बलबीर पुंज

हाल में चीन सरकार ने शिनजियांग प्रांत में कुछ इस्लामी नामों पर प्रतिबंध लगा दिया। कट्टरपंथ के बढ़ते खतरे को देखते हुए चीन ने इस अशांत मुस्लिम बहुल प्रांत में इस्लाम, इमाम, कुरान, मोहम्मद, जिहाद जैसे नामों को प्रतिबंधित सूची में डालने का फैसला किया। इस पर चीन के सदाबहार दोस्त पाकिस्तान का रवैया हैरान करने वाला है। वह पाकिस्तान जो अपने जन्म से ही कथित ‘काफिर’ भारत के विरुद्ध प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से युद्ध छेड़े हुए है और जो कश्मीर में पत्थरबाजों पर सुरक्षाबलों की कार्रवाई और शेष भारत में मुसलमानों की प्रताड़ना से जुड़े इक्का-दुक्का मामलों पर गला फाड़ने से नहीं थकता वह चीनी मुस्लिमों के सरकारी उत्पीड़न पर न केवल मौन है, बल्कि वैश्विक राजनीति में चीन का सहभागी भी बना हुआ है। क्यों? क्या यही है इस्लाम के प्रति पाकिस्तान की हमदर्दी। ह्युमन राइट वॉच की रिपोर्ट के अनुसार शिनजियांग में जिन इस्लामी नामों को प्रतिबंधित किया गया है वे नाम मुस्लिम समाज में काफी प्रचलित हैं। यदि प्रतिबंधित नामों की सूची से वहां किसी बच्चे का नाम रखा जाएगा तो उसे सरकारी सुविधाएं नहीं मिलेंगी। चीन में मुसलमानों सहित अन्य अल्पसंख्यकों की स्थिति पर गौर करने की जरूरत है। इस साम्यवादी देश में मुस्लिम आबादी लगभग 2.3 करोड़ है। जिसमें ‘हुई’ और ‘उइगर’ समुदाय के लोगों की संख्या एक-एक करोड़ है। ‘हुई’ की तुलना में ‘उइगर’ मुसलमानों की अधिकांश धार्मिक स्वतंत्रता पर अंकुश लगे हैं। इसका कारण उइगर मुस्लिमों का ‘पूर्वी तुर्किस्तान इस्लामिक आंदोलन’ है जिसका अंतिम लक्ष्य चीन से अलग होना है।
1949 में पूर्वी तुर्किस्तान, जो अब शिनजियांग है, को एक अलग राष्ट्र के रूप में कुछ समय के लिए पहचान मिली थी, किंतु जल्द ही चीन ने उसे हड़प लिया। 1990 के दशक में सोवियत संघ के पतन के बाद इस क्षेत्र की जनता ने आजादी के लिए काफी संघर्ष किया। उस समय उइगर समुदाय को मध्य-एशिया में कई मुस्लिम देशों का समर्थन भी मिला था। शिनजियांग में मुस्लिमों का दमन केवल इस्लामी नामों पर प्रतिबंध तक ही सीमित नहीं है। 2014 में प्रांतीय सरकार ने रोजा रखने, मुस्लिम पुरुषों के दाढ़ी बढ़ाने और महिलाओं के बुर्का पहनने पर पाबंदी लगा दी थी। यही नहीं, सरकार के सख्त निर्देशों के बाद वहां कई मस्जिदों और मदरसों को भी ढहा दिया गया। तुर्क मूल के उइगर मुसलमान कुछ वर्ष पूर्व तक शिनजियांग प्रांत में बहुसंख्यक थे, किंतु जब से वहां चीनी समुदाय ‘हान’ की संख्या और सेना की सक्रियता बढ़ी तब से वहां की जनसांख्यिकी में काफी बदलाव आया है। उइगरों के आंदोलन को दबाने के लिए चीन की सरकार शिनजियांग में हान नागरिकों को बसा रही है। साथ ही पक्षपाती नीतियों से उइगरों का शोषण भी कर रही है। जहां हान नागरिकों को नौकरियों में उच्च पदों पर नियुक्त किया जा रहा है वहीं उइगरों को दोयम दर्जे के रोजगार दिए जा रहे हैं। इस कारण वहां हान चीनियों और उइगरों के बीच हिंसक टकराव की खबरें आम हैं। शिनजियांग के अतिरिक्त चीन द्वारा कब्जाए तिब्बत में भी सरकार मानवाधिकारों का हनन कर रही है। वहां नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता, सांस्कृतिक और भाषाई विरासत को कुचला जा रहा है। तिब्बती बौद्धों को केवल दलाई लामा की फोटो रखने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया जाता है। चीन के राजनीतिक-सामाजिक जीवन में आज भी हिंसा से ओतप्रोत माओ और माक्र्स का ही वर्चस्व है। इसके उलट उसकी अर्थव्यवस्था में पूंजीवाद का बोलबाला है जहां श्रमिकों का शोषण ही सफलता की कुंजी है।
2011 की एक रिपोर्ट के अनुसार चीन में प्रतिवर्ष 2 लाख 87 हजार अर्थात प्रतिदिन 786 लोग आत्महत्या करते हैं। इनमें 75 फीसद मामले ग्रामीण क्षेत्रों के हैं। चीन की तथाकथित आर्थिक समृद्धि महानगरों में गगनचुंबी इमारतों, अस्त्र-शस्त्र से लैस विशाल सेना जैसे भव्य तिलिस्म का तानाबाना असंख्य चीनियों के क्रूर शोषण से ही संभव हुआ है। ऐसे में आखिर क्या वजह है कि खुद को दुनिया में इस्लाम के सबसे बड़े झंडाबरदार देश का तमगा हासिल करने के लिए लालायित पाकिस्तान चीन में मुस्लिमों पर हो रहे राज्य प्रायोजित अत्याचारों पर मौन है? इसमें तनिक भी संदेह नहीं कि पाकिस्तान में जनता द्वारा चुनी हुई सरकार का कोई औचित्य नहीं। वहां वास्तविक शक्तियां मजहबी जुनून से प्रेरित सेना और कट्टरपंथियों के हाथों में है। पाकिस्तान के पूर्व राजनयिक हुसैन हक्कानी की पुस्तक ‘बिटवीन द मॉस्क एंड द मिलिट्री’ और क्रिश्चियन फेयर की पुस्तक ‘फाइटिंग टू द एंड, द पाकिस्तान आर्मी वे ऑफ वार’ में पाकिस्तानी सेना और मुल्लाओं की सांठगांठ का विस्तार से विवरण है। उनका सार यही है कि पाकिस्तान का इकलौता निशाना केवल भारत है। हाल में सीमा पर दो भारतीय सैनिकों की नृशंस हत्या पाकिस्तान की इसी दुरभिसंधि का ही परिणाम है। पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान और अधिकांश जनमानस का एक ही एजेंडा रहा है कि भारत की सनातन बहुलतावादी संस्कृति को नष्ट कर भारतीय उपमहाद्वीप पर अरब प्रेरित इस्लामी निजाम को स्थापित किया जाए। यही कारण है कि पाकिस्तान की नई पीढ़ी को आरंभ से ही मदरसों और स्कूलों में भारत के खिलाफ घृणा का पाठ पढ़ाया जाता है और गैर-मुस्लिमों विशेषकर हिंदुओं को इस्लाम का दुश्मन बताया जाता है। उनका एक मिथ्या प्रचार यह भी है कि अंग्र्रेजों ने भारत आने के बाद मुगलों से जो कुछ छीना था वह मुसलमानों को वापस किया जाए। वास्तविकता इससे कोसों दूर है, क्योंकि अंग्रेजों के आगमन से पूर्व ही भारत का तमाम क्षेत्र इस्लामिक शासकों से मुक्त करा लिया गया था।
अलग-थलग पड़े पाकिस्तान से चीन की सहानुभूति का एकमात्र कारण दोनों देशों का भारत विरोधी साझा एजेंडा है। 1962 के युद्ध के बाद से चीन परोक्ष रूप से निरंतर भारत को अस्थिर करने का प्रयास कर रहा है। यदि भारत की सनातन संस्कृति को नष्ट करना पाकिस्तान का घोषित एजेंडा है तो उसे क्रियान्वित करना चीन की अघोषित नीति बन चुकी है। बांग्लादेश, बर्मा, नेपाल और पाकिस्तान में जिहादियों को प्रशिक्षण और ठिकाने उपलब्ध कराने में चीन की भूमिका जगजाहिर है। चीन भारत की सामरिक-आर्थिक घेराबंदी करने में भी जुटा है। आतंकी अजहर मसूद पर संयुक्त राष्ट्र में भारत के प्रस्ताव पर चीन का वीटो आतंक पर उसके दोहरे रवैये की पोल खोलता है। भारत में स्वयंभू सेक्युलरिस्ट भी चीन के इस रुख-रवैये पर पाकिस्तान की ही तरह मौन धारण किए हुए हैं जबकि आए दिन वे फलस्तीन पर इजरायल की कार्रवाई के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करते रहते हैं।
[ लेखक राज्यसभा के पूर्व सदस्य और वरिष्ठ स्तंभकार हैं ]