[ संजय गुप्त ]: भारत अभी भी कोरोना संक्रमण के चुनौती भरे दौर से गुजर रहा है। हालांकि कोरोना मरीजों के ठीक होने की दर बेहतर हुई है, लेकिन संक्रमण से ग्रस्त होने और मरने वालों की बढ़ती संख्या चिंता का विषय बनी हुई है। संक्रमण के बीच लॉकडाउन के तीसरे चरण में रेड, ऑरेंज, ग्रीन जोन में कुछ कारोबारी गतिविधियों को शुरू करने के लिए जो छूट दी गई थी उसका असर दिखने तो लगा है, लेकिन उसे पर्याप्त नहीं कहा जा सकता।

कारोबारी गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए जारी दिशा-निर्देशों को लेकर असमंजस

लॉकडाउन में ढील के बाद लोग काम पर जाने लगे हैं, लेकिन कहीं-कहीं शारीरिक दूरी के पालन में ढिलाई दिख रही है। संक्रमण पर लगाम न लगने के बाद भी कामगार से लेकर मैनेजर और उद्योगपति-व्यापारी तक-सभी यह महसूस कर रहे हैं कि रोजी-रोटी चलाने के लिए उद्योग-व्यापार शुरू करने होंगे। हालांकि कारोबारी गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं, लेकिन उन्हें लेकर असमंजस का माहौल दिख रहा है।

देश के सबसे बड़ेे आर्थिक गढ़ दिल्ली-एनसीआर में आवाजाही नियंत्रित है

दिल्ली-एनसीआर देश का सबसे बड़ा आर्थिक गढ़ है, लेकिन यहां पर आवाजाही अभी भी नियंत्रित है। हरियाणा और उत्तर प्रदेश की ओर से अपनी सीमाओं पर सख्ती बरतने के कारण एनसीआर के लोग काम-धंधे के सिलसिले में दिल्ली नहीं जा पा रहे और दिल्ली के लोग एनसीआर जाने में मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। कुछ ऐसी ही स्थिति देश के अन्य हिस्सों में भी है।

ऑफिस-फैक्ट्रियां खोलने में लालफीताशाही आड़े आ रही

समस्या यह भी है कि ऑफिस-फैक्ट्रियां खोलने में लालफीताशाही आड़े आ रही है। सरकारें यह तो चाह रही हैं कि कारोबार तेजी से चले, लेकिन उन्हीं की पुलिस और प्रशासन अपनी सख्ती का रवैया छोड़ने को तैयार नहीं दिख रहा। इसके अलावा कई जटिल और सख्त नियम कारोबार शुरू करने में बाधक बन रहे हैं। आखिर इसका क्या मतलब कि दुकानें, कार्यालय और कारखाने खोलने के लिए अनुमति लेने की जरूरत पड़े? जब महज एक घोषणा से पूरे देश में लॉकडाउन किया जा सकता है तो इसी तरह से उसमें छूट क्यों नहीं दी जा सकती?

शराब की दुकानों पर शारीरिक दूरी का उल्लंघन हो रहा तो उद्योग-धंधे खोलने पर चिंता की जा रही

क्या यह विचित्र नहीं कि शराब की दुकानें खोलने के मामले में तो शारीरिक दूरी के उल्लंघन की परवाह नहीं की गई, लेकिन उद्योग-धंधे शुरू करने के मामले में ऐसा होने की जरूरत से ज्यादा चिंता की जा रही है? क्या राज्य सरकारों को यह नहीं दिखा कि शराब की दुकानों के आगे जैसी अनियंत्रित भीड़ उमड़ी उससे कोरोना के खिलाफ लड़ाई कमजोर पड़ने का खतरा पैदा हुआ?

अच्छा तो यह होता कि सरकारें शराब की भी होम डिलीवरी सुनिश्चित करातीं

सरकारों को इसका आभास होना चाहिए था कि लोग शराब खरीदने के लिए उतावले होंगे और वे शारीरिक दूरी के पालन को लेकर सतर्क नहीं रहेंगे। अच्छा तो यह होता कि सरकारें लॉकडाउन के दौरान अन्य आवश्यक वस्तुओं की तरह शराब की भी होम डिलीवरी सुनिश्चित करातीं। कम से कम सुप्रीम कोर्ट की सलाह के बाद तो ऐसा किया ही जाना चाहिए।

व्यापारियों और उद्योगपतियों के सामने कठोर नियमों की बंदिश ठीक नहीं

व्यापारियों और उद्योगपतियों के सामने कठोर नियमों की बंदिश ठीक नहीं। ये बंदिशें यही बताती हैं कि सरकारों को उद्योगपतियों और व्यापारियों पर भरोसा नहीं। भरोसे की यह कमी कारोबारी गतिविधियों को आगे बढ़ाने में बाधा ही बनेगी। आखिर इस अंदेशे का आधार क्या है कि कारोबारी जरूरी सतर्कता नहीं बरतेंगे?

कारोबार जगत को 45 दिनों में जो नुकसान हुआ उसकी भरपाई लंबे समय तक नहीं हो पाएगी

सरकारों को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि कारोबार जगत को पिछले 45 दिनों में जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई लंबे समय तक नहीं हो पाएगी। कुछ ऐसे आकलन आए हैं कि यह भरपाई 12 से 18 महीनों में भी हो जाए तो बड़ी बात होगी। सरकारों को इससे भी परिचित होना चाहिए कि सबसे अधिक रोजगार एमएसएमई क्षेत्र देता है। यही क्षेत्र लगभग 40 प्रतिशत निर्यात करता है। आज उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती टर्नओवर के अनुपात में बैंक से क्रेडिट लेने को लेकर है। स्पष्ट है कि उसे सरकारी मदद की दरकार है।

लॉकडाउन के कारण बंद हुए छोटे और मझोले उद्योगों के श्रमिकों ने अपने गांव लौटना शुरू कर दिया

लॉकडाउन के कारण बंद हुए छोटे और मझोले उद्योगों के श्रमिकों ने कुछ इंतजार के बाद अपने गृह राज्य लौटना शुरू कर दिया है। उप्र, बिहार और झारखंड के मजदूरों में कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, हरियाणा और पंजाब आदि राज्यों से वापस लौटने की होड़ मची है। इसे देखते हुए ही केंद्र सरकार ने श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलाना शुरू कर दी हैं। मजदूरों के घर लौटने से यह सवाल खड़ा हो गया है कि उनके बगैर उद्योग-धंधे कैसे चलेंगे?

यदि मजदूर वापस नहीं लौटे तो उद्योग-धंधे नुकसान उठाएंगे

सवाल यह भी है कि क्या घर-गांव लौटे मजदूरों को वहां अपने गुजारे के लिए कोई सही काम मिल पाएगा? हैरानी नहीं कि केंद्र और राज्य सरकारों को जल्द ही इसकी चिंता करनी पड़े कि अगले कुछ दिनों में मजदूरों को उनके कार्य स्थलों तक कैसे पहुंचाया जाए? अगर ये मजदूर वापस नहीं लौटे तो उनके साथ-साथ उद्योग-धंधे भी नुकसान उठाएंगे।

ट्रंप ने कहा- आर्थिक गतिविधियों को बंद नहीं किया जा सकता, भले ही कितनी भी मौतें हो जाएं

अगर देश के साथ-साथ दुनिया के आर्थिक हालात को देखा जाए तो इस समय सारे विकसित देश इसके लिए छटपटा रहे हैं कि उनका आर्थिक पहिया किसी तरह जल्द से जल्द घूमे। सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का कहना है कि बुरे हालात के कारण जिन तीन करोड़ लोगों की नौकरियां गईं वे सरकारी सहायता पर निर्भर हो गए हैं। उनका यह भी कहना है कि आर्थिक गतिविधियों को बंद नहीं किया जा सकता, भले ही कितनी भी मौतें हो जाएं। अमेरिका जैसे हालात यूरोप के भी हैं। हालांकि इन धनी देशों के पास अकूत पैसा था और इन्होंने नौकरी-पेशा लोगों को राहत देकर बड़ी हद तक उनकी मदद भी की, लेकिन भारत में अभी इसका इंतजार है कि निजी क्षेत्र के कर्मचारियों की मदद कौन करेगा और कैसे?

कोई कारोबारी अपने कर्मियों को न तो निकाल सकता है और न ही वेतन काट सकता है

फिलहाल देश में आपदा प्रबंधन अधिनियम लागू है और उसके तहत कोई कारोबारी अपने कर्मियों को न तो निकाल सकता है और न ही वेतन काट सकता है, लेकिन सरकार को यह भी पता होना चाहिए कि कारोबार जगत ने अप्रैल का वेतन तो जैसे-तैसे दे दिया, लेकिन यदि मई में भी हालात नहीं सुधरे तो तमाम कारोबारियों के लिए ऐसा करना मुश्किल होगा।

बड़े राहत पैकेज की दरकार

सरकार को समझना होगा कि किसी बड़े राहत पैकेज के बगैर बात बनने वाली नहीं है। अर्थशास्त्री पैकेज के लिए धन जुटाने के कई विकल्प सुझा रहे हैं। देखना है सरकार किस विकल्प को चुनती है और कब राहत पैकेज की घोषणा करती है? जितनी जल्दी यह घोषणा होगी उतनी ही जल्दी कारोबारी आर्थिक पहिये को गति देने में समर्थ हो पाएंगे। बेहतर हो कि सरकार कारोबार जगत के लिए राहत पैकेज की घोषणा करने में देर न करे, क्योंकि देरी से कारोबारियों के मनोबल पर बुरा असर पड़ रहा है। उसे समझना होगा कि यह समय कारोबार जगत का मनोबल बढ़ाने का है।

[ लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं ]