डॉ. सौम्य कांति घोष

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके जापानी समकक्ष शिंजो एबी आज अहमदाबाद में बुलेट ट्रेन परियोजना की आधारशिला रखने जा रहे हैं। मुंबई-अहमदाबाद हाई स्पीड रेल (एमएएचएसआर) परियोजना के उद्घाटन के साथ ही भारत ऊंची छलांग लगाते हुए 20 विशेष देशों के खास क्लब में शामिल हो जाएगा। यह परियोजना सुरक्षा, गति और सेवा के पैमाने पर नए प्रतिमान गढ़ेगी तो भारतीय रेलवे को भी विस्तार, गति और कौशल में वैश्विक स्तर पर अगुआ बनाने में मददगार होगी। जापानी बुलेट ट्रेन के आगमन को केवल आर्थिक अवसरों के नजरिये से नहीं देखा जाना चाहिए। इसके तमाम सामाजिक और मनोवैज्ञानिक फायदे भी मिलेंगे। सरकार आम और खास लोगों के बीच की खाई को पाटना चाहती है और इससे ऐसा करने में बड़ी मदद मिलेगी। तकनीकी प्रगति के चलते पहले ही आम जन को सूचनाओं और अवसरों का बड़ा संसार हाथ लगा है। एक वक्त विलासी मानी जाने वाली कंप्यूटर और स्मार्टफोन जैसी वस्तुएं अब आम आदमी की भी जरूरत बन गई हैं। इसी तरह बुलेट ट्रेन को अभी भले ही अभिजात्य मानकर उपहास उड़ाया जा रहा हो, लेकिन भविष्य में यह आम लोगों की आवाजाही में एक क्रांतिकारी भूमिका निभाएगी। यह गौर करने वाली बात है कि इस परियोजना के लिए कर्ज भी बेहद मामूली दर पर मिल रहा है। अमूमन 5 से 7 प्रतिशत की दर से मिलने वाला कर्ज महज 0.1 फीसद की दर पर मिलेगा और उसकी अदायगी के लिए लंबी अवधि की रियायत भी मिलेगी। तेज रफ्तार शिंकनसेन सिस्टम दुनिया भर में अपनी सुरक्षा, सहूलियत और समय की पाबंदी के लिए विख्यात है। बुलेट ट्रेन का जन्म शिंकनसेन नाम के जापानी शहर में ही हुआ था।
हालांकि अहमदाबाद और मुंबई सड़क और वायु मार्ग के जरिये बेहतर तरीके से जुड़े हैं, लेकिन पीक ऑवर्स में हवाई अड्डे तक पहुंचने के लिए तमाम पापड़ बेलने पड़ते हैं। हवाई यातायात देश के अधिकांश लोगों के लिए आज भी दूर की कौड़ी है और महज 10 फीसद से भी कम लोग हवाई सफर करते हैं। दूसरी ओर सबसे तेज चलने वाली राजधानी और दुरंतों एक्सप्रेस जैसी गाड़ियों पर जरूरत से ज्यादा बोझ है और वे अपनी क्षमता से अधिक चल रही हैं जिसका नतीजा अक्षम परिचालन और देरी के रूप में आता है। बुलेट ट्रेन चलने के बाद उम्मीद जताई जा रही है कि करीब 40,000 मुसाफिर रोजाना इससे सफर करेंगे जो आंकड़ा आगे चलकर 1,56,000 का स्तर भी छू सकता है। इसके और भी दूरगामी प्रभाव होंगे। मसलन बुलेट ट्रेन से महानगरों के बीच आवाजाही इतनी आसान हो जाएगी कि कामकाज के लिए लोगों को उसी शहर में नहीं रहना पड़ेगा। इसके व्यापक सामाजिक लाभ मिलेंगे यानी कोई व्यक्ति शहर में रहने की ऊंची कीमत चुकाए बिना ही शहरी तंत्र से जुड़े पूरे लाभ उठा सकता है। इसके साथ ही यात्रा के बीच पड़ाव में यह जिन शहरों में रुकेगी वहां भी आर्थिक-व्यापारिक हलचल बढ़ाने का काम करेगी। यूरोप में तेज रफ्तार रेल नेटवर्क प्रांतीय शहरों के लिए बड़ी सौगात लेकर आया है। एक वक्त दूरदराज के इलाकों में पड़ने वाले ये शहर अब बड़े बाजारों के जुड़कर फायदा उठा रहे हैं। इसके अतिरिक्त भारत में तेज रफ्तार रेल के आने से युवाओं के लिए रोजगार और कौशल के अवसर बढ़ेंगे जिससे कुशल भारत अभियान को भी बल मिलेगा। परियोजना पूरी होने के बाद उसके परिचालन और रखरखाव के लिए प्रत्यक्ष रूप से 4,000 लोगों को रोजगार मिलेगा तो लगभग 16,000 लोगों को इससे अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलने की संभावना है।
रोजगार सृजन के अलावा इस परियोजना से बलास्टलेस ट्रैक निर्माण, संचार एवं सिग्नलिंग उपकरणों को लगाने और बिजली वितरण तंत्र से संबंधित हुनर और अनुभव भी मिलेगा। रेलवे तंत्र के रखरखाव के लिए आधुनिक और विश्वस्तरीय तौर-तरीके अपनाए जाएंगे जिससे भारतीय रेलवे द्वारा वर्तमान में अपनाई जा रही पद्धतियों में भी आमूलचूल बदलाव आएगा। ट्रेन के भीतर साफ-सफाई को लेकर भी भारत जापान से बहुत कुछ सीख सकता है। जापान में सिक्स सिग्मा पद्धति के जरिये स्टेशन पर खड़ी ट्रेन के अंदर पूरी सफाई महज सात मिनटों में पूरी हो जाती है। अगर इसे भारत में चल रही रेलगाड़ियों और मेट्रो ट्रेन में भी आजमाया जाए तो स्वच्छता की तस्वीर काफी सुधर सकती है। हाईस्पीड रेल (एचएसआर) सिस्टम आधारित तेज रफ्तार रेल के संभावित पर्यावरणीय लाभ भी हैैं। यह सिस्टम ईंधन के लिहाज से विमानों की तुलना में तीन गुना और कारों के बनिस्बत पांच गुना अधिक किफायती है। सड़कों और हवाई अड्डों पर जाम के चलते समय और ईंधन की बर्बादी के कारण अमेरिका को हर साल 87 अरब डॉलर का नुकसान उठाना पड़ता है। यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क ऑन क्लाइमेट चेंज वार्ताओं के तहत सभी देशों को 2020 के बाद पर्यावरण के मोर्चे पर अपना रुख-रवैया सुधारते हुए कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए परिवहन और दूसरे अन्य क्षेत्रों में कुछ कड़े कदम उठाने होंगे। ऐसे में बुलेट ट्रेन को अपनाने से भारत को पर्यावरण संबंधी संयुक्त राष्ट्र के लक्ष्यों को हासिल करने में मदद मिलेगी।
अब कीमत और लागत पहलुओं की बात कर लेते हैं। माना जा रहा है मुंबई और अहमदाबाद के बीच बुलेट ट्रेन का किराया हवाई टिकट की तुलना में आधा होगा। भारत में बुलेट ट्रेन को फायदेमंद बनाने की राह में एक बड़ा रोड़ा यही बन सकता है कि देश में किफायती विमानन सेवाओं ने मजबूती से अपना आधार जमा लिया है। वैसे तो दोनों शहरों के बीच विमान से घंटे भर से कुछ ज्यादा समय ही लगता है, लेकिन हवाई अड्डे तक पहुंचने में ट्रैफिक जाम से लेकर बोर्डिंग जैसे तमाम तामझाम से जूझना पड़ता है। ऐसे नकारात्मक पहलुओं की तुलना में रेल सफर की सहूलियत को देखते हुए तेज रफ्तार ट्रेन अधिक सहज लगती है। भारतीय बुलेट ट्रेन परियोजना के व्यावहारिक अध्ययन में किराये से इतर राजस्व की बहुत ज्यादा संभावनाओं की बात नहीं की गई है, लेकिन विज्ञापनों, रेस्त्रां और ट्रेन के भीतर और स्टेशन पर वस्तुओं की बिक्री के अलावा स्टेशनों के आसपास जगहों के विकास से काफी कमाई की जा सकती है।
रेल का सफर भारतीयों के जीवन का अभिन्न अंग है। यहां तकरीबन दो-तीन करोड़ लोग रोजाना रेल में सफर करते हैं। भारत बुनियादी ढांचे की जिन समस्याओं से जूझ रहा है उन्हें सुलझाने का यह सही समय है। आज परिवहन के मोर्चे पर जो पहल हो रही है वह भविष्य में अर्थव्यवस्था को खास आकार देगी, हालांकि अभी इसका कोई खास खाका नहीं पेश किया जा सकता। राष्ट्रीय राजमार्गों के दूरदर्शी शिल्पकारों ने भी कल्पना नहीं की होगी कि वे जिन नई सड़कों का जाल बिछा रहे हैं वे अर्थव्यवस्था के लिए कितना बड़ा वरदान साबित होने वाली हैं। हल्की-फुल्की बात करूं तो बुलेट ट्रेन का यही नकारात्मक पहलू होगा कि अब फिल्मकार दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे जैसी फिल्म के वैसे दृश्य नहीं फिल्मा सकेंगे जिसमें राज और सिमरन चलती ट्रेन में एक दूसरे का हाथ पकड़ते हैं।
[ लेखक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के मुख्य आर्थिक सलाहकार हैं ]