[ अवधेश कुमार ]: दिल्ली की केजरीवाल सरकार द्वारा देशद्रोह के चार साल पुराने मामले में मुकदमा चलाने के लिए दिल्ली पुलिस को मंजूरी दिए जाने के साथ जो विवाद पैदा हुआ उसे स्वाभाविक माना जाना चाहिए। जेएनयू में देशद्रोही नारे के साथ हुई कानूनी कार्रवाई के बाद राजनीतिक दलों ने जैसा हंगामा किया था और छात्रों के समर्थन में जैसी सभाएं हुई थीं उन्हें याद करिए तो मौजूदा विवाद कुछ नहीं है। जब गैर भाजपा दलों के ज्यादातर नेताओं ने नारा लगाने वालों के पक्ष में एकजुटता दिखाई, सरकार को फासीवादी से लेकर और न जाने क्या-क्या कहा तो वे इन पर मुकदमा चलाने की अनुमति का समर्थन कैसे कर सकते हैं? 

पी चिदंबरम ने कन्हैया कुमार पर राजद्रोह का केस चलाने की मंजूरी देना का किया विरोध

पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि दिल्ली सरकार की समझ भी राजद्रोह कानून को लेकर केंद्र सरकार से कम नहीं है। कन्हैया कुमार और अन्य के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए और 120बी के तहत राजद्रोह का केस चलाने की मंजूरी देने का मैं कड़ा विरोध करता हूं। दूसरी पार्टियां कह रहीं हैं कि भाजपा और आप एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जब तक केजरीवाल सरकार फाइल पर चुपचाप बैठी थी तब तक वह सही थी, लेकिन जैसे ही उसने अनुमति दी वह खलनायक हो गई। क्या मुकदमा चलाने की अनुमति मांगने वाली फाइल पर कोई निर्णय होना ही नहीं चाहिए था?

चिदंबरम ने लोकसभा चुनाव में देशद्रोह कानून खत्म करने का किया था वायदा

चिदंबरम लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की घोषणा पत्र समिति के अध्यक्ष थे, जिसमें देशद्रोह कानून खत्म करने का वायदा किया गया था। अगर आप एक वर्ष में न्यायिक कार्रवाई को देखें तो न्यायालय ने बार-बार पूछा कि अनुमति क्यों नहीं मिल रही है? जिन लोगों को न्यायालय पर विश्वास है उनको तो मांग करनी चाहिए थी कि दिल्ली सरकार मुकदमा चलाने वाली फाइल का निस्तारण करे। आखिर न्यायालय बिना तथ्यों के किसी को सजा तो दे नहीं सकता।

राजद्रोह मामले में दिल्ली सरकार की मंजूरी के बिना 14 जनवरी 2019 को आरोप पत्र दाखिल

नियमों के मुताबिक जांच एजेंसियों को राजद्रोह के मामलों में आरोपपत्र दाखिल करने के लिए राज्य सरकार की मंजूरी लेनी होती है। दिल्ली सरकार के रवैये को देखते हुए दिल्ली पुलिस ने 14 जनवरी 2019 को पटियाला हाउस की विशेष अदालत में आरोप पत्र दाखिल कर दिया। आरोप पत्र दाखिल होने के बाद अगली तारीख पर न्यायालय ने दस दिनों में मंजूरी लाने का समय दिया। कायदे से 24 जनवरी को इसकी अनुमति मिल जानी चाहिए थी। 20 जनवरी 2019 को न्यायालय ने दिल्ली के विधि विभाग से बिना अनुमति लिए आरोप पत्र दाखिल करने पर दिल्ली पुलिस से सवाल भी किए।

दिल्ली सरकार ने औपचारिकता पूरी करने के नाम पर न्यायिक प्रक्रिया को बाधित रखा

पुलिस ने अदालत से कहा कि वह दस दिनों में विधि विभाग और अन्य संबंधित विभागों से मंजूरी ले लेगी। 6 फरवरी 2019 को न्यायालय ने नाराजगी जताते हुए कहा कि वे फाइल दबाकर बैठ नहीं सकते। इसके बाद यह बताने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए कि किस तरह दिल्ली सरकार ने एक औपचारिकता पूरी करने के नाम पर न्यायिक प्रक्रिया को बाधित रखा।

कन्हैया कुमार समेत 10 के खिलाफ 1200 पृष्ठों का आरोप पत्र दाखिल

14 जनवरी 2019 को दिल्ली पुलिस ने कन्हैया कुमार समेत 10 लोगों के खिलाफ जो आरोप पत्र दाखिल किया उस पर नजर डालना आवश्यक है। जेएनयू परिसर में 9 फरवरी 2016 को जिस तरह के नारे लगे उन्हें देश हजारों बार सुन चुका है। यह कार्यक्रम संसद हमले के मास्टरमाइंड अफजल गुरु को फांसी दिए जाने की बरसी पर आयोजित किया गया था। 1200 पृष्ठों के आरोप पत्र में कन्हैया, उमर खालिद अनिर्बान भट्टाचार्य, शेहला रशीद, अकीब हुसैन, मुजीब हुसैन आदि के नाम शामिल हैं। 36 अन्य के नाम आरोप पत्र के कॉलम संख्या 12 में हैं। इनके खिलाफ सबूतों को अपर्याप्त बताया गया है।

आरोपियों के खिलाफ धारा 124ए के अलावा अन्य कई धाराओं के तहत आरोप लगाए गए

आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए के अलावा अन्य कई धाराओं के तहत आरोप लगाए गए हैं। इन धाराओं को लेकर दो मत हो सकते हैं, किंतु पुलिस ने काफी प्रमाण और तथ्य पेश किए हैं। इन आरोपियों ने पूछताछ में बताया कि उन्हें ज्यादा से ज्यादा छात्रों को लेकर आने के लिए कहा गया था। वीडियो की फोरेंसिक जांच कराई गई और सही साबित होने के बाद आरोप पत्र में शामिल किया गया। 

फैसला जो भी हो, लेकिन जो नारे लगे उन्हें देश विरोधी मानने में किसी को संकोच नहीं हो सकता

पुलिस के साक्ष्य एवं गवाह कहां तक ठहरते हैं, इस बारे में कोई टिप्पणी करना उचित नहीं है। आरोप पत्र में कहा गया है कि 9 फरवरी 2016 की गतिविधि के लिए अनुमति की प्रक्रिया भी पूरी नहीं की गई थी। प्रदर्शनकारियों को रोका गया और बताया गया कि कार्यक्रम के लिए अनुमति नहीं है। कन्हैया कुमार आगे आए और सुरक्षा अधिकारी के साथ बहस करने लगे और भीड़ में मौजूद लोगों ने नारेबाजी शुरू कर दी। हालांकि कन्हैया ने स्वयं नारे लगाए या नहीं या जिन लोगों ने नारे लगाए उनको समर्थन दिया या नहीं, इसे साबित करना आसान नहीं होगा। फैसला जो भी हो, लेकिन जो नारे लगे उन्हें देश विरोधी मानने में किसी को संकोच नहीं हो सकता।

तुम कितने अफजल मारोगे, हर घर से अफजल निकलेगा, इन नारों से देश का खून खौल गया था

नारों पर ध्यान दीजिए, तुम कितने अफजल मारोगे, हर घर से अफजल निकलेगा। हम क्या चाहें आजादी, कहकर लेंगे आजादी। कश्मीर मांगे आजादी। भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी जंग रहेगी..। इन नारों से पूरे देश का खून खौल गया था। जेएनयू में कंट्री विदाउट ए पोस्ट ऑफिस के नाम से कार्यक्रम आयोजित किया गया था। इसके पोस्टर पर छोटे अक्षरों में लिखा था- लोकतांत्रिक अधिकार..आत्मनिर्णय के समर्थन के लिए, कश्मीरी लोगों के संघर्ष के साथ एकजुटता में। अफजल और मकबूल की न्यायिक हत्या के खिलाफ। पोस्टर की ये पंक्तियां भी देश विरोधी थीं। 

मुकदमा चलाने की औपचारिकता में इतनी देरी दिल दहलाने वाली है

कोई भारत की बर्बादी का, भारत को तोड़ने का नारा लगाए और जिन्हें हमारे सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा दी उसे न्यायिक हत्या कहे तो उसे भारत विरोधी नहीं तो और क्या कहा जा सकता है? अफजल और मकबूल के अरमानों को पूरा करने के संकल्प का अर्थ क्या है? यह देश का दुर्भाग्य है कि ऐसा मामला भी राजनीतिक विकृति का शिकार हो गया। इसके दोषियों को चिन्हित कर अब तक सजा मिल जानी चाहिए थी। ऐसे लोगों के खिलाफ मुकदमा चलाने की औपचारिकता में इतनी देरी दिल दहलाने वाली है।

( लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं )