जितनी तेजी से देश विभिन्न क्षेत्रों में तरक्की कर रहा है और आधुनिकता की ओर बढ़ रहा है, उसे देखते हुए माना जा रहा है कि देश से बहुत-सी कुप्रथाएं और कुसंस्कृतियां धीरे-धीरे कम हो रही हैं। इन्हीं कुप्रथाओं में एक बाल विवाह भी है। शहरों की चमक दमक की दुनिया में रहने वाले अधिकांश लोगों के लिए शायद बाल विवाह एक पुराने समय की कोई रीति मात्र लगती होगी, लेकिन यदि आंकड़ों की नजर से देखा जाए तो आज भी काफी बड़ी संख्या में देश में बाल विवाह होते हैं और ऐसा सिर्फ गांवों या दूर-दराज के कस्बों में ही नहीं होता, बल्कि शहरी जीवन व्यापन कर रहे पढ़े-लिखे आधुनिक लोग भी ऐसा करने से गुरेज नहीं करते। जनगणना के आंकड़ों के अनुसार देश में करीबन 1.2 करोड़ बच्चों की शादी दस वर्ष की उम्र से पहले हो गई, जिनमें 65 फीसद लड़कियां हैं।

आजादी के इतने वर्षो बाद भी देश में बाल विवाह का जारी रहना बेहद दुखद और चिंता का विषय है। गौरतलब है कि जिस समय बच्चों के हाथ में कापी-पेंसिल होनी चाहिए, उम्र के उस दौर में वह विवाह जैसी जिम्मेदारियों का वहन कर रहे हैं। जनगणना के आंकड़ों के अनुसार इस समय देश के ग्रामीण क्षेत्रों में 57.58 लाख लड़कियां और 27.69 लाख लड़के दस वर्ष से कम उम्र में विवाहित हैं, वहीं शहरी क्षेत्रों में 20.69 लाख लड़कियों और 14.95 लाख लड़कों का विवाह दस वर्ष की उम्र से पहले ही करा दिया गया है। गांवों-शहरों में इस कुरीति के अब तक पैर जमाने का एक मुख्य कारण कहीं न कहीं अशिक्षा और अज्ञानता ही रही है। तथ्य भी इस ओर इशारा करते हैं कि 10 निरक्षर विवाहित बच्चों में से आठ लडकियां हैं। अर्थात लड़कियों को न तो शिक्षा के महत्व के बारे में पता है और न ही अपने अधिकारों का ज्ञान। उन्हें तो किसी पालतू जानवर की भांति किसी खूंटे से बांध दिया जाता है और उनके नन्हे कंधों पर बेहद कम उम्र में ही परिवार की सारी जिम्मेदारियों का बोझ लाद दिया जाता है। इतना ही नहीं, कम उम्र में विवाह होने के कारण उन्हें अपनी इच्छा के विरुद्ध मां भी बनना पड़ता है और कच्ची उम्र में गर्भधारण से कई तरह की समस्याओं से वे जिंदगीभर जूझती रहती हैं। भारत में महिलाओं के असमय मौत का एक मुख्य कारण उनका बाल विवाह भी होता है। वहीं लड़कों को भी कम उम्र में विवाह के कारण काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इतनी कम उम्र में विवाह के कारण वे विवाह संस्कार की वास्तविक परिभाषा और उसकी जिम्मेदारियों को समझ ही नहीं पाते हैं। कभी-कभी तो उन्हें भी अपनी पढ़ाई से किनारा कर पारिवारिक जिम्मेदारियों का बोझ वहन करना पड़ता है।

यह मासूम बच्चे वास्तव में देश की असली धरोहर हैं। अगर उन्हें प्रेम और शिक्षा का साथ मिले तो वे न सिर्फ स्वयं की, बल्कि देश की तस्वीर भी बदल सकते हैं। कम उम्र में इनके कंधों पर विवाह का बोझ डालकर न सिर्फ हम उनका जीवन बर्बाद कर रहे हैं, बल्कि इससे देश का भविष्य भी कहीं न कहीं प्रभावित हो रहा है। अब समय आ गया है कि सर्वशिक्षा अभियान को पूर्ण रूप से सफल बनाकर देश के हर बच्चे के हाथ में किताबें देकर उसे अपना और देश का भविष्य गढ़ने का मौका दिया जाए। नेल्सन मंडेला ने भी कहा था कि शिक्षा एक ऐसा महत्वपूर्ण औजार है, जिसके जरिए आप चाहें तो दुनिया बदल सकते हैं। बाल विवाह को रोकना और बच्चों को शिक्षित करने का यह कार्य सिर्फ सरकार द्वारा ही संभव नहीं है, बल्कि समाज को भी अपनी सोच में परिवर्तन लाना होगा। उसको यह समझना होगा कि जब समाज बदलेगा, तभी देश बदलेगा। बच्चों को कम उम्र में विवाह के बंधन में बांधने के बजाय उन्हें अपने सपनों को पूरा करने का मौका दें।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)