डॉ. लक्ष्मी शंकर यादव। सात मई 2021 को पूर्वी यरूशलम स्थित अल-अक्सा मस्जिद में फलस्तीनी नमाजियों और इजरायली सेना के बीच जो झड़पें शुरू हुईं, उसने जंग का रूप धारण कर लिया। एक तरफ हमास द्वारा इजरायली शहरों को रॉकेट से निशाना बनाने और दूसरी ओर इजरायल से गाजा पट्टी पर हवाई हमलों के चलते आसमान पर मिसाइलों की जंग छिड़ गई। साथ ही, इजरायल के कई शहरों और कस्बों में अरब यहूदियों के बीच हिंसा और भड़क उठी। गाजा में जारी संघर्ष के चलते अब तक अनेक फलस्तीनियों की मौत हो चुकी है, जबकि हमास द्वारा दागे गए रॉकेटों से इजरायल में भी कुछ लोग मारे गए हैं।

विदित हो कि इजरायल के यहूदियों द्वारा 1948 में वहां के इस्लामिक राजा से स्वतंत्रता प्राप्त कर एक राज्य बनाया गया था और उसके बाद से लगातार फलस्तीनियों से उनका संघर्ष जारी है। वर्ष 1967 के अरब-इजरायल युद्ध में विजयी होने के बाद उस जीत की याद में वर्षगांठ के रूप में वह यरूशलम डे मनाता रहा है। यरूशलम के शेख जर्राह इलाके को यहूदी और मुस्लिम दोनों ही पवित्र स्थल मानते हैं। अल-अक्सा मस्जिद पुराने यरूशलम में है। यहीं यहूदियों का टेंपल माउंट भी है। दोनों संप्रदाय के लोग इस जगह को अपना पवित्र धार्मिक स्थल मानते हैं और इस पर दावा करते हैं। इजराइल यरूशलम शहर के एक हिस्से को आधुनिक शहर के तौर पर विकसित कर रहा है जो फलस्तीनियों को मंजूर नहीं है। दुनिया के कई देश इस निर्माण कार्य को रोकने की मांग कर रहे हैं, लेकिन इजरायल का कहना है कि वह निर्माण कार्य जारी रखेगा, क्योंकि यह उसका अपना इलाका है।

हालिया इतिहास पर गौर करें तो हमास और और इजरायल के बीच पिछला बड़ा संघर्ष सात साल पहले हुआ था। इन दोनों के बीच अब तक 16 बार हिंसक झड़पें हो चुकी हैं। मामले में थोड़ा बदलाव तब आया जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जब यरूशलम में इजरायली दूतावास खोलने की मंजूरी दी थी तब कोई संघर्ष नहीं हुआ था। जब यूएई सहित खाड़ी के तीन देशों ने इजरायल को मान्यता दी थी तो उस समय भी शांति कायम रही थी। वर्तमान संघर्ष के लिए इजरायली सेना का एक वर्ग दो माह पहले से इसकी आशंका जता रहा था। अब यह लड़ाई उस समय हुई जब फलस्तीन में हमास की लोकप्रियता अधिक है और उसका दबदबा बढ़ता जा रहा है। इसलिए वहां का युवा वर्ग हमास के साथ लड़ाई को आगे बढ़ाता रहा। युवाओं के साथ होने के कारण हमास ने अवसर का लाभ उठाकर राजनीतिक नेतृत्व पर हावी होने का प्रयास किया और लोगों को यह समझाने में सफल रहा कि इजरायल से विवाद का हल सियासत से नहीं हो सकता। वहां के लोग पिछले कई वर्षों से चले आ रहे इजरायली प्रतिबंधों से भी परेशान हैं। इसके अलावा, वेस्ट बैंक पर कब्जा भी इस संघर्ष के लिए काफी हद तक जिम्मेदार है। इजरायल में अरबों के साथ दशकों से चला आ रहा भेदभाव भी एक कारण है।

वैसे बढ़ते अंतरराष्ट्रीय दबाव के बीच संघर्ष विराम की ओर मामला बढ़ता हुआ दिख रहा है। सउदी अरब के विदेश मंत्री प्रिंस फैसल बिन फरहान अल साउद ने 16 मई को कहा था कि इजरायल द्वारा गाजा पर हमले फलस्तीन के अधिकारों का उल्लंघन है। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से इजरायल की सैन्य कार्रवाई को तत्काल बंद करवाए जाने के लिए दबाव बनाने का अनुरोध किया था। इस लड़ाई को रोकने के लिए 57 सदस्यीय इस्लामिक सहयोग संगठन की बैठक भी हुई जिसमें इजरायल से गाजा पर हमले बंद करने की अपील की गई। दूसरी तरफ इजरायल के साथ भी करीब 25 देश आ गए हैं। भारत फिलहाल इन दोनों गुटों में किसी तरफ नहीं है। भारत ने तत्काल संघर्ष रोकने की बात की है। तमाम देशों के हस्तक्षेप से संघर्ष विराम होता तो दिख रहा है, लेकिन दोनों पक्षों की स्थितियों को देखकर यह कहना मुश्किल है कि भविष्य में अब संघर्ष नहीं होगा।

(लेखक सैन्य विज्ञान विषय के प्राध्यापक रहे हैं)