कोरोना वायरस से सहमे झारखंड को शर्मिंदा कर रही जाति-मजहब और वोट की राजनीति...
सभी को यह समझना होगा कि महामारी के समय में इसका खात्मा करना ही सबकी पहली और आखिरी प्राथमिकता होनी चाहिए। यह समय वोट की चिंता करने का नहीं है।
झारखंड, प्रदीप शुक्ला। राज्य में रांची और बोकारो कोरोना के हॉटस्पॉट बनते जा रहे हैं या यह कहें कि बन ही चुके हैं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी, लेकिन इससे लड़ाई में अभी भी कई स्तरों पर असमंजस दिख रहा है। पुलिस-प्रशासन भ्रमित है। उन पर कोई राजनीतिक दबाव है या वह बेहतर रणनीति नहीं बना पा रहे हैं, इस पर आमजन में भी चर्चा शुरू हो चुकी है। झारखंड हाईकोर्ट ने भी इसका स्वत: संज्ञान लिया है और तल्ख टिप्पणी करते हुए मुख्य सचिव सहित जिला प्रशासन के आला अफसरों को तलब किया है।
कोरोना महामारी वोट से बड़ी : उधर इस मुद्दे पर राजनीतिक दल भी एक-दूसरे पर हमलावर हैं। शायद उन्हें इसका भान नहीं है कि इस वक्त जुबानी जंग से न तो राज्य का कोई भला होने वाला है न ही उनके वोटरों का। जरूरत इस बात की है कि कोरोना से लड़ाई में सारे प्रयास ईमानदारी से धरातल पर उतारें। सभी को इसकी समझ होनी चाहिए। यह महामारी वोट से बड़ी है। इसलिए अभी वक्त जाति-मजहब जैसी संकीर्ण सोच से ऊपर उठकर कोरोना को हराने का है।
लॉकडाउन का सख्ती से पालन हो : अभी तक जो 28 मामले आए हैं उनमें से अकेले 14 रांची के हिंदपीढ़ी इलाके से हैं। इसके अलावा बोकारो में नौ, हजारीबाग में दो, गिरिडीह में दो और सिमडेगा में एक व्यक्ति में कोरोना का संक्रमण पाया गया है। राज्य के 24 में से 19 जिलों में अभी यह संक्रमण नहीं पहुंचा है। यह राज्य का सौभाग्य है। यदि लॉकडाउन का सख्ती से पालन सुनिश्चित कराया जाए तो इस बड़ी विपदा से बखूबी निपटा जा सकता है। अभी तक जो केस सामने आए हैं उनमें से चार को छोड़ सभी मरीज तब्लीगी जमात से जुड़े हैं। तब्लीगी जमात का अब तक जो गैर जिम्मेदाराना रवैया रहा है उससे सभी भलीभांति वाकिफ ही हैं। इनको लेकर शासन स्तर पर जरूर असमंजस की स्थिति है। पुलिस-प्रशासन को जितने कठोर निर्णय लेने चाहिए, उतने नहीं लिए जा रहे हैं। हिंदपीढ़ी में लगातार स्वास्थ्यकर्मियों के साथ बदतमीजी की जा रही है।
स्वास्थ्यकर्मियों पर हमले की घटनाएं रुकें : यहां तक कोरोना संक्रमित मरीजों को अस्पताल लाने के लिए जिला प्रशासन को कई घंटे मनुहार करनी पड़ रही है। भीड़ हमले भी कर रही है, लेकिन पुलिस वह सख्ती नहीं बरत पा रही है जिसकी जरूरत है। इससे इस इलाके में स्वास्थ्य, सफाई के काम में लगे कर्मचारियों के साथ-साथ पुलिस-प्रशासन के अफसरों के मनोबल पर असर पड़ रहा है। चौतरफा दबाव के बाद कुछ मुकदमें दर्ज जरूर किए गए हैं, लेकिन उन पर अभी तक कोई ऐसी कार्रवाई नहीं हुई है जिससे यह संदेश जा सके कि समाज विरोधी बर्ताव करने वालों को सबक मिले और बवाल, उपद्रव, अनावश्यक विरोध एवं पुलिस-प्रशासन और स्वास्थ्यकर्मियों पर हमले की घटनाएं रुकें।
कोरोना से लड़ाई में बाधा बन रहे तत्वों से कड़ाई से निपटा जाए : राज्य की हेमंत सोरेन की गठबंधन सरकार में कांग्रेस कोटे से स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने कई दिन बाद इस पर चुप्पी तोड़ी है और ऐसी घटनाओं में लिप्त लोगों को देशद्रोही करार दिया है, लेकिन उन्हीं की पार्टी के दूसरे मंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. रामेश्वर उरांव कह रहे हैं कि तब्लीगियों को बेवजह बदनाम किया जा रहा है। मुख्यमंत्री बीच-बीच में यह संदेश दे रहे हैं कि अराजकता बर्दाश्त नहीं की जाएगी। कोरोना से लड़ाई में बाधा बन रहे तत्वों से कड़ाई से निपटा जाएगा। उनका यह संदेश पुलिस-प्रशासन ठीक से समझ नहीं पा रहा है अथवा कुछ गफलत है।
इस बीच विपक्षी दल भाजपा ने सरकार पर हमले शुरू कर दिए हैं। भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी और प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश खुलेआम सरकार पर आरोप लगा चुके हैं कि कोरोना जैसी महाआपदा के समय भी वह धर्म और जाति के समीकरण में उलझी है। न महामारी से ठीक से निबट पा रही है न ही कानून हाथ में लेने वालों पर कार्रवाई कर रही है। इसका उसे खामियाजा भुगतना पड़ेगा। जनता सब देख रही है।
इस बीच गांवों में भी लगातार तनाव बढ़ रहा है। कोरोना संक्रमण फैलाने की झूठी अफवाहों पर हजारों की भीड़ एकत्र हो जा रही है। कई गांवों में तो बाकायदे रतजगा हो रहा है। समय कठिन है और लड़ाई बड़ी है। इसे पूरी सख्ती और पारदर्शिता से लड़कर ही जीता जा सकता है। यदि इस समय भी हिस्सों में बंटकर अपने-अपने स्वार्थ साधने की कोशिशें जारी रहीं तो यह राज्य के लिए बड़ा अहितकारी साबित होगा। सभी को यह समझना होगा कि महामारी के समय में इसका खात्मा करना ही सबकी पहली और आखिरी प्राथमिकता होनी चाहिए। यह समय वोट की चिंता करने का नहीं है।
[स्थानीय संपादक, झारखंड]