जागरण संपादकीय: रोजगार के अवसर बढ़ाने की चुनौती, समृद्ध और समावेशी अर्थव्यवस्था के लिए उठाने होंगे कदम
पांच वर्षों के दौरान 60000 करोड़ रुपये की यह योजना पहल परिणाम-आधारित शिक्षा और उद्योग-विशिष्ट कौशल पर केंद्रित है। स्पष्ट है कि इंटर्नशिप वेतन सब्सिडी नियोक्ता प्रोत्साहन और निरंतर रोजगार सृजन सहित एक व्यापक मॉडल के माध्यम से सरकार रोजगार आकांक्षियों और नियोक्ता दोनों पक्षों के बीच संतुलन साधने की दिशा में आगे बढ़ रही है। इससे रोजगार टिकाऊ और उनकी प्रकृति संगठित स्वरूप वाली होगी।
गौरव वल्लभ। रोजगार सृजन एक ऐसी चुनौती है, जिससे दुनिया के लगभग सभी देश जूझ रहे हैं। चूंकि भारत दुनिया की सबसे बड़ी आबादी एवं युवाओं वाला देश है तो भारत के लिए यह चुनौती और बड़ी हो जाती है। सरकार इसे भलीभांति समझती है। उसने कुछ प्रयास भी किए हैं। उनके अनुकूल परिणाम भी सामने आए हैं।
पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे से लेकर रिजर्व बैंक, कर्मचारी भविष्य निधि संगठन यानी ईपीएफओ और राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली-एनपीएस के समय-समय पर आने वाले आंकड़े इसकी पुष्टि करते हैं। इस उल्लेखनीय तथ्य को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता कि युवा वर्ग (15 से 29 आयु वर्ग) में 2017-18 के दौरान जो बेरोजगारी दर 17.8 प्रतिशत थी, वह 2022-23 में घटकर 10 प्रतिशत रह गई।
समग्र बेरोजगारी दर भी 2022-23 में अपने निम्नतम पड़ाव 3.2 प्रतिशत पर आ गई। रोजगार के अन्य संकेतक भी सुधार की राह पर हैं। भविष्य निधि में योगदान देने वाले सदस्यों की संख्या 2018 से 20 प्रतिशत से अधिक की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ने पर है। संगठित क्षेत्र में बढ़ते अवसरों से रोजगारों का औपचारीकरण भी हो रहा है।
इसके बावजूद अभी और प्रयास करने की आवश्यकता है, क्योंकि 2041 तक भारत में उपलब्ध कामकाजी आबादी का स्तर चरम पर पहुंच जाएगा। इतनी बड़ी आबादी के लिए रोजगार के अवसर सृजित करना आसान तो नहीं, लेकिन आसान बनाया जा सकता है। इसके लिए कुछ उपाय करने होंगे।
सबसे पहले तो यह सुनिश्चित करना है कि हर साल कार्यबल में शामिल होने वाले युवाओं की बड़ी संख्या को खपाने के लिए पर्याप्त नौकरियां पैदा की जाएं और दूसरा यह कि युवा जो नौकरी पाना चाहते हैं, क्या वे उसके लिए आवश्यक कौशल से लैस हैं भी या नहीं? केंद्र सरकार इन दोनों पहलुओं के समाधान की दिशा में प्रयासरत है।
इसका आभास हालिया बजट से भी मिला। बजट में कौशल विकास, रोजगार सृजन और एमएसएमई पर फोकस किया गया। इससे जुड़ी विभिन्न पहल एक मजबूत और समावेशी रोजगार तंत्र को बढ़ावा देने के लिए सरकार के रणनीतिक दृष्टिकोण को दर्शाती हैं। इन कार्यक्रमों में इंटर्नशिप योजना की खासी चर्चा है, जिसके अंतर्गत युवा स्नातक शीर्ष कंपनियों में इंटर्नशिप के माध्यम से अनुभव हासिल करेंगे।
पांच वर्षों में एक करोड़ युवाओं को कौशल प्रदान करने के लिए तैयार किए गए इस कार्यक्रम में युवाओं को 5,000 रुपये मासिक भत्ता मिलेगा। भत्ते के लिए सरकार प्रति वर्ष 54,000 और आकस्मिक खर्चों के लिए अतिरिक्त 6,000 रुपये भुगतान करेगी। जबकि कंपनियां अपने सीएसआर फंड से 6,000 रुपये वार्षिक योगदान देंगी।
प्रशिक्षण की लागत भी कंपनियां ही वहन करेंगी। यह व्यावहारिक अनुभव युवाओं की रोजगार क्षमता और नौकरी के लिए तैयारी को व्यापक एवं सार्थक रूप से बढ़ाने में मददगार होगा। यह एक करोड़ स्किल्ड युवा शक्ति देश के 6.4 करोड़ एमएसएमई उद्योगों के लिए प्रशिक्षित जनशक्ति के पूल का भी काम करेगी। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि फिलहाल कुल रोजगार प्रदान करने में एमएसएमई की हिस्सेदारी 62 प्रतिशत की है। अन्य उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में यह आंकड़ा 77 प्रतिशत तक है।
एक वर्ष की इंटर्नशिप पूरी करने के बाद पहली बार नौकरी चाहने वाला युवा स्कीम ए के माध्यम से कार्यबल में प्रवेश कर सकता है। उन्हें तीन किस्तों में वितरित 15,000 रुपये तक की सब्सिडी सरकार द्वारा प्रदान की जाएगी। यह पहल युवा प्रतिभाओं को संगठित क्षेत्र से जोड़ेगी। इससे अनौपचारिक नौकरियों पर निर्भरता कम होगी, जिनमें अस्थिरता और अनिश्चितता कहीं ज्यादा होती है। इसी कड़ी में स्कीम बी के तहत विनिर्माण कंपनियों को जोड़ा गया है।
यह योजना विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार सृजन को लक्षित करती है, जो नियोक्ता और कर्मचारियों दोनों को वित्तीय प्रोत्साहन देती है। चार वर्षों के संरचित प्रोत्साहन वाली इस योजना में सरकार द्वारा प्रदान किया जाने वाला लाभ नियोक्ता और कर्मचारी के बीच समान रूप से साझा किया जाएगा। यह योजना भी अल्पकालिक भर्ती के बजाय निरंतर एवं स्थायी रोजगार को बढ़ावा देने वाली है।
इस योजना का लाभ प्राप्त करने के लिए नियोक्ताओं को कम से कम 50 नए कर्मचारियों या पिछले वर्ष के ईपीएफओ-नामांकित कर्मचारियों के 25 प्रतिशत, इनमें जो भी कम हो, को नियुक्त करना होगा। केंद्र सरकार द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी की गणना पहले दो वर्षों में पारिश्रमिक के 24 प्रतिशत की दर से, तीसरे वर्ष में 16 प्रतिशत और चौथे वर्ष में आठ प्रतिशत की दर के आधार पर होगी।
इसी तरह, स्कीम सी नियोक्ताओं को और अधिक समर्थन देने के लिए नियुक्त किए गए प्रत्येक अतिरिक्त कर्मचारी के लिए उनके ईपीएफओ योगदान में दो साल के लिए प्रति माह 3,000 रुपये तक का योगदान देगी। नियोक्ताओं के लिए अधिक कर्मचारियों को नियुक्त करना आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाने वाली यह योजना विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार वृद्धि को बढ़ावा देगी। इससे अर्थव्यवस्था में चक्रीय प्रभाव उत्पन्न होगा। इनसे जहां उपभोक्ता खर्च बढ़ेगा, वहीं आर्थिक गतिविधियों में तेजी आएगी और नौकरियां सृजित होंगी।
चूंकि रोजगार सृजन में कौशल विकास एक अहम कड़ी है तो सरकार ने इस ओर भी पर्याप्त ध्यान देने का प्रयास किया है। ऐसे प्रयासों के अंतर्गत राज्य सरकारों और उद्योग जगत के सहयोग से 1,000 औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों यानी आइटीआइ का उन्नयन यह सुनिश्चित करेगा कि कामकाजी आबादी को नई जरूरतों के अनुरूप तराशा जाए। पांच वर्षों के दौरान 60,000 करोड़ रुपये की यह योजना पहल परिणाम-आधारित शिक्षा और उद्योग-विशिष्ट कौशल पर केंद्रित है।
स्पष्ट है कि इंटर्नशिप, वेतन सब्सिडी, नियोक्ता प्रोत्साहन और निरंतर रोजगार सृजन सहित एक व्यापक मॉडल के माध्यम से सरकार रोजगार आकांक्षियों और नियोक्ता दोनों पक्षों के बीच संतुलन साधने की दिशा में आगे बढ़ रही है। इससे रोजगार टिकाऊ और उनकी प्रकृति संगठित स्वरूप वाली होगी। ये उपाय रोजगार चुनौतियों का समाधान करते हुए लाखों भारतीयों की आकांक्षाओं की पूर्ति में सहायक बनकर एक समृद्ध और समावेशी अर्थव्यवस्था का मार्ग प्रशस्त करते हैं।
(लेखक आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ एवं भाजपा नेता हैं)