डा. सुरजीत सिंह। बजट पेश होने के बाद उसके प्रस्तावों पर अमल की दिशा में प्रयास भी शुरू हो गए हैं। इस कड़ी में सभी की निगाहें रोजगार सृजन की उन महत्वाकांक्षी योजनाओं पर टिकी हैं, जिन्हें हालिया बजट का सबसे विशिष्ट पहलू माना जा रहा है। कौशल, नवाचार और रोजगार पर विशेष ध्यान देते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में विशेष प्राविधान किए हैं। इसमें इंटर्नशिप योजना को खासी चर्चा भी मिली है। इससे न केवल रोजगार के आकांक्षियों के हितों की पूर्ति होगी, बल्कि उद्योगों को भी अपने अनुकूल कौशल से लैस लोग मिलेंगे। इससे न सिर्फ भारत की वैश्विक आपूर्ति शृंखला मजबूत होगी, बल्कि निवेश संभावनाएं भी बढ़ेंगी।

इससे सरकार की यह मंशा भी प्रकट हुई है कि अगले पांच वर्षों में वह रोजगार, कौशल और एमएसएमई पर अपना ध्यान केंद्रित करेगी। भारतीय अर्थव्यवस्था की संभावनाओं को भुनाने की राह में कार्यशील आबादी में महिलाओं की अपेक्षित भागीदारी न होने का संज्ञान भी सरकार ने लिया है। इसके लिए कामकाजी आबादी में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए कार्यस्थल के निकट महिला हास्टलों और शिशु देखभाल गृहों की स्थापना की जाएगी। इसके साथ ही महिला श्रमिकों के कौशल को बढ़ाने के लिए विशिष्ट कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों पर भी फोकस किया जाएगा।

आर्थिक सर्वेक्षण में भी उल्लेख है कि देश में बढ़ते कार्यबल के समायोजन के लिए गैर-कृषि क्षेत्र में 2030 तक सालाना औसतन 78.5 लाख नौकरियां सृजित करनी होंगी। इसीलिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में युवाओं को सशक्त बनाने के लिए बहुआयामी रणनीति बनाई। बजट में युवाओं और रोजगार पर ध्यान केंद्रित करते हुए शिक्षा, रोजगार और कौशल विकास के लिए 1.48 लाख करोड़ रुपये आवंटित हुए हैं। कुल मिलाकर, पांच साल की अवधि में 2 लाख करोड़ रुपये के केंद्रीय परिव्यय के साथ 4.1 करोड़ युवाओं को शिक्षित, कौशल और रोजगार प्रदान करने के लिए कई योजनाएं बनाई हैं। विनिर्माण क्षेत्र में भी अतिरिक्त रोजगार सृजन के लिए बजट में प्रविधान है कि पहली बार रोजगार पाने वाले युवाओं को शुरुआती चार वर्षो में ईपीएफओ में योगदान के लिए नियोक्ता और कर्मचारी दोनों को प्रोत्साहन दिया जाएगा।

इससे 30 लाख युवाओं को लाभ पहुंचने की संभावना है। नियोक्ताओं को सहायता देते हुए यह उपाय भी किया गया है कि सभी क्षेत्रों में प्रत्येक अतिरिक्त रोजगार के संबंध में नियोक्ता के ईपीएफओ में अंशदान के लिए उन्हें दो वर्षो तक प्रति माह 3,000 रुपये तक की प्रतिपूर्ति की जाएगी। इस योजना का उद्देश्य 50 लाख अतिरिक्त लोगों को रोजगार के लिए प्रोत्साहित करना है। वित्त मंत्री की यह पहल औपचारिक रोजगार सृजन की दिशा में स्वागतयोग्य कदम है, जिससे सैद्धांतिक शिक्षा और व्यावहारिकता के बीच की खाई पाटने में मदद मिलेगी। इससे अधिक स्नातकों को नौकरी के व्यापक अवसर उपलब्ध होगें।

भारत में रोजगार की नहीं, बल्कि कुशल श्रमिकों की कमी है। बढ़ती श्रमशक्ति और कुशल श्रमिकों की मांग एवं आपूर्ति में संतुलन की दृष्टि से पांच वर्षों में देश की 500 दिग्गज कंपनियों द्वारा एक करोड़ युवाओं को इंटर्नशिप प्रदान करना एक बाजी पलटने वाली योजना सिद्ध हो सकती है, लेकिन तभी जब कंपनियां इस योजना में रुचि दिखाएं। इस योजना में 5,000 रुपये के मासिक भत्ते और 6,000 रुपये की एकमुश्त सहायता आकर्षक पहलू हैं। इसके माध्यम से सरकार का उद्देश्य पांच वर्षों में 20 लाख लोगों को कौशल प्रदान करना है। घरेलू संस्थानों में उच्च शिक्षा के लिए 10 लाख रुपये तक के शिक्षा ऋण प्रदान करने के साथ ही हर साल एक लाख छात्रों को सीधे ऋण राशि के तीन प्रतिशत ब्याज में छूट भी मिलेगी। कौशल विकास पर विशेष ध्यान देने के लिए 1000 आइटीआइ को और अधिक सक्षम एवं सशक्त बनाया जाएगा। उद्योगों की कौशल संबंधी आवश्यकताओं के अनुरूप ही विशेष पाठ्यक्रम तैयार किया जाएगा, जिससे नई उभरती हुई जरूरतों के साथ सामंजस्य स्थापित किया जा सके।

रोजगार सृजन के लिहाज से महत्वपूर्ण एमएसएमई और विनिर्माण क्षेत्र में श्रम प्रधान तकनीक भी सरकार की प्राथमिकता सूची में शामिल है। एमएसएमई क्षेत्र को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने एवं उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार के लिए ऋण गारंटी योजना प्रारंभ करने के साथ-साथ इस क्षेत्र के डिजिटलीकरण पर जोर देने से इस क्षेत्र को संजीवनी मिलने के आसार हैं। प्रत्येक वर्ष 25,000 कुशल व्यक्तियों को 7.5 लाख रुपये तक का गारंटीकृत ऋण प्रदान करना निश्चित रूप से ग्रामीण उद्यमिता को बढ़ावा देगा। मुद्रा ऋण सीमा को 10 लाख से बढ़ाकर 20 लाख रुपये किए जाने से इस क्षेत्र की तेजी से वृद्धि होने की संभावना है। एमएसएमई क्षेत्र में 50 मल्टी प्रोडक्ट्स फूड इकाइयां स्थापित करने के लिए वित्तीय सहायता भी सराहनीय है।

पारंपरिक कारीगरों को अंतरराष्ट्रीय बाजारों में अपने उत्पादों को बेचने में सक्षम बनाने के लिए निजी क्षेत्र के सहयोग से ई-कामर्स निर्यात केंद्र स्थापित किए जाएंगे। सरकार की गंभीरता इससे भी स्पष्ट होती है कि रोजगार और कौशल विभाग का नाम भी बदलकर कौशल, रोजगार और आजीविका कर दिया है। बजट में एक लाख करोड़ रुपये से अनुसंधान और नवाचार को प्रोत्साहन से आर्थिक विकास के लिए अनुकूल माहौल को बढ़ावा मिलेगा। हालांकि, केंद्र के स्तर पर तमाम पहल तभी सफल हो पाएंगी, जब राज्य सरकारें भी अपने स्तर पर इस दिशा में अपेक्षित प्रयास करेंगी। इन कार्यक्रमों को यदि गंभीरता से लागू किया जाता है तो भारत को एक अग्रणी स्टार्टअप राष्ट्र के रूप में स्थापित किया जा सकता है। ऐसा किया जाना समय की मांग भी है।

(लेखक अर्थशास्त्री हैं)