डॉ सुरजीत सिंह। चुनावी सरगर्मी के बीच मोदी सरकार ने विकास प्रतिबद्धताओं को प्राथमिकता देते हुए गत दिनों चाबहार बंदरगाह के प्रबंधन एवं परिचालन के लिए समझौता किया। ईरान में स्थित चाबहार पहला ऐसा बंदरगाह है, जो विदेशी धरती पर होने के बावजूद भारतीय नियंत्रण में रहेगा। यह समझौता वैश्विक भू-राजनीति में ही भारत को बढ़त नहीं दिलाएगा, बल्कि विदेश व्यापार और निवेश को बढ़ाने के लिए एक नई पृष्ठभूमि भी तैयार करेगा। चाबहार बंदरगाह के परिचालन से एक तरफ पाकिस्तान के अस्थिर व्यापार मार्गों पर निर्भरता कम होगी तो दूसरी ओर भारत के व्यापार को नई ऊंचाइयां मिलने से सतत विकास को भी बढ़ावा मिलेगा।

वर्ष 2002 में पहली बार तत्कालीन ईरानी राष्ट्रपति सैयद मोहम्मद खातमी एवं भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा रणनीतिक सहयोग को बढ़ाने के लिए चाबहार बंदरगाह को बनाने पर सहमति व्यक्त की गई थी। भारत के लिए इसके दो स्पष्ट उद्देश्य थे। पहला, चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकना एवं दूसरा, पाकिस्तान के व्यापार मार्गों के विकल्प की तलाश करना। इस दिशा में उल्लेखनीय प्रगति 2016 में मोदी सरकार में हुई जब चाबहार में शहीद बेहिश्ती टर्मिनल को विकसित करने के लिए भारत ने ईरान और अफगानिस्तान के साथ एक त्रिपक्षीय समझौता किया।

चाबहार बंदरगाह विकसित करने में भारत के निवेश की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, जिसके कारण 2019 में भारत को चाबहार बंदरगाह के प्रयोग का अधिकार मिल गया, जिसका भारत को प्रत्येक वर्ष नवीनीकरण कराना होता था। हालांकि इसके कारण भारत स्थायी तौर पर कोई आर्थिक रणनीति बनाने एवं उसके प्रयोग के लिए आश्वस्त नहीं था। यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कूटनीतिक सफलता ही है कि अब इस समझौते का नवीनीकरण प्रत्येक 10 साल बाद होगा। इस संदर्भ में भारत अब व्यापार की दीर्घकालिक नीतियों को क्रियान्वित कर सकेगा। चाबहार बंदरगाह में भारत के निवेश से अरब देशों में यह संदेश भी गया है कि भारत एक बदलता हुआ बड़ा निवेशक देश है, जो आधारिक संरचना का निर्माण करने में भी सक्षम है।

भारत के सभी बंदरगाहों से चाबहार बंदरगाह तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। इससे आगे सड़क एवं रेलवे ट्रैक द्वारा कैस्पियन सागर से होते हुए रूस और उससे आगे यूरोपीय देशों तक पहुंचने का विकल्प मिलता है। इस बंदरगाह के माध्यम से ईरान के प्रमुख शहर तेहरान से गुजरने वाले अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे से भी आसानी से जुड़ सकते हैं। मध्य एशिया के लैंडलाक देशों के लिए 7,200 किमी लंबा यह कारिडोर हिंद महासागर तक पहुंचने का सुरक्षित एवं सुगम मार्ग है। यह एक बहुदेशीय परिवहन मार्ग है, जिसके द्वारा तुर्किए, इस्तांबुल, बुल्गारिया, अजरबैजान, तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, किर्गिस्तान से आगे चीन तक पहुंचा जा सकता है।

वास्तव में चाबहार बंदरगाह का व्यापार मार्ग सिल्क रूट का विकल्प भी देता है, जो स्वेज नहर की तुलना में 40 प्रतिशत दूरी कम करता है। इससे होने वाले व्यापार में न केवल 15 दिन का कम समय लगेगा, बल्कि 30 प्रतिशत सस्ता होने से प्रतिस्पर्धात्मक लाभ भी भारत को मिलेगा। इस मार्ग का प्रयोग कर भारत अपनी व्यापार क्षमता को बढ़ाने के साथ-साथ इस क्षेत्र के देशों के साथ आर्थिक संबंधों को भी मजबूत कर सकता है। इस जुड़ाव से भारत के लिए व्यापार के नए रास्ते खुलेंगे और पूरे क्षेत्र में आपूर्ति शृंखला मजबूत होगी। मध्य एशिया के संसाधन-संपन्न नए बाजारों तक भारत की पहुंच भी बनेगी।

ईरान सहित मध्य एशिया के देशों से हमारा व्यापार आनुपातिक रूप से बहुत कम होता है। तुर्कमेनिस्तान से प्राकृतिक गैस, कजाखस्तान से यूरेनियम सहित यह क्षेत्र जीवाश्म ईंधन और जल विद्युत के माध्यम से भारत की ऊर्जा सुरक्षा में योगदान कर सकता है और कई महत्वपूर्ण खनिजों और धातुओं की आवश्यकता को पूरा कर सकता है। भारत भी दवा, मांस, यांत्रिक उपकरण, प्रसाधन सामग्री, गारमेंट्स, रसायन, कीटनाशक दवाएं, इंजीनियरिंग उत्पाद, प्रौद्योगिकी, चिकित्सा पर्यटन और आइटी आदि के निर्यात को बढ़ा सकता है। इन क्षेत्रों में भारत रुपये में व्यापार को बढ़ावा देकर अंतरराष्ट्रीय स्वीकृत मुद्राओं पर निर्भरता कम कर सकता है।

चाबहार बंदरगाह से ईरान को भी लाभ होगा, जो पहले से ही अमेरिका के आर्थिक प्रतिबंधों को झेल रहा है। भारत क्षेत्रीय स्थिरता में योगदान करते हुए अफगानिस्तान को विभिन्न तरह की सहायता पहुंचाने के लिए इसी बंदरगाह का उपयोग करता है। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण बदलती परिस्थितियों में भारत का रूस से तेल आयात काफी बढ़ा है। भारत ने अमेरिकी दबाव को न मानते हुए रूस से होने वाले तेल आयात से 25 से 30 अरब डालर बचाए हैं। चाबहार बंदरगाह समझौते के बाद रूस और भारत के व्यापार में और बढ़ोतरी होगी। चाबहार बंदरगाह द्वारा हिंद महासागर क्षेत्र में भारत का सामरिक प्रभाव बढ़ने से भू-राजनीतिक स्थिति भी मजबूत होगी।

बदलते समय में आर्थिकी अब राजनीति पर भारी पड़ रही है। चीन भी भारत के साथ व्यापारिक संबंधों को सुधारने का प्रयास कर रहा है। इसे देखते हुए अमेरिका भी कठोर रुख अपनाकर भारत की नाराजगी मोल नहीं लेना चाहेगा। अब मध्य एशियाई एवं यूरोपीय देशों के साथ व्यापार बढ़ाने के लिए एक उपयुक्त लाजिस्टिक्स नीति को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए जिससे इन देशों एवं भारत के बीच संबंध और मजबूत हो सकें। कुल मिलाकर चाबहार सिर्फ एक बंदरगाह नहीं है, यह एक ऐसे भविष्य का प्रवेश द्वार है, जो भारत की आर्थिक क्षमता को बल देने के साथ उसके अंतरराष्ट्रीय प्रभाव को मजबूत करेगा। इससे क्षेत्रीय समृद्धि और आर्थिक विकास के एक नए युग की शुरुआत होगी।

(लेखक अर्थशास्त्री हैं)