नई दिल्ली [अमिताभ कांत]। भारत उच्च विकास दर की राह पर है, किंतु मानव विकास सूचकांक को बेहतर बनाने और राज्यों एवं जिलों के बीच के अंतर को कम करने की तत्काल आवश्यकता है। इसी को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महसूस किया कि सबसे पिछड़े जिलों का कायाकल्प करने की आवश्यकता है। उन्होंने इस साल जनवरी में इससे संबंधित एक कार्यक्रम की शुरुआत की। इस कार्यक्रम का उद्देश्य 28 राज्यों में चिन्हित 115 जिलों का पारदर्शी तरीके से शीघ्रता से कायाकल्प करना है। इस कार्यक्रम की संरचना के तीन मुख्य पहलू हैं- समेकन (केंद्रीय और राज्य योजनाओं का), सहयोग (केंद्र, राज्य स्तरीय प्रभारी अधिकारियों एवं जिलाधिकारियों के बीच) और जिलों के बीच प्रतिस्पर्धा।

प्रगति को मापने और चयनित जिलों की रैंकिंग करते समय प्रत्येक जिले की क्षमता पर बल दिया जा रहा है और तत्काल सुधार के लिए प्राप्त किए जा सकने योग्य परिणामों की पहचान की गई है। प्रत्येक जिले में अपर सचिव स्तर के अधिकारियों को केंद्रीय प्रभारी अधिकारियों के रूप में नामित किया गया है जबकि राज्यों ने राज्य नोडल और प्रभारी अधिकारियों की नियुक्ति की है। एक अधिकार प्राप्त समिति का भी गठन किया गया है ताकि विभिन्न सरकारी योजनाओं को सुव्यवस्थित करने में मदद मिले। राज्यों का चयन वहां के अधिकारियों से परामर्श के बाद किया गया। प्रभारी अधिकारी अपने निष्कर्षों के आधार पर फीडबैक और सिफारिशें देंगे।

समिति फीडबैक के आधार पर नियमित रूप से आवश्यक संशोधन करेगी। इससे इस कार्यक्रम के तहत जिलों के लिए फ्लेक्सी निधियों का प्रभावी उपयोग सुनिश्चित हो सकेगा। क्षमता का अधिकतम उपयोग करने और यह सुनिश्चित करने के लिए अतिरिक्त प्रयास किए गए हैं कि तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था में हर व्यक्ति और खासकर ग्रामीण इलाके के सभी लोग नए भारत के दृष्टिकोण को साकार करने के लिए प्रेरित हों। इस पहल में लोगों की पूर्ण सहभागिता पर विशेष बल दिया जा रहा है। कई दौर के परामर्श के बाद यह निर्णय लिया गया कि 115 सबसे पिछड़े जिलों के लिए आधारित रैंकिंग पांच क्षेत्रों के 49 संकेतकों के आधार पर की जाए जिनमें 13 संकेतकों के माध्यम से स्वास्थ्य और पोषण (30 प्रतिशत अंक), आठ संकेतकों के माध्यम से शिक्षा (30 प्रतिशत), 10 संकेतकों के माध्यम से कृषि और जल संसाधन (20 प्रतिशत), 10 संकेतकों के माध्यम से वित्तीय समावेशन और कौशल विकास (10 प्रतिशत) और सात संकेतकों के माध्यम से बुनियादी अवसंरचना (10 प्रतिशत) शामिल हैं।

जिलों का चयन एक पारदर्शी प्रक्रिया के तहत किया गया है जिसमें राज्यों की क्षमता को भी ध्यान में रखा गया है। 12 मंत्रालयों को 50 जिले आवंटित किए गए हैं। वामपंथी उग्रवादग्रस्त यानी नक्सलवाद से ग्रस्त 35 जिले गृह मंत्रालय को आवंटित किए गए हैं और नीति आयोग को 30 जिले दिए गए हैं। जिलों के निष्पादन की वार्षिक रैंकिंग की जाएगी। मापे जा सकने वाले संकेतकों की भी पहचान कर ली गई है। इन्हें देश के सर्वोत्तम निष्पादक जिलों के मानकों के अनुरूप बनाया जाएगा।

प्रगति की ताजा स्थिति जानने के लिए एक डैशबोर्ड तैयार किया गया है जिससे वास्तविक स्थिति पर नजर रखी जा सकेगी। मुख्य ठोस परिणाम इस प्रकार होंगे :

- जो कुछ भी मापा जाएगा उससे राज्यों की स्थिति बेहतर होने की उम्मीद है।

- जिलों में सहकारितापूर्ण प्रतिस्पर्धा की कार्यनीति प्रभावी सिद्ध होगी।

- अंतत: इस पहल से सरकारी कार्यक्रमों की स्थिति बेहतर करने में मदद मिलेगी।

एक अप्रैल, 2018 की स्थिति के अनुसार जिलों ने डाटा की प्रविष्टि करनी शुरू कर दी है। केंद्र सरकार द्वारा राज्यों के सहयोग से शुरू की गईं पहल की प्रगति और सफलता का मूल्यांकन करने में सहायता के लिए डैशबोर्ड पर मई 2018 से प्रत्येक माह इन जिलों की डेल्टा रैंकिंग प्रदर्शित की जाएगी जो तत्क्षण (रियल टाइम) आधार पर निगरानी की जाने वाली ‘क्रमिक प्रगति’ पर आधारित होगी। तत्क्षण आधार पर पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए सबसे पिछड़े जिलों की प्रगति की निगरानी करने हेतु यह डैशबोर्ड जनता के अवलोकनार्थ भी उपलब्ध रहेगा।

वरिष्ठ अधिकारियों की राय है कि अन्य परिणामों के साथ-साथ इस पहल से आशा, एएनएम और आंगनवाड़ी कामगारों के समन्वय का महत्व सामने आएगा और इस तथ्य के मद्देनजर कि इन जिलों में 8,603 ग्राम पंचायतें भी शामिल हैं, सामाजिक पूंजी से अनुकूल परिणाम हासिल किए जा सकते हैं। यह एक अखिल भारतीय पहल है और इसका उद्देश्य देश के प्रत्येक हिस्से में एकसमान वृद्धि और विकास को प्रेरित करना है। सरल शब्दों में, यह सभी को शामिल करने वाली सहभागितापूर्ण पद्धति के माध्यम से ई-निगरानी, शासन और तत्क्षण डाटा के सार्थक उपयोग के लिए ऐतिहासिक और अभूतपूर्व उपलब्धि है।

इस प्रकार का कार्य पूरा करना तो दूर कभी शुरू करने का प्रयास भी नहीं किया गया है। यह राष्ट्रीय समावेशी विकास की कार्यनीति सुनिश्चित करने की दिशा में पहला कदम है जो व्यापक होने के साथ ही यह भी सुनिश्चित करे कि कोई भी जिला पीछे न रह जाए। इसे केवल एक नाममात्र का मॉड्यूल मानने की गलती न करें। यह उससे कहीं बढ़कर है। यह अनिवार्यत: प्रतिस्पर्धी संघवाद और समन्वय को बढ़ाने वाला मॉड्यूल है जो देश के प्रत्येक हिस्से को आकांक्षाओं से कहीं अधिक हासिल करने का अवसर प्रदान करेगा। यह सुनवाई और आवश्यकता पड़ने पर सहायता के मंच के रूप में भी कार्य करेगा।

इस पहल के लिए जमीनी स्तर पर सहायता प्रदान करने वाले कार्यक्रम कार्यान्वयन के प्रतिष्ठित भागीदारों जैसे कि टाटा ट्रस्ट, पीरामल फाउंडेशन, आइटीसी और एलएंडटी की सहायता उपलब्ध है। इसी तरह सर्वेक्षण करने के संबंध में बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन और आईडीइनसाइट की सहायता मिली है। ये भागीदार नई पद्धतियों के माध्यम से इसके लिए सहायता प्रदान करेंगे। नीति आयोग और सभी संबद्ध मंत्रालय पारदर्शी, समावेशी और जवाबदेह भारत के लक्ष्य को हासिल करने के लिए राज्यों के साथ मिलकर कार्य कर रहे हैं। इस परियोजना के लिए प्रतिबद्ध एक समर्पित टीम के साथ यह एक ऐसी समावेशी पहल है जो केंद्र सरकार के विजन के माध्यम से देश की प्रगति के तरीके में बदलाव लाएगी। हमारा उद्देश्य मानव विकास सूचकांक की दृष्टि से भारत की रैंकिंग को सुधारना, इसके नागरिकों के जीवन स्तर को सुधारना और सभी के लिए समावेशी विकास सुनिश्चित करना है।

इसमें एक समय पर जिला विशेष पर ध्यान दिया जाएगा। यदि इन जिलों में उन मानकों तक प्रगति नहीं होती जिसकी हम अपने जीवन में अपेक्षा रखते हैं तो भारत उस तीव्र गति से प्रगति नहीं कर पाएगा जो सरकार की व्यापक पहल और विकास कार्यनीति के बल पर अन्यथा संभव है। इस पहल के साथ एक समान विकास के लक्ष्य की दिशा में काफी कुछ हासिल किया जा सकेगा। नि:संदेह, प्रधानमंत्री की ‘सबसे अधिक पिछड़े जिलों के सुधार’ को लेकर यह पहल देश के कायाकल्प की दिशा में एक बड़ी छलांग है। 

(लेखक नीति आयोग के सीईओ है)