प्रो. राकेश गोस्वामी : केंद्रीय दूरसंचार विभाग ने भारतीय दूरसंचार विधेयक का मसौदा जारी कर विशेषज्ञों से सुझाव आमंत्रित किए हैं। यह विधेयक तीन मौजूदा कानूनों को समेकित कर दूरसंचार क्षेत्र के कानूनी ढांचे को बदलने के उद्देश्य से लाया गया है। इसमें दूरसंचार सेवाओं की परिभाषा को बदलते हुए इंटरनेट आधारित ओवर-द-टाप (ओटीटी) संचार सेवाओं जैसे-वाट्सएप, सिग्नल और टेलीग्राम को भी शामिल किया गया है। यानी ओटीटी और इंटरनेट आधारित संचार सेवा प्रदान करने के लिए भी अब लाइसेंस की आवश्यकता होगी। फिलहाल देश में दूरसंचार क्षेत्र को नियंत्रित करने के लिए भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885, भारतीय वायरलेस टेलीग्राफी अधिनियम, 1933 और द टेलीग्राफ वायर्स (गैरकानूनी संरक्षण) अधिनियम, 1950 जैसे तीन कानून हैं।

भारत में दूरसंचार उद्योग अभी 117 करोड़ ग्राहकों के साथ दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा उद्योग है। भारत की कुल टेलीडेंसिटी (एक क्षेत्र में रहने वाले प्रत्येक सौ व्यक्तियों के लिए टेलीफोन कनेक्शन की संख्या) 85.11 प्रतिशत है। दूरसंचार क्षेत्र का भारत के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में आठ प्रतिशत का योगदान है। आश्चर्यजनक है कि इतना महत्वपूर्ण क्षेत्र होने के बावजूद दूरसंचार क्षेत्र के प्रशासन से संबंधित कानून काफी पुराने हैं। दो कानून औपनिवेशिक काल के हैं और तीसरा स्वतंत्रता के तुरंत बाद का। तब से अब तक इस क्षेत्र में काफी व्यापक बदलाव हुए हैं।

सरकार की ओर से संसद में दी गई जानकारी के अनुसार आज भारत की 98 प्रतिशत जनसंख्या 4जी तकनीकी के दायरे में आ चुकी है। 5जी सेवाएं शुरू होने के साथ ही दूरसंचार विभाग ने 6जी के लिए भी एक प्रौद्योगिकी अध्ययन समूह बना दिया है। इसके अलावा इंटरनेट आधारित ओटीटी सेवाएं, इंटरनेट आफ थिंग्स, इंडस्ट्री 4.0 और मोबाइल एज टेक्नोलाजी जैसी नई तकनीकी भी मौजूद हैं। ऐसे में देश में एक नए कानून की आवश्यकता है, जो बदलती प्रौद्योगिकी को समावेशित कर सके।

नए मसौदा विधेयक का सबसे खास प्रविधान यह है कि भारत की संप्रभुता और अखंडता की रक्षा करने या सार्वजनिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए किसी भी काल या मैसेज को इंटरसेप्ट किया जा सकता है। यह जरूरी भी है, क्योंकि हमें ज्ञात है कि आजकल भारत-विरोधी प्रोपेगंडा इंटरनेट मीडिया और इन्हीं ओटीटी सेवाओं के जरिये आगे बढ़ाया जाता है। विमर्श की इस लड़ाई में भारत किसी भी सूरत में पिछड़ता हुआ नहीं दिख सकता। इसलिए ऐसे कानून को लाने में और देर नहीं की जा सकती।

इंटरनेट मीडिया के मोर्चे पर 2021 में तीन बड़ी घटनाएं हुईं। भारत ने कई चीनी एप्स पर प्रतिबंध लगाए। ट्विटर, फेसबुक आदि की मनमानी पर लगाम के लिए नए आइटी नियम लागू किए। इंटरनेट मीडिया-डिजिटल प्लेटफार्म के दुरुपयोग की बढ़ती घटनाओं की वजह से नए आइटी नियम जरूरी हो गए थे। इन नियमों से आम उपभोक्ता को दुर्व्यवहार की शिकायतों के निवारण के लिए एक मंच मिलेगा।

हालांकि नए नियम स्वतः विनियामक यानी सेल्फ रेग्युलेशन पर आधारित हैं, फिर भी इनकी संवैधानिकता को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं विभिन्न उच्च न्यायालयों में लंबित हैं। वहीं विदेशी कंपनियों और विदेशी समाचार पत्र समूहों का भारत विरोध जगजाहिर है। इस विमर्श में वे अक्सर भ्रामक, एकपक्षीय और दुराग्रहपूर्ण जानकारी प्रस्तुत करते पाए जाते हैं। इन्हीं वजहों से भारत सरकार आइटी अधिनियम के तहत बने नियमों में भी संशोधन करने पर विचार कर रही है, जिससे फेसबुक और ट्विटर जैसे मंचों को फेक न्यूज और गैरकानूनी/हानिकारक जानकारी के लिए उत्तरदायी बनाया जाए। सरकार का मानना है कि इन मध्यवर्ती कंपनियों को फेक न्यूज को पहचान कर अपने स्तर पर ही निपटने के उपाय करने चाहिए।

विदेशी एजेंसियां विभिन्न सर्वे जारी कर भारत को नीचा दिखाने का प्रयास करती रहती हैं। कभी डेमोक्रेसी इंडेक्स जारी होता है तो कभी मीडिया की स्वतंत्रता का इंडेक्स। इसीलिए पीएम मोदी ने हाल में कहा था कि भारत को अपने मानक स्वयं बनाने पड़ेंगे, लेकिन सिर्फ मानकों से काम नहीं चलेगा। भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऐसे प्लेटफार्म खड़े करने होंगे, जो वैश्विक स्तर पर भारत-विरोधी दुष्प्रचार के खिलाफ लड़ें। हमने ट्विटर, वाट्सएप, फेसबुक और क्लब हाउस जैसे विदेशी प्लेटफार्म के भारतीय विकल्प बना तो दिए हैं, लेकिन वे अभी काफी पीछे हैं। ट्विटर, फेसबुक, क्लब हाउस आदि से मुकाबला करने के लिए कुछ स्वदेशी मंच हैं, लेकिन उनके सामने दो बड़ी चुनौतियां हैं। एक नेटवर्क इफेक्ट और दूसरी पूंजी। नेटवर्क इफेक्ट का मतलब है जहां आपके दोस्त नहीं, वहां आप क्यों जाएंगे।

इंटरनेट मीडिया व्यापार के फलने-फूलने में पूंजी की कमी सबसे बड़ी बाधा है। ट्विटर ने आरंभिक चार साल में सात हजार करोड़ से ज्यादा की पूंजी जुटाई थी। फिर भी उसे लाभ में आने के लिए सात साल का वक्त लगा। इंस्टाग्राम ने भी शुरुआती दो साल में करीब चार हजार करोड़ रुपये जुटाए थे। इसके बाद फेसबुक ने उसका अधिग्रहण किया। भारत के देसी इंटरनेट मीडिया को अभी तक इतना बड़ा निवेश नहीं मिल सका है। इंटरनेट मीडिया एप्स का मोनेटाइजेशन भी बड़ी चुनौती है। जैसे फेसबुक और गूगल का भारत के डिजिटल विज्ञापन बाजार के 85 प्रतिशत हिस्से पर कब्जा है।

जाहिर है भारत को विमर्श की लड़ाई में बहुत काम करने की जरूरत है। इंटरनेट मीडिया के जिस विनियामक की बात आज की जा रही है, वह उसी वक्त होनी चाहिए थी, जब इन प्लेटफार्म्स ने भारत में प्रवेश किया था। देर से ही सही, अब भारत को दुरुस्त कदम उठाने चाहिए।

(लेखक भारतीय जन संचार संस्थान, जम्मू के क्षेत्रीय निदेशक हैं)