[विजय क्रांति]। कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन शुरू होने के बाद देश के नीति निर्धारकों और जनता को पहली बार अहसास हुआ कि उनके शहरों में प्रवासी मजदूर नाम का प्राणी भी रहता है। अपने घर से सैकड़ों किमी दूर आकर बसा यह मजदूर न केवल अपने बाल-बच्चों के लिए रोटी कपड़े का जुगाड़ करता है, बल्कि अपने पैतृक और मेजबान, दोनों राज्यों की अर्थव्यवस्था के रथ का सारथी भी बनता है। वह देश की विकासगाथा का विश्वकर्मा है, लेकिन दुर्भाग्य से लॉकडाउन के प्रारंभ में ही मेजबान राज्यों ने दिखा दिया कि उनके साथ उनका रिश्ता पीकर फेंक दी जाने वाली कोला की प्लास्टिक बोतल से ज्यादा कुछ नहीं है।

राजनीतिक दलों, टीवी चैनलों, कविताबाज बुद्धिजीवियों और हर अच्छी-बुरी घटना को राक्षसी रूप देने में माहिर सोशल मीडिया ने परंपरागत उस्तादी दिखाते हुए इस बिरादरी की चिंताओं को हताशा में बदलने से ज्यादा कुछ नहीं किया। तपती सड़कों पर घर की ओर जाने के लिए पहले तो उन्हें उकसाने के हथकंडे अपनाए गए, फिर उन्हें तमाशा बनाकर छोड़ दिया गया। यह एक ऐसी घटना है जिस पर भारतीय समाज को अभी सोचना और शर्मिंदा होना बाकी है, लेकिन लॉकडाउन खुलने के साथ ही कालचक्र अचानक उलटी दिशा में दौड़ने लगा है। जो मजदूर दो-तीन हफ्ते पहले अपने गांव लौटने के लिए बस और रेलगाड़ी के लिए मारे-मारे फिर रहे थे, उन्हें अब वापस लाने के लिए कंपनियों के मालिक चार्टर्ड हवाई जहाज और वोल्वो बसों की फ्लीट भेज रहे हैं।

इसके लिए कुछ सबक सीखना है जरूरी

अगली बार ऐसी आपदा आने पर इन विश्वकर्माओं को फिर से नंगे पांव न भागना पड़े और अर्थव्यवस्था का पहिया फिर से गड्ढे में न जा फंसे, इसके लिए कुछ सबक सीखना जरूरी है। केंद्र सरकार और यूपी जैसी कुछ राज्य सरकारों ने प्रवासी कामगारों के रजिस्ट्रेशन, राष्ट्रीय राशनकार्ड और आवास योजना जैसे कुछ कदम उठाने की बात कही है, लेकिन इस तरह के पैचवर्क के बजाय राष्ट्रीय स्तर पर एक ऐसी ठोस प्रवासी मजदूर नीति की जरूरत है जो इस विषय के सभी पहलुओं का दीर्घकाल तक ध्यान रखे। इस संदर्भ में कम से कम ऐसे दस कदम गिनाए जा सकते हैं जो ऐसी राष्ट्रीय रणनीति का आधार बन सकते हैं।

आधारकार्ड से जुड़े बैंक खाते और पैन कार्ड की हो व्यवस्था

एक-भारत भर में काम करने वाले कुशल और अकुशल कामगारों का एक राष्ट्रीय रजिस्टर तैयार किया जाए, जिसमें प्रत्येक कामगार के बारे में मूलभूत जानकारी के अलावा उसकी कुशलता, विशेषज्ञता और अनुभव का विवरण हो। दो-प्रत्येक कामगार के लिए उसके आधारकार्ड से जुड़े बैंक खाते और पैन कार्ड की व्यवस्था की जाए। इस खाते के आधार पर स्वचालित प्रणाली से या उसकी व्यक्तिगत पहल पर हर कामगार की ओर से हर साल आयकर रिटर्न दाखिल करने की व्यवस्था हो। रिटर्न भरे जाने का लाभ यह होगा कि सरकार के लिए संकटकाल में आर्थिक सहायता की पात्रता पहचानने और इस सहायता को ठीक समय पर उसके खाते में जमा करना संभव हो जाएगा। तीन आयुष्मान भारत योजना की तर्ज पर प्रत्येक प्रवासी मजदूर के लिए सरकार और नियोक्ताओं की ओर से जीवन, स्वास्थ्य और दुर्घटना बीमा की व्यवस्था की जाए जो कोरोना जैसे संकटकाल में उसके और उसे परिवार के लिए सामाजिक सुरक्षा की भरोसेमंद ढाल साबित हो सके।

कामगारों के कौशल को अगले स्तर पर ले जाने की प्रशिक्षण हो सुविधाएं

चार-प्रवासी मजदूरों के लिए राज्य सरकारों, स्थानीय निकायों और उद्योग एवं व्यापार संगठनों के सहयोग से हर शहर, कस्बे और औद्योगिक क्षेत्र में ऐसी आवास शृंखलाएं विकसित की जाएं जहां रहने की मूलभूत, स्वस्थ और सुरक्षित सुविधाएं सब्सिडाइज्ड दामों पर उपलब्ध हों। पांच-हर प्रवासी कामगार को कृषि न्यूनतम मूल्य की तर्ज पर न्यायसंगत व्यावसायिक अधिकार, जिम्मेदारी और न्यूनतम सुविधाएं सुनिश्चित करने वाला एक अनुबंध तैयार किया जाए जिसका पालन अनिवार्य हो। छह रोजगार एक्सचेंज व्यवस्था का आधुनिकीकरण करके राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर कृषक ई-मंडी की तर्ज पर ऑनलाइन व्यवस्था विकसित की जाए। सात-सभी आइटीआइ और अन्य कौशल विकास केंद्रों का राष्ट्रीय स्तर पर ऐसा नेटवर्क तैयार किया जाए जो देश भर के उद्योग, व्यापार और सेवा उद्यमों के साझे प्लेटफॉर्म का काम करे। इसके माध्यम से नियोक्ता की तुरंत और भविष्यकालीन आवश्यकताओं के अनुकूल टेलर-मेड कौशल प्रशिक्षण कोर्स विकसित किए जाएं तथा पहले से काम कर रहे कामगारों के कौशल को अगले स्तर पर ले जाने की प्रशिक्षण सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जाएं।

शोध एवं विकास प्रोजेक्ट चलाए जाएं

आठ-देश भर में ऐसे मैनेजमेंट कोर्स केंद्रों का नेटवर्क खड़ा किया जाए जो कम शिक्षित और अर्ध शिक्षित, लेकिन ऐसे अनुभवी कामगारों को सहयोग और मार्गदर्शन दे जो खुद अपने उद्यम शुरू करना चाहते हैं। नौ-ऐसे टेक्नोलॉजी विकास केंद्र शुरू किए जाएं जिनमें उद्योगों और व्यक्तिगत हस्तकलाओं में उपयोग होने वाले परंपरागत औजारों को बेहतर बनाने, कारीगरों की कार्यकुशलता और उत्पादकता बढ़ाने तथा हाथ से काम करने वाली प्रणालियों के मशीनीकरण और ऑटोमेशन का प्रशिक्षण देने वाले शोध एवं विकास प्रोजेक्ट चलाए जाएं। दस-कोरोना के कारण अपने गांव-कस्बे में लौटने वाले ऐसे कामगारों की संख्या आज लाखों में है जो वापस शहर जाने को उत्सुक नहीं हैं। ऐसे कामगारों और नए युवाओं के लिए स्थानीय और क्षेत्रीय हस्तकलाओं से जुड़े प्रशिक्षण और उत्पादन केंद्र शुरू किए जाएं। साथ ही हर क्षेत्र में ऐसे खाद्य पदार्थों के उत्पादन को प्रोत्साहित किया जाए जो स्थानीय उपज और वन उत्पादों पर आधारित हों।

ये सभी कदम जहां एक ओर कामगारों को मूलभूत व्यावसायिक, सामाजिक और र्आिथक सुरक्षा प्रदान करेंगे वहीं पांच ट्रिलियन डॉलर वाली अर्थव्यवस्था के लक्ष्य को पूरा करने और भारत को दुनिया का प्रोडक्शन-हब बनने में भी मददगार होंगे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)