[ अवधेश कुमार ]: केंद्र सरकार द्वारा भीमा-कोरेगांव हिंसा में माओवादियों की संलिप्तता का मामला एनआइए को सौंपने से देश की अधिकांश जनता ने राहत की सांस ली है। महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में शिवेसना, राकांपा एवं कांग्रेस की सरकार गठित होने के बाद कभी इस मामले को वापस लेने तो कभी विशेष जांच दल यानी एसआइटी को सौंपे जाने की बात हो रही थी उसमें केंद्र के पास एकमात्र यही विकल्प बचा था। स्वयं राकांपा प्रमुख शरद पवार ने मुख्यमंत्री को भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी के नेतृत्व में एसआइटी के गठन के लिए औपचारिक पत्र लिखा था। जाहिर है, वह एसआइटी गठित करते इसके पहले ही केंद्र ने यह कदम उठाकर प्रदेश के हाथ में कुछ रहने ही नहीं दिया।

केंद्र राज्य की अनुशंसा के बिना भी कोई मामला एनआइए सौंप सकती है

एनआइए की धारा-5 के अनुसार केंद्र को यह अधिकार है कि राज्य की अनुशंसा के बिना भी वह कोई मामला इसे सौंप सकती है। वास्तव में जिस तरह का माहौल राकांपा और कांग्रेस के नेता बनाने लगे थे, वह भयभीत करने वाला था। भीमा-कोरेगांव मामले में 19 आरोपी हैं। अभी तक की जांच तथा न्यायालय में प्रस्तुत तथ्यों से इनका माओवाद का छद्म चेहरा होने का संदेह पुख्ता होता है।

भीमा-कोरेगांव युद्ध की 200वीं सालगिरह पर नेताओं के उत्तेजक भाषणों से हिंसा हुई थी

वास्तव में एक जनवरी, 2018 को भीमा-कोरेगांव युद्ध की 200वीं सालगिरह पर हुए कार्यक्रम में वहां कई नेताओं ने उत्तेजक भाषण दिए थे। माना गया कि इससे पैदा हुई उत्तेजना ही हिंसा का कारण थी। एक वर्ग ने आरोप लगाया गया कि उस हिंसा में स्थानीय हिंदू नेताओं का हाथ था, लेकिन पुलिस जांच में ऐसा कुछ नहीं मिला, बल्कि इसके तार उन लोगों से जुड़ने लगे जो थे माओवादी, लेकिन छद्म तरीके से शहरों में दूसरी गतिविधियों में जुटे थे।

भीमा-कोरेगांव मामले में पुलिस ने कई शहरों से लोगों को किया गिरफ्तार

इसी सिलसिले में जब पुणे पुलिस ने वकील सुधा भारद्वाज, पत्रकार गौतम नवलखा, तेलुगु कवि वरवरा राव, प्रोफेसर वेरनॉन गोंजाल्विस और वकील अरुण फरेरा जैसे तथाकथित मानवाधिकारवादियों और समाजसेवियों को गिरफ्तार करने की कोशिश की तो इनके समर्थक चारों ओर विरोध करने लगे। बाद में दिल्ली से रोना जैकब विल्सन, नागपुर के सुरेंद्र गडलिंग (वकील), शोमा सेन (प्रोफेसर) और महेश राउत (एक्टिविस्ट) तथा मुंबई के सुधीर धवले (पत्रकार) को आठ जून, 2018 को गिरफ्तार किया गया।

पुलिस ने 19 अप्रैल, 2018 को रोना विल्सन समेत 14 संदिग्धों के घर पर छापा मारा था

आज जो नेता इनकी रिहाई की मांग कर रहे हैं उनको इस पूरे तथ्य को गहराई से देखना चाहिए। दरअसल पुलिस ने 19 अप्रैल, 2018 को रोना विल्सन समेत 14 संदिग्धों के घर पर छापा मारकर उनके लैपटॉप, पेन ड्राइव, हार्ड डिस्क, मेमरी कार्ड, मोबाइल फोन आदि जब्त कर लिए थे। विल्सन जेएनयू के प्रतिबंधित छात्र संगठन डीएसयू का नेता था।

विल्सन माओवादी साथियों के लिए हथियार आपूर्ति से लेकर धन व्यवस्था का काम करता था

सुबूतों से पता चला कि विल्सन जीएन साईंबाबा की गिरफ्तारी के बाद शहरी माओवादी मोर्चा संभाल रहा था। वह साथियों के साथ माओवादियों का स्थानांतरण, पोस्टिंग, हथियार आपूर्ति से लेकर धन व्यवस्था, वैचारिक समर्थन, प्रशिक्षण के साथ-साथ दुष्प्रचार का काम करता था। अन्य चार लोग उसके सहयोगी थे और दलित आंदोलन के नाम से समाज में तनाव और हिंसा पैदा करने में लग हुए थे।

विल्सन के घर से मिलिंद का भेजा पत्र मिला, लिखा था, भीमा-कोरेगांव आंदोलन बेहद प्रभावी रहा

पुलिस को इनके मेल आदि की जांच से पांच पत्र मिले हैं। ये न्यायालय के रिकॉर्ड में हैं। विल्सन के घर से बरामद एक पत्र सीपीआइ (एम) से ही जुड़े मिलिंद तेलतुंबडे ने भेजा था। इसमें लिखा है कि भीमा-कोरेगांव आंदोलन बेहद प्रभावी रहा। कामरेड मंगलू और कॉमरेड दीपू भीमा-कोरेगांव कार्यक्रम में दो महीने से कामरेड सुधीर के साथ काम कर रहे थे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश वाला पत्र भी शामिल है

इससे बड़ा प्रमाण इनकी संलिप्तता का क्या हो सकता है? इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश वाला पत्र भी है। पत्र में कहा गया है कि कामरेड किसन और कुछ अन्य सीनियर कामरेड्स ने मोदी राज को खत्म करने के लिए कुछ मजबूत कदम सुझाए हैं। हम सभी राजीव गांधी जैसे हत्याकांड पर विचार कर रहे हैं। उन्हें रोड शो में टारगेट करना एक असरदार रणनीति हो सकती है। एक में राउत और सेन का नाम लेते हुए लिखा है कि डी-4 राइफल और हथियार खरीदने के लिए आठ करोड़ रुपये की जरूरत है। दूसरे में एक इंस्टीट्यूट के दो लड़कों को प्रशिक्षण देने की बात है। तीसरे पत्र में माओवादियों की योजना का विवरण है।

आरोपियों के संबंध नक्सलियों के अलावा कश्मीरी अलगाववादियों से भी हैं

वस्तुत: जांच इनके आधार पर ही आगे बढ़ी और पुलिस सभी आरोपियों तक पहुंची। पुलिस ने इनको वित्त पोषण से लेकर योजनाओं में वैचारिक आदि सहयोग का आरोपी माना है। पुणे के तत्कालीन संयुक्त पुलिस आयुक्त शिवाजी राव बोड़खे ने कहा था कि इन आरोपियों के संबंध नक्सलियों के अलावा कश्मीरी अलगाववादियों से भी हैं। कांग्रेस को याद दिलाना जरूरी है कि यूपीए सरकार ने दिसंबर 2012 में माओवादियों से संबंध रखने वाले 128 संगठनों को चिन्हित किया था। गिरफ्तार सुरेंद्र गाडलिंग और रोना विल्सन इन संगठनों से जुड़े थे। गोंजाल्विस को पांच वर्ष की सजा भी हो चुकी है।

चिदंबरम ने आंदोलनों में माओवादियों की संलिप्तता की बात कही थी

यूपीए सरकार में गृहमंत्री रहे पी. चिदंबरम ने विकास योजनाओं तथा कई आंदोलनों में माओवादियों की संलिप्तता के साथ अनेक एनजीओ से माओवादियों के संबंधों की बात कही थी। शहरी माओवादी शब्द भी उसी दौरान प्रयोग हुआ था। जब 9 मई, 2014 में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जीएन साईंबाबा, जेएनयू के छात्र हेमंत मिश्रा और पत्रकार प्रशांत राही समेत पांच लोग गिरफ्तार हुए थे तब भी हंगामा हुआ था।

नव माओवादियों की असली ताकत शहरी माओवादी हैं

हेमंत मिश्रा ने गिरफ्तार होने के बाद बताया था कि वह छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ के जंगलों में छिपे माओवादियों और प्रोफेसर के बीच कूरियर का काम करता है। मिश्रा के अलावा तीन अन्य गिरफ्तार माओवादियों कोबाड गांधी, बच्चा प्रसाद सिंह और प्रशांत राही ने भी दिल्ली में अपने संपर्क के रूप में साईंबाबा का नाम लिया था। साईंबाबा मामले ने साबित कर दिया कि नव माओवादियों की असली ताकत शहरी माओवादी ही हैं।

एनआइए को भीमा-कोरेगांव मामले में कामयाबी मिलनी चाहिए

इससे कोई भी यह निष्कर्ष निकाल सकता है कि ये आरोपी कितने खतरनाक हैं। देश की सुरक्षा से बड़ी प्राथमिकता किसी सरकार की कुछ भी नहीं हो सकती। उम्मीद करनी चाहिए कि एनआइए जांच मामले को सही कानूनी परिणति तक पहुंचाने में कामयाब होगी।

( लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैैं )