कलंक से मुक्ति की प्रतीक्षा: आजादी के अमृत महोत्सव का उत्सव तभी कारगर होगा जब हाथ से मैला ढोने की कुप्रथा खत्म हो
लगभग आठ लाख भारतीय अपने सिर पर मैला ढोने का काम करते हैं। मानव मल रेल पटरियों पर गिरता रहता है। इसको साफ सफाई कर्मी करते हैं। अमृत महोत्सव तभी कारगर होगा जब इस वर्ष में मानवता के नाम पर लगे इस कलंक को मिटाने का संकल्प लिया जाए।
[ केसी त्यागी ]: पिछले दिनों दिल्ली के एक इलाके में सीवरटैंक की सफाई कर रहे दो मजदूरों की मौत ने एक बार फिर सभ्य समाज को शर्मसार किया। सफाई कर्मचारियों के लिए आंदोलन चला रहे विलसन इसे मृत्यु के बजाय कत्ल की संज्ञा दे रहे हैं। घटनाक्रम के अनुसार 25 मार्च की रात को सैप्टिक टैंक की सफाई करवाई जा रही थी। पुलिस जांच में पता चला कि दोनों मजदूर बगैर सुरक्षा उपकरणों के टैंक के अंदर उतरे थे। परिवार देर रात तक उनके आने का इंतजार करता रहा, लेकिन दोनों की मौत की सूचना आई। राजधानी के बीचों-बीच घटित इस घटना ने यही बताया कि सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार द्वारा समय-समय पर जारी चेतावनियों को किस प्रकार अनदेखा किया जाता है। हाथ से मैला उठाने वाले र्किमयों के नियोजन और उनके पुनर्वास संबंधी अधिनियम, 2013 के तहत बगैर पर्याप्त सुरक्षा उपायों के सीवर या सैप्टिक टैंक के अंदर जाने पर रोक है। सैप्टिक टैंक की सफाई में 21 दिशा-निर्देशों का पालन करना आवश्यक होता है। इसमें विशेष सूट, ऑक्सीजन सिलेंडर, सेफ्टी बेल्ट आदि उपकरण शामिल हैं। इतना ही नहीं आपातकाल की स्थिति के लिए एंबुलेंस को पहले सूचित करने का प्रविधान भी है।
राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम: आजादी के 75 वर्ष के अवसर पर अमृत महोत्सव
केंद्र सरकार द्वारा आजादी के 75 वर्ष के अवसर पर अमृत महोत्सव के राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मनाने का भी यह वर्ष है। बापू अपने अंतिम दिनों में अपना अधिक समय वाल्मीकि बस्ती में गुजारा करते थे।
साबरमती आश्रमवासी अपना शौचालय स्वयं साफ करते थे, आज लोग हैं मजदूरों के भरोसे
साबरमती आश्रमवासियों के लिए अनिवार्य शर्त थी कि सभी अपना शौचालय स्वयं साफ करेंगे। दुखद है कि गांधीजी की इस भावना को उनके सपनों के भारत में नहीं समझा गया। आए दिन सीवर की सफाई के दौरान मजदूरों की दर्दनाक मौत की सूचना देशभर से आती ही रहती है। विडंबना यह है कि जहरीले गैस चैंबरों में हो रही एक के बाद एक मौतों के विरोध में न तो कोई कैंडल मार्च निकालता है और न ही यह मुद्दा राष्ट्रीय बहस का विषय बन पाता है। शायद इसलिए कि ये घटनाएं जाति श्रेष्ठता के बोध वर्ग की संवेदनाओं को झकझोरती नहीं हैं। सांसद जया बच्चन ने ठीक ही कहा कि विकास के तमाम दावों के बीच कहां तो हम चंद्रमा तथा मंगल पर पहुंचने की बातें करते हैं, लेकिन दुखद है कि इस कुप्रथा को अभी तक समाप्त नहीं कर पाए हैं। यह पूरे देश के लिए शर्म की बात है।
गांधी और आंबेडकर ने हाथ से मैला ढोने की प्रथा का विरोध किया था
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अधीन काम करने वाली संस्था नेशनल सफाई कर्मचारी फाइनेंस एंड डेवलपमेंट कॉरपोरेशन ने 18 राज्यों के 170 जिलों में अगस्त 2019 में एक सर्वे किया था। सर्वे में कुल 87,913 लोगों ने खुद को मैला ढोने वाला बताते हुए रजिस्ट्रेशन कराया, जिसमें सिर्फ 42,303 लोगों को ही राज्य सरकारों ने हाथ से मैला ढोने वाले के रूप में स्वीकार किया है। केंद्र सरकार ने भी माना है कि पिछले पांच वर्षों में नालों और टैंकों की सफाई के दौरान 340 लोगों की जान गई है और इनमें से 270 लोगों को ही मुआवजा राशि प्राप्त हो पाई है। गौरतलब है कि महात्मा गांधी और डॉ. भीमराव आंबेडकर ने हाथ से मैला ढोने की प्रथा का विरोध किया था। यह संविधान के अनुच्छेद 15, 21, 38 और 42 के प्रविधानों के खिलाफ है। सरकार ने संसद से दो बार इस पर कानून बनाए हैं। पहला कानून में 1993 और दूसरा 2013 में, लेकिन इस समस्या के समाधान के लिए किए गए प्रयास निराशाजनक हैं। अफसोस है कि नए संशोधनों के साथ इस संबंध में लाया जा रहा नया विधेयक भी कई तरह की त्रुटियों का शिकार है।
सरकार ने हाथ से मैला सफाई समाप्त कर 1.25 लाख करोड़ का नेशनल एक्शन प्लान तैयार किया
यद्यपि केंद्र सरकार ने हाथ से मैला सफाई की व्यवस्था समाप्त करने की दिशा में 1.25 लाख करोड़ रुपये की लागत से नेशनल एक्शन प्लान तैयार किया है। इसके तहत 500 शहरों समेत बड़ी ग्राम पंचायतों में भी सफाई के लिए हाईटेक मशीनों का इस्तेमाल किया जाना है। एक सर्वेक्षण के मुताबिक सैप्टिक टैंकों की सफाई करने वाले मजदूरों को टीबी, हैजा जैसी गंभीर बीमारियां आमतौर पर घेरे रहती हैं। कई अवसरों पर दिहाड़ी मजदूरों को ज्यादा शराब पिलाकर भी इन टैंकों की सफाई करने में इस्तेमाल किया जाता है। पिछले 10 वर्षों में केवल मुंबई नगर निगम के 2,721 सफाई कर्मचारी मृत्यु को प्राप्त हो चुके हैं। ज्यादातर स्थानीय ठेकेदार अकुशल सफाई र्किमयों को बगैर बेल्ट एवं टॉर्च के गहरे टैंकों में उतार देते हैं। 500 से 1000 रुपये की मजदूरी पर सफाई कर्मी जहरीले चैंबरों में उतरने का जोखिम उठाते हैं, जिसमें अमोनिया, कार्बन डाईऑक्साइड, सल्फर डाईऑक्साइड गैसों से उनकी मौत हो जाती है।
स्वच्छ भारत अभियान सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल, लेकिन बजट में कोई वृद्धि नहीं
स्वच्छ भारत अभियान केंद्र सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल है, लेकिन चिंताजनक है कि इस मद के लिए इस बार के बजट में पिछले वर्ष की तुलना में कोई वृद्धि नहीं हो पाई है। 2011 के आंकड़ों के मुताबिक देश में शुष्क शौचालयों की संख्या लगभग 26 लाख है। लगभग 14 लाख शौचालयों की गंदगी खुले में प्रवाहित होती है। लगभग तीन लाख से अधिक शौचालयों की सफाई हाथों द्वारा होती है। एक अनुमान के मुताबिक लगभग आठ लाख भारतीय अपने सिर पर मैला ढोने का काम करते हैं। लगभग 12,000 से अधिक रेलगाड़ियां देशभर में दौड़ती हैं। उनमें मौजूद शौचालयों के निरंतर इस्तेमाल से मानव मल पटरियों पर गिरता रहता है। जाहिर है कि इसकी सफाई भी सफाई कर्मियों द्वारा कराई जाती है। इनमें अधिकांश संविदा पर होते हैं। जाहिर है कि यह अमृत महोत्सव का उत्सव तभी कारगर होगा, जब इस वर्ष में मानवता के नाम पर लगे इस कलंक को मिटाने का संकल्प लिया जाए।
( लेखक जदयू के प्रधान महासचिव हैं )