गौरव कुमार। कोरोना संकट की उत्पति को लेकर दुनिया लगातार चीन के प्रति संशय की दृष्टि से देख रही थी। ऐसे में ब्रिटिश प्रोफेसर एंगस डल्गलिश और नॉर्वे के महामारी संबंधी विज्ञानी डॉ. बिर्गर सोरेनसेन के एक नए अध्ययन में कुछ ऐसे नवीन प्रमाण सामने आए हैं जो चीन के नापाक इरादों की पोल खोलने वाला है। इस अध्ययन रिपोर्ट में दावा किया गया है कि कोरोना वायरस प्राकृतिक रूप से नहीं पनपा है, बल्कि चीनी विज्ञानियों ने वुहान लैब में इसे तैयार किया और रिवर्स-इंजीनियरिंग वर्जन से इसके बचाव की कोशिश की गई, ताकि यह लगे कि कोरोना वायरस चमगादड़ से प्राकृतिक रूप में विकसित हुआ है। काफी समय से चीन में कोरोना वायरस पर रेट्रो-इंजीनियरिंग के सबूत हैं, मगर उनके अध्ययन को कई अकादमिक और प्रमुख जर्नल ने अनदेखा कर दिया।

इस रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है कि चीन ने वुहान लैब में जानबूझकर प्रयोग से जुड़े तथ्यों को नष्ट किया। जिन विज्ञानियों ने इसे लेकर अपनी आवाज उठाई, उन्हें चुप या गायब कर दिया गया। अध्ययन में बताया गया है कि इस संबंध में सैंपल्स की जांच के दौरान वायरस में एक यूनिक फिंगरप्रिंट पाया गया जो लैब में वायरस के साथ छेड़छाड़ करने के बाद ही संभव है। इस अध्ययन के बाद से अमेरिका और ब्रिटेन कोविड-19 की संभावित उत्पत्ति की गहन जांच के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन पर लगातार दबाव बना रहे हैं।

 

चीन पर संदेह के अन्य कई कारण भी हैं। कोरोना वायरस सबसे पहले चीन में फैला और यहां हजारों लोग मारे गए जिसकी जानकारी चीन के सरकारी तंत्र द्वारा दी गई, किंतु कई जगह और कई माध्यम से इस आंकड़े को कम बताया गया। वैसे कहा यह भी जा रहा है कि चीन की यह पुरानी आदत है कि वह जानकारी छिपाता है या विश्व समुदाय तक अपनी बहुत सी जानकारी पहुंचने ही नहीं देता है। कई ऐसे सवाल मीडिया और विश्व समुदाय के विभिन्न मंचों से उठ रहे हैं कि यह वायरस चीन द्वारा जान बूझकर फैलाया गया है। इसके पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि विश्व की आर्थिक महाशक्ति बनने की चीन की पुरानी मंशा रही है और वह इस तरह की मानसिकता को पूरा करने के लिए जैविक हथियार का प्रयोग कर सकता है।

चीन द्वारा ऐसा करने के कारणों के साथ कुछ ऐसे प्रमाण भी हैं जिससे चीन पर दुनिया संदेह कर रही है। सबसे पहली बात कि चीन ने इस वायरस की जानकारी ही पूरी दुनिया से छिपाई। उन डॉक्टरों को भी प्रताड़ित किया गया जिन्होंने सबसे पहले इस वायरस की पहचान की और सरकार को चेतावनी दी थी। उसके बाद मौत के आंकड़ों को छिपाने का प्रयास किया गया। संदेह यह भी जाहिर किया गया कि चीन किसी जैविक हथियार की खोज में जुटा था। अभी इन आरोपों के साथ कोई प्रमाण दुनिया के सामने उपलब्ध नहीं है, इसलिए प्रमाणिक रूप से कुछ कहना आसान नहीं है। लेकिन जिस प्रकार की स्थिति चीन में बनी और फिर सुधरी व चीन ने जिस तरह की गतिविधियों को अंजाम दिया, वे संदेह को मजबूत अवश्य करते हैं।

दूसरी तरफ चीन कोरोना वायरस को लेकर शुरू से ही पारदर्शिता नहीं बरत रहा था। संक्रमण के मामले सामने आने के लगभग तीन सप्ताह बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन को इसकी सूचना दी गई। इस पूरे मामले का पर्दाफाश करने वाले वाले डॉ. ली वेनलिआंग ने चेतावनी दी कि यह सार्स जैसा वायरस हो सकता है। उन्होंने वेनलिआंग से इस वायरस से बचाव के लिए कदम उठाने की अपील की। इसके बाद डॉ. ली पर ही अफवाह फैलाने का आरोप लगा कर प्रताड़ित किया। चीन के नेशनल हेल्थ कमीशन ने आदेश दिया कि इस बीमारी के बारे में कोई भी सूचना सार्वजनिक नहीं की जाए। उसी दिन हुबेई के प्रांतीय स्वास्थ्य आयोग ने वुहान के सारे नमूनों को नष्ट कर दिया। चीन की इस लापरवाही ने विश्व को भयानक संकट के मुहाने तक लाने का काम किया।

संदेह का एक अन्य कारण यह भी है कि चीन में जब यह वायरस तेजी से फैलना शुरू हुआ तो उसने आश्चर्यजनक रूप से इस पर काबू पाने के उपाय भी शुरू कर दिए। चीन ने पूरे हुबेई प्रांत और यहां रहने वाले करोड़ों लोगों को क्वारंटाइन किया और इस वायरस की चपेट में आए लोगों के इलाज के लिए महज 10 दिनों में एक अस्थायी अस्पताल का निर्माण कर दिया। इन कदमों के उठाए जाने के बाद से चीन में यह वायरस काबू में आने लगा, लेकिन बाकी दुनिया में यह दो सप्ताह के भीतर ही 13 गुना तक बढ़ गया। यह वायरस इतनी तेजी से फैला कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना वायरस को एक महामारी घोषित करते हुए इससे निपटने के लिए दुनिया भर के देशों को तत्काल और आक्रामक कदम उठाने की सलाह दी। चीन के इन कदमों से भी संदेह बढ़ा।

अमेरिका और ब्रिटेन सहित कई देश इसे चीन की चाल बताते रहे हैं और चीन द्वारा उत्पन्न किया गया संकट मानते हैं। अंतरराष्ट्रीय मीडिया की कई रिपोर्ट में कोरोना वायरस को चीन के जैविक हथियार बनाने की कोशिश के तौर पर बताया गया है। एक नए अध्ययन ने इस संदेह की पुष्टि कर दी है। चीन ने दुनिया से झूठ बोला, अपनी सूचना साझा करने में देरी की, वायरस की जानकारी समय रहते नहीं दी और मौत के आंकड़े को छिपाया। ऐसा करके चीन ने मानवता के लिए गंभीर संकट पैदा किया है। विश्व समुदाय को इस संकट से निपटने के साथ चीन के इस घटिया कृत्य के लिए एकजुट होकर उसे दंडित करने के उपाय के बारे में सोचना होगा। साथ ही, वैश्विक स्तर पर उन मामलों को भी बल मिलना चाहिए जो विनाशकारी जैविक हथियार बनाने पर प्रतिबंध से जुड़ा है। वैश्विक शक्तियों की होड़ में मानवता को शर्मसार करने वाली प्रवृत्ति किसी भी रूप में निंदनीय और घृणित है जिसके लिए विश्व समुदाय को नए सिरे से इन प्रवृत्तियों को नियंत्रित करने के उपायों पर जोर देना होगा।

कोरोना वायरस का प्रकोप अभी भी लगभग पूरी दुनिया में बरकरार है। इस कारण समग्र मानव जाति का अस्तित्व संकट में है। टीकाकरण और कुछ उन्नत चिकित्सा के चलते इस महामारी से निपटने की राह कुछ आसान अवश्य हुई है, किंतु इससे उपजे संकट का निदान अभी मुश्किल है। इस वायरस की उत्पत्ति को लेकर भी वैश्विक स्तर पर सवाल उठते रहे हैं। अब तक के तथ्य इस बात को प्रमाणित करते हैं कि चीन के वुहान लैब में इस वायरस को विकसित किया गया और यह चीन का जैविक हथियार है।

[लोकनीति विश्लेषक]