अभिषेक कुमार सिंह। हमारे समाज में बच्चों के खिलौनों को अक्सर किसी गंभीर चर्चा का विषय नहीं माना जाता। यह देखने की कोशिश भी नहीं होती है कि बच्चे जिन खिलौनों से खेलकर बड़े होते हैं बचपन में उनका क्या महत्व है, वे कहां से आते हैं और उनका क्या बाजार है? लेकिन इधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी एक चर्चा छेड़ी है। अपने रेडियो कार्यक्रम-मन की बात (30 अगस्त, 2020) में इसका उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि खिलौने ऐसे होने चाहिए, जिनके रहते बचपन खिले भी, खिलखिलाए भी। ऐसे खिलौने बनाए जाएं, जो पर्यावरण के भी अनुकूल हों। सबसे जरूरी बात यह है कि अब लोकल खिलौनों के लिए वोकल होने का समय है। कोशिश हो कि देश में ही नई किस्म और अच्छी क्वालिटी वाले खिलौने बनाए जाएं।

बच्चों के विकास में खिलौनों की भूमिका : हालांकि हमारी राष्ट्रीय शिक्षा नीति में खिलौनों के महत्व पर ध्यान देते हुए यह सुनिश्चित किया गया है कि बच्चे खेल-खेल में सीखें और खिलौने उनके पाठ्यक्रम का हिस्सा हों। भोजन और कपड़े भले ही बच्चों की अहम जरूरत हैं, लेकिन जितनी खुशी उन्हें खिलौने पाकर मिलती है, उसकी तुलना में बाकी चीजें गौण हो जाती हैं। खिलौनों की मदद से बच्चों की दिनचर्या में सक्रियता बढ़ती है और धीरे-धीरे वे उनकी आंखों में सपने भरते हुए उन्हें एक मकसद की तरफ ले जाते हैं। बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास में खिलौनों की भूमिका भी काफी बढ़-चढ़कर आंकी गई है, पर खिलौनों के ताजा प्रसंग की एक वजह इन सबसे ऊपर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय खिलौना निर्माताओं से मांग की है कि वे ऐसे खिलौने बनाएं, जिसमें एक भारत- श्रेष्ठ भारत की झलक हो और उस खिलौने को देख दुनिया वाले भारतीय संस्कृति, पर्यावरण के प्रति भारत की गंभीरता और भारतीय मूल्यों को समझ सकें।

भारतीय बाजारों में चीन का दबदबा : एक हैरान करने वाली सूचना यह भी है कि भारतीय बाजारों में चीनी खिलौने छाए हुए हैं। आश्चर्य तो यह है कि चीन से आयात होने वाली वस्तुओं में चाइनीज खिलौने शीर्ष पर हैं। भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स बाजार में चीनी दखल की तो सूचना काफी समय से थी। स्थिति यह है कि भारतीय बाजार में बिकने वाले 73 फीसद मोबाइल (स्मार्ट) फोन चीनी कंपनियों के हैं। इसके अलावा 45 प्रतिशत टीवी सेट या तो चीन में बनाकर यहां बेचे जाते हैं या चीनी कंपनियों की भारत स्थित फैक्टियों में उनका निर्माण होता है। मोबाइल हैंडसेट और टेलीविजन बनाने वाली भारतीय कंपनियां भी संबंधित 65 से 70 फीसद पार्ट्स और उपकरण चीन से मंगाती हैं।

हमारे देश में 75 प्रतिशत एयरकंडीशनर भी चीन से आ रहे हैं। चमड़े से बनी वस्तुओं के मामले में चीन का हिस्सा आठ फीसद और ऑटो उपकरणों में 20 फीसद है। इसी तरह का मामला सौर पैनल और वाशिंग मशीन आदि उपकरणों का है, जिसमें भारत काफी हद तक चीन पर निर्भर है। जब नजर भारत को सस्ती जेनेरिक दवाओं का केंद्र बनाने और इनके निर्यात में अव्वल आने की घटनाओं पर पड़ती है, तो पता चलता है कि वर्ष 2019 में दुनिया को अरबों रुपये की जेनेरिक दवाएं बेचने वाले भारत को इन दवाओं का 70 फीसद कच्चा माल चीन से मिलता है। यही नहीं, कपड़ों, बिजली की लड़ियों, पटाखों और तमाम दूसरे घरेलू सामानों के मामले में चीन पर हमारी निर्भरता इस मानसिकता के बावजूद बढ़ती गई कि चीनी माल टिकाऊ नहीं होता। हालांकि इसकी पहली वजह थी कि चीनी वस्तुएं हमारे अपने बनाए सामानों के मुकाबले सस्ती थीं और उनमें ऐसा अनूठापन था, जो हमें भारतीय कंपनियों के उत्पादों में नहीं दिखता है। विश्व बाजार की जरूरतों को समझते हुए धीरे-धीरे चीनी उत्पादकों ने हमारे बाजार में खड़ा होना सीख लिया, लेकिन बच्चों के खिलौनों के मामले में भी चीन की घुसपैठ सबसे ज्यादा हैरान करने वाली सूचना है।

खिलौनों का बच्चों की खुशी से क्या रिश्ता है इसका खुलासा कई अध्ययनों से हो चुका है। अमीर हों या गरीब, खिलौने पाकर बच्चों में नई उम्मीदों का संचार होता है। महानगरीय अकेलापन ङोल रहे बच्चों को खिलौने बड़ा सहारा देते आए हैं, तो गरीब बच्चे भी अपने आसपास की चीजों को खिलौने में तब्दील कर खुशी बटोरते आए हैं। कोरोना वायरस के कारण घरों में बंद बच्चों को खिलौनों ने अत्यधिक सहारा दिया है। हालांकि अब ज्यादातर खिलौने ऐसे हैं, जो इलेक्ट्रॉनिक हैं या उन्हें घरों के भीतर खेला जाता है। पहले के सांप-सीढ़ी, लूडो, गिल्ली-डंडे जैसे खेल-खिलौनों की जगह अब बिल्डिंग ब्लॉक, कई किस्मों के इलेक्ट्रॉनिक खिलौनों और साइकिल, स्केटर, टॉय कार, बाइक से लेकर ड्रम, डॉल, टेडी बियर आदि ने ले ली है।

सेफ्टी के मामले में फेल : प्लास्टिक से बने और इलेक्ट्रॉनिक खिलौनों में कोई ज्यादा बुराई नहीं है, पर समस्या बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले उनके नकारात्मक असर की है। जिन खिलौनों को हम बच्चों के शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य में कुछ सकारात्मकता जोड़ने की नजर से देखते हैं, अगर वे उल्टा असर डालने लगें, तो यह एक बड़ी चिंता है। इसका एक खुलासा पिछले ही साल क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया की ओर से कराए गए टेस्टिंग सर्वे में हुआ था। उसकी रिपोर्ट में कहा गया था कि खासतौर से चीन से मंगाए जा रहे खिलौने स्वास्थ्य की कसौटी पर नाकाम साबित हुए हैं। पाया गया कि वे सुरक्षा मानकों को पूरा नहीं करते।

पिछले वर्ष दिल्ली-एनसीआर के खिलौना बाजारों से उठाए गए सैंपलों में से 67 फीसद खिलौनों की रिपोर्ट निगेटिव आई थी। सिर्फ 33 प्रतिशत खिलौनों को कसौटी पर खरा पाया गया था। इनमें भी प्लास्टिक से बने खिलौनों को और भी घातक पाया गया था। करीब 80 फीसद प्लास्टिक के खिलौने सेफ्टी के मामले में फेल हो गए थे। खराब क्वालिटी वाले खिलौने बच्चों की नाजुक त्वचा को नुकसान पहुंचाते हैं। प्लास्टिक के 30 फीसद खिलौनों में भारी धातुओं जैसे कि सीसा की उपस्थिति दर्ज की गई है, जो कैंसर का प्रमुख कारक है। टेडी बियर जैसे 45 फीसद सॉफ्ट टॉयज में हानिकारक केमिकल (पैथालेट्स) की मौजूदगी पाई गई है। 75 प्रतिशत इलेक्ट्रॉनिक खिलौनों की रिपोर्ट भी नकारात्मक आई है। वैसे तो ज्यादातर खिलौने चीन से आते रहे हैं, पर हांगकांग, जर्मनी, मलेशिया, श्रीलंका और अमेरिका से भी हमारे देश में खिलौने आयात किए जाते हैं। गुणवत्ता के पैमाने पर ज्यादातर में खामियां मिलने के बाद वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रलय ने आयातित खिलौनों के खिलाफ सख्त कदम उठाने की बात कही थी, जिसका असर अब देखा जा रहा है।

नई नीतियों के तहत खिलौनों की खेप आधारित जांच अनिवार्य की जा सकती है। देश में केवल अच्छी क्वालिटी के खिलौनों का आयात पक्का करने के लिए हर खेप में से अपनी इच्छा से कोई भी सैंपल ले लिया जाएगा और जांच एवं मंजूरी के लिए उसे मान्यता प्राप्त लैब में भेज दिया जाएगा। यदि सैंपल जरूरी मानदंडों पर खरा नहीं उतरेगा, तो वह खेप या तो वापस भेज दी जाएगी या फिर उसे नष्ट कर दिया जाएगा। ऐसे खिलौनों को नष्ट करने के खर्च की वसूली आयातक से की जाएगी। घरेलू बाजार में सस्ते और घटिया खिलौनों की बाढ़ रोकने में क्वालिटी कंट्रोल ऑर्डर एक प्रभावी तरीका साबित हो सकता है। चूंकि देश में बिकने वाले ज्यादातर खिलौने आयातित होते हैं, इसलिए बहुत मुमकिन है कि बाजार में कुछ समय के लिए खिलौनों की कमी हो जाए।

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