[ डॉ. ऋतु सारस्वत ]: बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर बेटियों की शादी की न्यूनतम आयु दोबारा तय करने की बात कही। इससे पूर्व उन्होंने लाल किले से दिए भाषण में भी इस संबंध में अपना वक्तव्य दिया था। दरअसल इस सोच के पीछे कुछ महत्वपूर्ण कारणों की भूमिका रही है। केंद्र सरकार का मानना है कि कम आयु में विवाह बेटियों के आत्मसम्मान पर अप्रत्यक्ष रूप से आघात पहुंचाता है। अनेक अध्ययन इस तथ्य को उद्घाटित करते आए हैं कि किशोर आयु में ब्याही गई लड़कियां दुर्व्यवहार और घरेलू हिंसा की शिकार उन लड़कियों की अपेक्षाकृत कहीं अधिक होती हैं, जिनका विवाह देर से होता है और जो अधिक शिक्षित होती हैं। जल्द विवाह बेटियों की शिक्षा और आत्मनिर्भरता, दोनों को ही बाधित करता है। कम आयु में विवाह और मां बनने पर लड़कियों के जीवन का जोखिम बहुत अधिक बढ़ जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी इस तथ्य की पुष्टि करता है कि किशोरावस्था में गर्भधारण से एनीमिया, मलेरिया, एचआइवी और अन्य यौन संचारित संक्रमण, प्रसवोत्तर रक्तचाप और मानसिक विकार जैसी कई स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।

अरबों डॉलर की बचत हो सकती है, यदि किशोरावस्था में विवाह पर रोक लगा दी जाए

विश्व बैंक के साथ इंटरनेशनल सेंटर फॉर रिसर्च ऑन वूमेन की एक रिपोर्ट बताती है कि वैश्विक स्तर पर आठ देशों में वर्ष 2030 तक अरबों डॉलर की बचत हो सकती है, यदि वे किशोरावस्था में विवाह पर रोक लगा दें। इन देशों में भारत भी है, जिसे अगले आठ वर्षों में स्वास्थ्य देखभाल और संबंधित लागतों में 33 हजार पांच सौ करोड़ रुपये खर्च करने पड़ेंगे। यह अध्ययन बताने के लिए काफी है कि एक सामाजिक बुराई किस प्रकार संपूर्ण अर्थव्यवस्था के विकास को भी अवरुद्ध कर देती है।

मां बनने के लिए महिला की उम्र 20 साल होना जरूरी 

विभिन्न संगठन निरंतर यह सुझाव दे रहे हैं कि मां बनने के लिए महिला का कम से कम 20 साल का होना जरूरी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अध्ययन के मुताबिक दुनिया भर में एक बड़ी संख्या में 15 से 19 साल की लड़कियों की मौत गर्भावस्था में होने वाली जटिल स्थितियों के कारण होती है। इसके अलावा 20 साल की उम्र से पहले मां बनने वाली महिलाओं के बच्चों में जन्म के समय मृत्यु का खतरा सबसे ज्यादा होता है। केंद्र सरकार के लिए एक ओर जहां देश की महिलाओं का स्वास्थ्य चिंता का सबब बना हुआ है, वहीं बात लैंगिक समानता की भी है।

देश में कानूनी रूप से लड़कों के लिए विवाह की आयु 21 साल और लड़कियों के लिए 18 वर्ष

1978 में हिंदू विवाह अधिनियम में संशोधन करके लड़कों के लिए कानूनी रूप से विवाह की न्यूनतम आयु 21 साल और लड़कियों के लिए 18 वर्ष निर्धारित की गई थी, परंतु विगत दशकों में सामाजिक-सांस्कृतिक स्तर पर अनेक परिवर्तनों के पश्चात विवाह की वैधानिक आयु में लड़के और लड़कियों के मध्य अंतर का कोई तार्किक कारण दृष्टिगोचर नहीं होता। किसी भी वैधानिक व्यवस्था को चिरस्थायी स्वीकार कर लेना तर्कसम्मत नहीं है, क्योंकि सामाजिक व्यवस्थाएं कभी भी स्थिर नहीं होतीं। जब समाज में परिवर्तन होता है तो उससे जुड़ी हुई वैधानिक व्यवस्थाओं की उपयोगिता का विश्लेषण आवश्यक हो जाता है। यही कारण है कि केंद्र सरकार ने जून 2020 में एक टास्क फोर्स का गठन किया। यह गर्भावस्था, प्रसव और उसके पश्चात मां और बच्चे के चिकित्सीय स्वास्थ्य एवं पोषण के स्तर के साथ विवाह की आयु और मातृत्व के सहसंबंध की जांच कर रही है।

अगर लड़कियों की विवाह की आयु में परिवर्तन होता है तो लैंगिक सुदृढ़ता की ओर मजबूत कदम होगा

प्रधानमंत्री ने यह स्पष्ट किया है कि टास्क फोर्स की रिपोर्ट आते ही सरकार इस विषय में निर्णय लेगी। लड़कियों की विवाह की न्यूनतम आयु में अगर परिवर्तन होता है तो यह लैंगिक सुदृढ़ता की ओर मजबूत कदम होगा। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2018 में समान नागरिक संहिता के संदर्भ में केंद्र सरकार ने विधि आयोग से विभिन्न कानूनों पर जब विचार करने का अनुरोध किया था, तब आयोग ने अपने परामर्श पत्र में विवाह की समान आयु के विषय में भी अपनी राय दी थी। मानवाधिकार आयोग ने भी अक्टूबर 2018 में लड़के और लड़कियों की विवाह की आयु एक समान निर्धारित करने की संभावनाओं पर विचार करने की केंद्र से सिफारिश की थी।

भारत में महिलाओं के लिए विवाह की न्यूनतम आयु सदैव ही विवादास्पद विषय रही है

भारत में विवाह की न्यूनतम आयु खासकर महिलाओं के लिए विवाह की न्यूनतम आयु सदैव ही एक विवादास्पद विषय रही है। प्राय: लोग तर्क देते हैं कि 18 साल तक लड़कियां विवाह योग्य परिपक्व हो जाती हैं, परंतु इसके पीछे का वास्तविक कारण कुछ और है। दरअसल समाज के एक बड़े वर्ग में आज भी बेटियां संबल नहीं, बल्कि दायित्व मानी जाती हैं। उस दायित्व से यथाशीघ्र मुक्ति का सहज मार्ग उनका विवाह ही प्रतीत होता है। आज भी अधिकांश भारतीय माता-पिता लड़कियों की शिक्षा पर ध्यान देना आर्थिक अपव्यय समझते हैं, क्योंकि उनकी दृष्टि में लड़कियों के जीवन का अंततोगत्वा लक्ष्य घर बसाना है, जिसके लिए उच्च शिक्षित होना आवश्यक नहीं है, परंतु ये तमाम कारण उस समय अर्थहीन हो जाते हैं जब बात लड़कियों के अधिकारों की आती है।

किशोरावस्था में लड़कियों का विवाह शिक्षा में सबसे बड़ा रोड़ा 

किशोरावस्था में लड़कियों का विवाह उनकी शिक्षा के मार्ग का सबसे बड़ा रोड़ा है। हमें यह समझना होगा कि शिक्षा सिर्फ आर्थिक स्वावलंबन का मार्ग ही नहीं खोलती, अपितु अधिकारों के प्रति चेतना भी उत्पन्न करती है। अगर लड़कियों की विवाह की न्यूनतम आयु में बढ़ोतरी होती है तो घरेर्लू ंहसा की दर में भी स्वाभाविक रूप से कमी आएगी।

कोई भी धर्म मानव जीवन की रक्षा से विमुख नहीं हो सकता

यदि केंद्र सरकार लड़कियों की विवाह की न्यूनतम आयु बढ़ाने का निर्णय सभी धर्मों को मानने वालों पर एक समान लागू करना सुनिश्चित करती है तो विरोध के स्वर सुनाई दे सकते हैं, परंतु विचारणीय बिंदु यह है कि कोई भी धर्म मानव जीवन की रक्षा से विमुख नहीं हो सकता और अगर जल्द विवाह लड़कियों के जीवन हनन का एक प्रमुख कारण है तो इसका विरोध करना मानवीय जीवन को मृत्यु के मुंह में धकेलना होगा। क्या यह स्वीकारोक्ति किसी भी धर्म में है?

( लेखिका समाजशास्त्र की प्रोफेसर हैं )