सृजन पाल सिंह : नववर्ष के आगमन पर जब पूरा देश नए उत्साह और नई आशाओं से लबरेज था तब राजधानी दिल्ली में एक हिट एंड रन केस ने लोगों को झकझोर कर रख दिया। इससे कुछ ही दिन पहले क्रिकेटर रिषभ पंत एक सड़क हादसे में बाल-बाल बचे। पिछले वर्ष सितंबर के महीने में जाने-माने उद्योगपति साइरस मिस्त्री तो ऐसी भयावह सड़क दुर्घटना के शिकार बने कि मौके पर ही उनकी मौत हो गई। ये कोई इक्का-दुक्का मामले नहीं हैं।

भारत में हर साल करीब डेढ़ लाख लोग सड़क हादसों में अपनी जान गंवाते हैं। यह स्थिति तब है जब भारत में विश्व के तकरीबन 10 प्रतिशत वाहन ही हैं, लेकिन सड़क हादसों में एक चौथाई लोग भारत में जान गंवाते हैं। ऐसे अनगिनत उदाहरणों और तथ्यों की कड़ी कहीं न कहीं सड़क सुरक्षा के बिंदु पर आकर जुड़ती है। ये हमें यही स्मरण कराते हैं कि सड़क सुरक्षा सुनिश्चित करना हमारे लिए तत्काल कितना महत्वपूर्ण हो गया है। ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि हम सड़कों को सभी के लिए सुरक्षित कैसे बनाएं? दिल्ली हिट एंड रन केस के तुरंत बाद कई तरह की मांगें सामने आईं। उनमें दिल्ली पुलिस में नई भर्तियों से लेकर आरोपित ड्राइवर को मौत की सजा देने जैसी मांगें शामिल हैं, लेकिन क्या ऐसे कदम कारगर होंगे?

सड़क हादसे क्यों होते हैं? इसके मुख्यत: छह कारण हैं। पहला-अंधाधुंध रफ्तार के कारण, दूसरा-ट्रैफिक नियमों को तोड़ने के कारण, तीसरा-नशे में गाड़ी चलाने या गाड़ी चलाने के दौरान नींद आने के कारण, चौथा-खस्ताहाल सड़कों या उन पर अतिक्रमण के कारण और पांचवां गाड़ियों की खराब हालत और आखिरी कारण है तत्काल चिकित्सा सहायता की अनुपलब्धता के चलते।

सड़क हादसों से बचने का सबसे प्रभावी उपाय है तकनीक में निवेश करना। इसमें आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस यानी एआइ तकनीक बड़ी सहायक हो सकती है। वाहनों को एआइ से लैस करके उनकी ट्रैकिंग संभव है। इससे वाहन की ड्राइविंग और रफ्तार के पैटर्न पर नजर रखी जा सकेगी और ड्राइवर का संपर्क स्टीयरिंग व्हील से टूटते ही पता लगाकर ड्राइवर को सतर्क किया जा सकेगा। यदि हम इसे जीपीएस से जोड़ दें और ‘जियो-फेंसिंग’ जैसी तकनीक का इस्तेमाल करें तो शहरी एवं दुर्घटना आशंकित क्षेत्रों में वाहनों की अधिकतम गति को अपने आप ही नियंत्रित कर सकेंगे, जिससे हादसे का खतरा कम हो जाएगा। इसी तकनीक का इस्तेमाल रात के वक्त या घने कोहरे के समय भी किया जा सकता है।

चूंकि तमाम सड़क हादसे ड्राइवर की थकान या झपकी लगने के कारण होते हैं, इसलिए इस मामले में सतर्क करने वाली तकनीकें विकसित करना उपयोगी होगा। ऐसी तकनीकों में स्टीयरिंग व्हील के पैटर्न से लेकर ड्राइवर की आंखों और चेहरे की लगातार निगरानी की जाती है ताकि उसकी थकान का पता चल सके। इस प्रकार के सिस्टम को सभी ट्रकों और बसों के लिए अनिवार्य किया ही जाना चाहिए, क्योंकि उनके चालक अक्सर रात के समय और कई घंटों तक लगातार वाहन चलाते हैं।

अन्य देशों के उदाहरणों पर गौर करें तो आस्ट्रेलिया ने प्रायोगिक तौर पर ‘इग्निशन लाकिंग सिस्टम’ लागू किया है, जिसमें जब ड्राइवर अपनी श्वास का सैंपल देता है, तभी उसकी गाड़ी स्टार्ट होती है। अगर उसने शराब पी रखी है तो उसका वाहन चालू ही नहीं होगा। यह लाक सिस्टम ड्राइवर की फोटो खींचकर अधिकारियों को सतर्क कर देगा। सिंगापुर में मैंने एक स्टार्टअप देखा जो हेलमेट के लिए वायरलेस सेंसर बनाता है। यह चालक को पहुंचने वाली किसी भी चोट की खबर उसकी लोकेशन के साथ उसके परिवार और दोस्तों को देता है, जिससे उसका बचाव तत्काल संभव हो सकता है। यह उन मामलों को कम कर देगा, जिनमें किसी व्यक्ति की जान समय पर मदद न मिल पाने के कारण चली जाती है।

ऐसे ही नवाचारों के जरिये हमारी सड़कों को भी स्मार्ट बनाए जाने की जरूरत है और मानवीय निर्भरता को कम करते हुए ट्रैफिक नियमों को एआइ के इस्तेमाल से लागू किया जाना चाहिए। एआइ पर आधारित आसान तरीकों से किसी भी ओवरलोडेड ट्रक और ट्राली को ट्रैक किया जा सकेगा और उनके आकार को देखकर उन्हें रोका जा सकेगा। सड़कों पर रोशनी को कई गुना बेहतर किया जा सकता है। इसी प्रकार सड़क पर चल रहे पुराने और क्षतिग्रस्त वाहनों का पता भी एआइ का इस्तेमाल कर सुगमता से लगाया जा सकता है।

नि:संदेह तमाम सावधानी बरतने के बावजूद सड़क हादसों को पूरी तरह रोक पाना संभव नहीं, लेकिन उसके बाद लोगों की जान बचाने के उपाय तो किए ही जा सकते हैं। दुर्घटना के बाद पहले घंटे को ‘गोल्डन आवर’ कहते हैं। यदि इस आरंभिक एक घंटे में प्राथमिक चिकित्सा मिल जाए तो दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की जान बचाने में मदद मिल सकती है। इसके लिए ड्राइविंग लाइसेंस लेते समय लोगों का ‘फर्स्ट एड’ टेस्ट पास करना अनिवार्य बनाना होगा। स्कूलों और कालेजों में भी युवाओं को आकस्मिक प्राथमिक चिकित्सा में दक्ष बनाना होगा, ताकि वे किसी भी दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति के अस्पताल पहुंचने से पहले जीवन रक्षा चिकित्सा प्रदान करने में सक्षम हो सकें। कुछ समय पहले दुबई में यह देखा गया कि वहां सड़क दुर्घटना में प्राथमिक चिकित्सा प्रदान करने के लिए ड्रोन का उपयोग किया गया। भारत में भी इसे आजमाया जा सकता है।

अब सवाल यही है कि भारत में सड़क सुरक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाने के लिए कौन आगे आएगा। इसका जवाब है-हमारे युवा उद्यमी। हमें एक ऐसा स्टार्टअप हब बनाने की आवश्यकता है, जो सिर्फ सड़क सुरक्षा से जुड़े समाधान उपलब्ध कराए। सड़क परिवहन मंत्रालय इसके लिए पूंजी उपलब्ध करा सकता है और वाहन निर्माता भी कुछ संसाधन प्रदान कर सकते हैं। इस अभियान में युवा इंजीनियरों और पेशेवरों को भी जोड़ना होगा कि वे शीघ्रता से अपने सुझाव दें। उनमें से कुछ अर्थपूर्ण एवं व्यावहारिक सुझावों को सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से मूर्त रूप देकर सड़क सुरक्षा के अभियान को सफल बनाया जा सकता है।

(कलाम सेंटर के सीईओ लेखक पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के सलाहकार रहे हैं)