगों में 59 लोगों की जान गई थी और व्यापक संख्या में जानमाल का नुकसान हुआ था।

अब दिल्ली पुलिस एक-एक करके दिल्ली दंगों की साजिश करने वालों को गिरफ्तार कर रही है और उनके खिलाफ अभियोग पत्र दाखिल कर रही है। दिल्ली पुलिस ने देवांगना कलीता और नताशा नरवाल को नागरिकता कानून विरोधी आंदोलन में शामिल होने की वजह से नहीं गिरफ्तार किया है। दिल्ली पुलिस के अभियोग पत्र से स्पष्ट है कि दिल्ली दंगे स्वत: स्फूर्त घटना नहीं थे, बल्कि नागरिकता कानून विरोधी आंदोलन की बुनियाद पर योजनाबद्ध तरीके से इसकी साजिश की गई थी और इसकी साजिश के तार छात्र संगठन के नाम पर काम करने वाले पिंजरा तोड़ जैसे संगठनों से भी जुड़े हैं। अब संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार समिति के उन सभी लोगों की गिरफ्तारी पर चिंता जाहिर करना जो दिल्ली दंगों की साजिश से जुड़े बताए जा रहे हैं, इस साजिश में अंतरराष्ट्रीय ताकतों के जुड़े होने की ओर स्पष्ट इशारा करता है।

छात्रा हितों के लिए देश भर के विश्वविद्यालयों की छात्राएं आंदोलन में शामिल होती हैं, लेकिन पिंजरातोड़ की नताशा नरवाल और देवांगना कलीता ने छात्राओं के हितों के आंदोलन को पहले सीएए यानी नागरिकता कानून विरोधी आंदोलन और बाद में दिल्ली में अराजकता फैलाने वाले प्रदर्शन में इस्तेमाल कर लिया। इसी पिंजरा तोड़ संगठन की दो प्रमुख महिलाओं नताशा नरवाल और देवांगना कलीता को दिल्ली दंगों की साजिश के मामले में दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया है और इन दोनों पर बेहद गंभीर आरोप हैं। दोनों पर दिल्ली पुलिस की चार्जशीट में आरोप लगाया गया है कि इन्होंने लोगों को भड़काकर जाफराबाद में भीड़ एकत्रित की।

दिल्ली दंगों की चार्जशीट में जामिया समन्वय समिति की सदस्य सफूरा जरगर की गिरफ्तारी को मुद्दा बनाकर इसे दिल्ली पुलिस का मुसलमानों के प्रति दमनकारी रवैये के तौर पर प्रस्तुत करने की कोशिश हो रही है, लेकिन सच यह है कि नताशा नरवाल और देवांगना कलीता मुसलमान नहीं हैं और ऐसे ही दिल्ली दंगों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर शामिल होने के आरोप में दिल्ली पुलिस ने जितने लोगों को गिरफ्तार किया है, उसमें हिंदू और मुसलमान की संख्या लगभग बराबर है।

सीएए विरोधी प्रदर्शन की आड़ में दिल्ली दंगों में शामिल लोगों की गिरफ्तारी के बाद एक देशव्यापी साजिश स्पष्ट तौर पर नजर आ रही है। सच यही है कि देश के लगभग सभी विश्वविद्यालयों में छात्राओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए विश्वविद्यालय और छात्रावास प्रशासन एक समय के बाद किसी भी छात्रा को छात्रावास से बाहर रहने की स्वीकृति नहीं देता है।

खासकर स्नातक छात्राओं के लिए इस तरह के नियम देश भर में हैं, लेकिन पिंजरा तोड़ संगठन ने इसी व्यवस्था का शीर्षासन करा दिया और दिल्ली के मिरांडा हाउस से शुरू हुआ छात्रा अधिकारों का यह संगठन देश भर के विश्वविद्यालयों में छात्राओं को प्रशासन के खिलाफ उनके अधिकारों की बात करके खड़ा करने की कोशिश करता दिखा। पहली नजर में इसमें कोई बुराई नहीं दिखती, लेकिन जब पिंजरा तोड़ संगठन की पिछले तीन-चार वर्षों की गतिविधियों पर नजर डाली डाए तो समझ आता है कि यह छात्राओं को बंधन से मुक्ति दिलाने से बहुत आगे निकल गया था। जेएनयू में पिंजरा तोड़ 2016 में कश्मीर की आजादी के लिए आंदोलन करने लगता है और जम्मू कश्मीर लद्दाख से अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद दिल्ली में वामपंथी छात्र संगठनों के साथ इसका विरोध करता है।

नारावादी से मानवाधिकारवादी और धीरे-धीरे पिंजरातोड़ संगठन, भारतीय समाज और भारत को तोड़ने वाले संगठन में कब बदल गया, इसका अनुमान शायद पिंजरातोड़ के ज्यादातर आंदोलनकारियों को भी नहीं होगा और नागरिकता कानून विरोधी प्रदर्शनों के समय पिंजरा तोड़ का देशविरोधी चरित्र सामने दिखने लगा। छात्रा हित कहां पीछे छूट गए, पता ही नहीं चल रहा था। नताशा नरवाल और देवांगना कलीता दोनों हिंदू हैं, लेकिन सीएए को मुस्लिम विरोधी बताते हुए जामिया, जाफराबाद, सीलमपुर और शाहीनबाग के प्रदर्शनों में भीड़ जुटाने के साथ हिंदू विरोधी प्रदर्शनों का प्रमुख चेहरा बन गई थीं। पिंजरा तोड़ के प्रदर्शनों में महिला हित एकदम से गायब हो चुका था। देश के 500 शहरों में उत्पात मचाने और असम को भारत से काटने की बात करने वाले शरजील इमाम की गिरफ्तारी के बाद उसकी रिहाई के लिए भी पिंजरा तोड़ आंदोलन चला रहा था और सबसे खतरनाक कि जाफरबाद में भीड़ जुटाकर उस समय कानून व्यवस्था खराब करने की कोशिश की गई, जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप दिल्ली में थे।

छात्राओं के अधिकार के लिए शुरू हुआ संगठन पूरी तरह से देश विरोधी एजेंडे पर काम करता दिख रहा था और यहां तक कि इसमें वामपंथी विचारों के अलावा दूसरे किनारे लगने लगे। दिल्ली पुलिस की हालिया चार्जशीट के मुताबिक तो यह संगठन देश विरोधी हरकतों में शामिल हो चुका है। जातीय और सांप्रदायिक विभाजन इनकी गतिविधियों का नियमित हिस्सा बन चुका है।

आज इस संगठन की भूमिका को पूरी तरह से उजागर करने की जरूरत है, क्योंकि देश के छोटे बड़े शहरों के परिसरों में पिंजरा तोड़ महिला समानता के नाम पर घुस चुका है और अगर दिल्ली पुलिस की चार्जशीट में लगे आरोपों में सच्चाई है तो परिसरों में पिंजरा तोड़ का असली चेहरा भी छात्राओं के सामने आना जरूरी है। दिल्ली दंगों में इनकी भूमिका के बाद संगठन को पिंजरा तोड़ की बजाय भारत तोड़ संगठन कहना उचित रहेगा और अब दिल्ली दंगों के आरोपियों की गिरफ्तारी पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार समिति की तरफ से बयान आना देश के आंतरिक मामलों में दखल तो है ही, साथ ही यह भी दिखाता है कि भारत को अस्थिर करने की साजिश कितनी बड़ी है।

[वरिष्ठ पत्रकार]