[ प्रदीप सिंह ]: आजमाई हुई कहावत है-सहज पके सो मीठा होय। महाराष्ट्र में सत्ता के उतावलेपन में भाजपा ने इस कहावत से जुड़ी सीख को अनदेखा किया। इसका नतीजा यह हुआ कि साफ-सुथरी और ईमानदार छवि वाले उसके युवा नेता देवेंद्र फड़णवीस बलि का बकरा बन गए। महाराष्ट्र में जो हुआ उसके लिए सिर्फ फड़णवीस ही दोषी नहीं हैं। पिछले डेढ़ साल में भाजपा ने दूसरी बार मुंह की खाई है।

भाजपा गलत घोड़े पर दांव लगाकर औंधे मुंह गिरी

भाजपा ने कर्नाटक की गलती से कोई सबक नहीं सीखा और गलत घोड़े पर दांव लगाकर औंधे मुंह गिर गई। वह भूल गई कि उसका मुकाबला राजनीति के धुरंधर शरद पवार से था। शरद पवार ने फड़नवीस को अभिमन्यु की तरह चक्रव्यूह में घेर कर ढेर किया। 80 घंटे, जी हां सिर्फ 80 घंटे में भाजपा ने महाराष्ट्र में चुनाव बाद अर्जित की हुई सारी सद्भावना गंवा दी। महाराष्ट्र में जनादेश भाजपा-शिवसेना गठबंधन को मिला था, लेकिन नतीजे के बाद शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे की महत्वाकांक्षा कुलांचे मारने लगी। आखिरकार उन्होंने भाजपा से नाता तोड़ लिया।

राज्यपाल और प्रधानमंत्री की आलोचना हुई

बीते शनिवार की सुबह लोग सोकर ही उठे होंगे तो पता चला कि महाराष्ट्र में फड़णवीस मुख्यमंत्री और राकांपा के अजीत पवार उपमुख्यमंत्री बन गए हैं। राजनीतिक हलकों में इसे भाजपा का मास्टर स्ट्रोक कहा गया। राज्यपाल और प्रधानमंत्री के इस कदम की आलोचना हुई तो भाजपा की ओर से पूछा गया कि क्या कोई गैर संवैधानिक काम हुआ है? इसके पहले जब फड़णवीस ने राज्यपाल को सूचित किया था कि शिवसेना के अलग हो जाने के बाद वह सरकार बनाने की स्थिति में नहीं हैं तब वह नायक और शिवसेना खलनायक नजर आ रही थी।

भ्रष्टाचार के आरोप में आकंठ डूबे अजीत पवार के साथ मिलकर भाजपा ने बनाई थी सरकार

राजनीति में महत्वाकांक्षा कोई बुरी बात नहीं है, परंतु उसमें जमीनी हकीकत के साथ कोई मेल तो होना चाहिए। सार्वजनिक जीवन में लोकलाज भी कोई चीज होती है। कोई पूछ सकता है कि लोकलाज की अपेक्षा हमेशा भाजपा से ही क्यों? वाजिब सवाल है। भाजपा से यह सवाल इसलिए, क्योंकि वह राजनीति में सबसे अलग होने का दावा करती है। जिस दिन भाजपा ऐसा दावा करना छोड़ देगी, लोग भी पूछना छोड़ देंगे। भाजपा ने जो किया उसे गुनाह बेलज्जत कहते हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस यानी उसे बिल्कुल भी बर्दाश्त न करने की बात और भ्रष्टाचार के आरोप में आकंठ डूबे अजीत पवार के साथ मिलकर सरकार बनाने की बात किसके गले उतरती? इसका यह भी मतलब है कि भाजपा अपने नए मतदाताओं के मिजाज को या तो समझ नहीं रही या उसकी परवाह नहीं करती। जो नए और युवा लोग भाजपा से जुड़े हैैं वे एक हद तक नैतिकतावादी हैैं। वे टैक्स चोरी करने वाली जमात जैसे नहीं हैं। ईमानदारी से टैक्स देने और देश के बारे में शिद्दत से सोचने वाले लोग हैं। यह विरोधाभास उनके गले नहीं उतरेगा।

भाजपा ने कच्चा खेल खेलकर गच्चा खा गए

इससे इन्कार नहीं कि व्यावहारिक राजनीति में समझौते करने पड़ते हैं, लेकिन आखिर आप कोई लक्ष्मण रेखा खींचेंगे या नहीं? जो दूसरों ने किया या जो कर रहे हैं वही आप भी करेंगे तो फर्क क्या रह जाएगा? सवाल यह भी है कि आपने अपनी पहली गलती (कर्नाटक) से कोई सबक सीखा क्या? जिस काम से आपने प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति की प्रतिष्ठा जोड़ दी उसमें ऐसा कच्चा खेल खेले ही क्यों? जो नेता अपनी पार्टी के विधायकों के दस्तखत का गलत इस्तेमाल कर रहा हो उस पर भरोसा क्यों कर लिया? कोई प्लान बी क्यों नहीं था? ये ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब पार्टी को देर-सबेर देना पड़ेगा।

भाजपा ने इस पूरे प्रकरण में शरद पवार को बहुत हल्के में लिया

भाजपा ने इस पूरे प्रकरण में अजीत पवार की ताकत का तो गलत अंदाजा लगाया ही, शरद पवार को भी बहुत हल्के में ले लिया। भाजपा की रणनीतिक गलतियों का सिलसिला विधानसभा चुनाव से ही शुरू हुआ। पहली गलती शिवसेना से चुनावी गठबंधन करना। ऐसी पार्टी से गठबंधन किया जो पांच साल तक प्रदेश नेतृत्व से लेकर प्रधानमंत्री तक को गरियाती रही। दूसरी गलती शरद पवार को ईडी का नोटिस भेजकर एक खुले दरवाजे को बंद कर दिया। वह भूल गई कि 2014 में भाजपा की सरकार को सदन में पवार की राकांपा ने ही बचाया था। तीसरी बड़ी गलती, सत्ता का उतावलापन। उसे चुपचाप किनारे बैठकर तीनों पार्टियों का सत्ता का खेल देखना चाहिए था। तीन पार्टियों की सरकार अपने अंतर्विरोधों के बोझ तले स्वयं ही दब जाती। भाजपा ने उतावलेपन में इन तीनों पार्टियों की केमिस्ट्री और मजबूत कर दी। इस तरह भाजपा ने सत्ता और साख, दोनों गंवाई।

चुनाव में भी जीतेंगे और चुनाव के बाद भी जीतेंगे

महाराष्ट्र्र में सरकार गठन के लिए एक महीने चले इस प्रकरण के कई सबक हैं। सबसे बड़ा सबक भाजपा के लिए है। चुनाव में भी जीतेंगे और चुनाव के बाद भी जीतेंगे, यह अपवाद हो सकता है, नियम नहीं। पार्टी के पुराने नेताओं को हाशिये पर धकेलने और दूसरे दलों से लोगों को लाने का अनुपात तय होना चाहिए।

जीत आपको मुगालते में रखती है और पराजय सोचने, संभलने का मौका देती है

प्रदेश में किसी एक नेता का नेतृत्व स्थापित करने के लिए पुराने नेताओं को दूध की मक्खी की तरह निकालना नुकसानदेह हो सकता है। महाराष्ट्र और हरियाणा इसके ताजा उदाहरण हैं। ये बातें उस समय दिखाई नहीं देतीं जब आप लगातार जीत रहे हों। जीत आपको मुगालते में रखती है। उस समय सब अच्छा ही अच्छा दिखता है। पराजय रुककर सोचने, संभलने का मौका देती है। यह सोचने का भी कि कहां क्या गलती हुई और उसे ठीक करने के लिए क्या किया जाए?

उद्धव ठाकरे की महत्वाकांक्षा को शरद पवार के पर लगे तो वह मुख्यमंत्री के पद तक पहुंच गए

उद्धव ठाकरे की महत्वाकांक्षा को शरद पवार के पर लगे तो वह मुख्यमंत्री के पद तक पहुंच गए। अब आगे का रास्ता उन्हें खुद ही तय करना पड़ेगा। गठबंधन सरकार चलाना और वह भी परस्पर विरोधी विचारधारा वाली पार्टियों की, बहुत कठिन काम है। फिर ठाकरे को कोई प्रशासनिक अनुभव भी नहीं है। उद्धव की यही कमजोर नस शरद पवार की ताकत बढ़ाएगी।

महाराष्ट्र प्रकरण में शरद पवार पहले से अधिक ताकतवर होकर उभरे

इस पूरे प्रकरण में शरद पवार पहले से अधिक ताकतवर होकर उभरे हैं। सरकार का रिमोट कंट्रोल पवार के हाथ में होगा। यह इस सरकार की ताकत भी है और कमजोरी भी।

80 घंटे की सरकार बनाकर भाजपा ने राष्ट्रीय राजनीति में शरद पवार का कद बढ़ा दिया

80 घंटे की सरकार बनाकर भाजपा ने राष्ट्रीय राजनीति में शरद पवार का कद बढ़ा दिया है। उन्होंने विधानसभा चुनाव में ईडी का नोटिस मिलने के बाद और फिर वैकल्पिक सरकार बनवाकर अपनी ताकत का अहसास करा दिया। पवार के राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी एकता की धुरी बनने का रास्ता खुल गया है। पवार और विपक्ष को यह मौका भाजपा की एक गलती ने दिया है। क्रिकेट की भाषा में कहें तो यह अनुभवी बल्लेबाज को जीवनदान देने जैसा है। अब पवार और बाकी विपक्षी दलों पर निर्भर है कि वे इसका फायदा उठा पाते हैं या नहीं?

( लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं )