[ विजय क्रांति ]: पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने दो नवंबर को गिलगिट में एलान किया कि उनकी सरकार गिलगिट-बाल्टिस्तान को पाकिस्तान के नए प्रांत का दर्जा देने जा रही है। इस एलान ने दक्षिण एशिया में पहले से कायम तनाव में एक और खतरनाक आयाम जोड़ दिया है। कुछ लोग इसे गत वर्ष भारत द्वारा जम्मू-कश्मीर का पुनर्गठन करने के खिलाफ केवल स्वाभाविक पाकिस्तानी प्रतिक्रिया मान रहे हैं। ऐसा आकलन न केवल सतही और अज्ञानता भरा, बल्कि चीन के उस षड्यंत्र को अनदेखा करने वाला भी होगा, जिसका लक्ष्य एक कमजोर और हताश पाकिस्तान के कंधे पर बंदूक रखकर लद्दाख पर भारत की पकड़ को कमजोर करना और अरब सागर में पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से लेकर पूरे बलूचिस्तान और गिलगिट-बाल्टिस्तान होते हुए शिनजियांग तक के इलाके पर स्थायी नियंत्रण कर लेना है।

जम्मू-कश्मीर, लद्दाख और गिलगिट-बाल्टिस्तान भारत का अटूट हिस्सा

भारत सरकार ने अपेक्षानुरूप इमरान के बयान की निंदा करते हुए जम्मू-कश्मीर, लद्दाख और गिलगिट-बाल्टिस्तान को 1947 में राज्य के संवैधानिक विलय के आधार पर कानूनी और हर तरह से भारत का अटूट हिस्सा बताया और पाक से इन्हें तुरंत खाली करने की मांग की।

चीन ने पाक के रास्ते अरब सागर तक अपनी पहुंच बनाने के लिए ‘सीपैक’ प्रोजेक्ट शुरू किया

चीनी नेता पाकिस्तान की सरकारों को तबसे गिलगिट-बाल्टिस्तान को पाकिस्तानी राज्य बनाने की सलाह देते रहे हैं, जबसे चीन ने पाक के रास्ते अरब सागर तक अपनी पहुंच बनाने के लिए अपने कब्जे वाले शिनजियांग प्रांत (ईस्ट-तुर्किस्तान) से लेकर पाकिस्तान के बलूचिस्तान में ग्वादर तक सड़क बनाने और वहां अपना नौसैनिक अड्डा बनाने का ‘सीपैक’ प्रोजेक्ट शुरू किया है। शुरू में 25 अरब डॉलर की लागत वाले इस प्रोजेक्ट को चीन ने बढ़ाते-बढ़ाते 60 अरब डॉलर का कर लिया है। इसका एक बड़ा हिस्सा भारत के साथ विवाद वाले गिलगिट-बाल्टिस्तान और पाक के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर (पीओजेके) के इलाकों से गुजरता है। चीन को वहां भारत की ओर से कानूनी अड़चनों और सैनिक कार्रवाई की आशंका बनी रहती है।

चीन पूरे गिलगिट-बाल्टिस्तान को 99 साल के लिए लीज पर लेने की फिराक में 

चीन चाहता है कि अगर पाकिस्तान इन इलाकों को कानूनी तौर पर अपने प्रांत घोषित कर देता है तो वह सीपैक और दूसरी कई रियायतों के लिए पाकिस्तान सरकार के साथ कानूनी संधि कर सकेगा। तब भारतीय विरोध केवल सैनिक चरित्र वाला रह जाएगा। भारत की सैनिक कार्रवाई की स्थिति में चीन को पाकिस्तान की मदद से भारत के खिलाफ दोहरे मोर्चे खोलने का बहाना मिल जाएगा। सीपैक प्रोजेक्ट की पूंजी और उस पर ब्याज के दबाव से पाक को राहत देने के लिए चीन पूरे गिलगिट-बाल्टिस्तान को 99 साल के लिए लीज पर लेने की फिराक में है।

गिलगिट-बाल्टिस्तान को लेकर चीन की और भी चिंताएं हैं

गिलगिट-बाल्टिस्तान को लेकर चीन की और भी चिंताएं हैं। लद्दाख में जिस गलवन घाटी पर अचानक हमला करके चीनी सेना ने कब्जे का प्रयास किया था, वह चीन के काराकोरम हाइवे की सुरक्षा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यह सड़क भारतीय क्षेत्र अक्साई चिन और पाकिस्तान से गिफ्ट के तौर पर मिले शक्सगाम के माध्यम से गिलगिट-बालटिस्तान के रास्ते नए सीपैक मार्ग को जोड़ती है। इस हमले का एक और चीनी लक्ष्य भारत के सियाचिन ग्लेशियर पर भी कब्जा जमाना था, जिससे अक्साई चिन और गिलगिट-बाल्टिस्तान के बीच भारतीय सेना की उपस्थिति खत्म हो जाए और चीनी सेना को गिलगिट-बाल्टिस्तान तक भारत की चुनौती से लगभग पूरी मुक्ति मिल जाए। इसके अलावा चीन की आंतरिक सुरक्षा और शिनजियांग पर अपना औपनिवेशिक कब्जा बनाए रखने के लिए भी गिलगिट-बाल्टिस्तान का चीन के लिए बहुत महत्व है।

उइगर मुसलमानों को खात्मे के लिए चीन करता है शिनजियांग में आतंकियों की मदद

1946 से 1949 के बीच चीनी कब्जे से पहले शिनजियांग का मूल नाम ईस्ट तुर्किस्तान है। उइगर मुसलमानों की आबादी वाला यह देश शुरू से ही चीन के लिए बड़ा सिरदर्द रहा है। चीनी कब्जे के बाद अपने देश की आजादी के लिए लड़ने वाले हजारों उइगर अपनी सीमा से लगते गिलगिट-बाल्टिस्तान और पाक के दूसरे इलाकों में जा बसे। वहीं से वे चीन के खिलाफ अपनी मुहिम चलाते आए हैं। इन उइगरों के खात्मे के लिए चीन कई दशकों से पाकिस्तान सरकार के अलावा वहां के कई जिहादी संगठनों और नेताओं की मदद लेता रहा है। अजहर मसूद जैसे आतंकियों और अन्य कट्टर मजहबी संगठनों को संयुक्त राष्ट्र की कार्रवाई से बचाने के लिए चीन सरकार जिस उत्साह से आगे बढ़़कर काम करती आई है, उसके पीछे शिनजियांग में उनकी मदद ही असली कारण है।

गिलगिट-बाल्टिस्तान मामले में भारत के खिलाफ किस्तान और चीन की नई योजना

गिलगिट-बाल्टिस्तान के मामले में पाकिस्तान और चीन की इस नई योजना के कुछ भू-राजनीतिक कारण भी हैं। अगर वे इसे पाकिस्तान का नया प्रांत बनाने की योजना में सफल होते हैं तो न केवल पीओजेके और गिलगिट-बाल्टिस्तान को भारत में वापस लाने की संभावनाएं लगभग समाप्त हो जाएंगी, बल्कि भारत के लिए अफगानिस्तान और मध्य एशिया के साथ अपना परंपरागत भौगौलिक संपर्क फिर से स्थापित करने का सपना भी टूट जाएगा।

1947 की विलय संधि के तहत गिलगिट-बाल्टिस्तान को भारत में शामिल होना था, लेकिन हो न सका

1947 की विलय संधि के तहत जम्मू-कश्मीर का हिस्सा होने के कारण गिलगिट-बाल्टिस्तान को भी भारत में शामिल हो जाना चाहिए था, लेकिन तब ब्रिटेन और अमेरिका ने नेहरू के सोवियत समर्थक नजरिये को ध्यान में रखते हुए अपना खेल खेल दिया। ब्रिटिश अफसर मेजर ब्राउन ने महाराजा हरिसिंह के अधिकारी गवर्नर घंसार सिंह को गिरफ्तार करके गिलगिट-बाल्टिस्तान का नियंत्रण पाकिस्तानी सेना को दे दिया, ताकि भारत और सोवियत संघ को जोड़ने वाला यह गलियारा उनके लिए बंद हो जाए।

गिलगिट-बाल्टिस्तान को खोते ही भारत का सीधा संपर्क अफगानिस्तान से कट गया

इस इलाके को खोते ही भारत का सीधा संपर्क अफगानिस्तान से भी कट गया और उसके रास्ते ईरान पहुंचने की संभावनाएं खत्म हो गईं। गिलगिट-बाल्टिस्तान का कानूनी चरित्र बदल कर उसे एक पाकिस्तानी प्रांत बदलने के बारे में इमरान के बयान का महत्व समझने के लिए यह जानना भी जरूरी होगा कि पाकिस्तानी संविधान में न तो उसके कब्जे वाले पीओजेके को और न नादर्न एरिया के नाम से मशहूर रहे गिलगिट-बाल्टिस्तान को पाकिस्तान का हिस्सा माना जाता है।

गिलगिट-बाल्टिस्तान को प्रांत बनने से भारत नहीं रोक पाता तो देश की सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी

भारत के साथ विवादित क्षेत्र होने के कारण पाकिस्तान का इन इलाकों पर सैन्य नियंत्रण तो है, पर उनका प्रशासन मिनिस्टरी ऑफ कश्मीर अफेयर्स एंड गिलगिट-बाल्टिस्तान नामक एक विशेष मंत्रालय चलाता है, जिस पर फौज-आइएसआइ के अफसरों का कब्जा है। यदि पाकिस्तान इमरान की घोषणा को अमली जामा पहनाने में सफल रहता है और भारत इसे नहीं रोक पाता तो जम्मू-कश्मीर और लद्दाख की सीमाओं पर भारत की सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी।

( लेखक सेंटर फॉर हिमालयन एशिया स्टडीज एंड एंगेजमेंट के चेयरमैन हैं )