[संजय गुप्त]। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का आगामी बजट 2024 के आम चुनाव के पहले का पूर्ण बजट होगा। इस कारण यह आशा की जा रही है कि इस बजट में चुनाव का भी ध्यान रखा जाएगा। वैसे अब नीतिगत घोषणाएं केवल बजट में ही नहीं होतीं। समय-समय पर ऐसी घोषणाएं बजट के बाहर भी की जाती रहती हैं। मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल के प्रारंभ में 2024 तक भारत को पांच लाख करोड़ डालर की अर्थव्यवस्था वाला देश बनाने का संकल्प लिया था, लेकिन कोविड महामारी के कारण यह लक्ष्य आगे खिसक गया है। इसके बाद भी यह लक्ष्य देश के नीति नियंताओं, उदयोगपतियों और आम नागरिकों को यह भरोसा देता है कि जल्द ही विश्‍व की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। भारत की अर्थव्‍यवस्था जिस गति से आगे बढ़ रही है, उसे देखते हुए माना जा रहा है कि 2026-2027 तक इस लक्ष्य को पा लिया जाएगा।

प्रधानमंत्री ने देश के सामने एक नया लक्ष्‍य देश को अगले 25 वर्षों में विश्‍व की तीसरी बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था बनाने का भी रखा है। तब तक भारत की स्वतंत्रता के सौ वर्ष पूरे हो जाएंगे। इस लक्ष्‍य को पाने के लिए जो बुनियादी जरुरतें हैं, उनकी ओर सरकार कदम भी बढ़ा रही है। इस लक्ष्य की प्राप्ति में एक बड़ी भूमिका शिक्षा की भी है। नई शिक्षा नीति की घोषणा एक मील का पत्थर है, लेकिन उसे अमल में लाने के लिए केंद्र और राज्यों, दोनों को मिलकर काम करना होगा। आशा की जाती है कि इस बजट से लेकर आने वाले कई बजटों में शिक्षा के क्षेत्र में आवंटन लगातार बढ़ाया जाएगा। ऐसा करके ही शिक्षा के कमजोर स्‍तर को मजबूत बनाया जा सकता है, लेकिन यह ध्यान रहे कि इसके लिए अच्छे-खासे धन की आवश्यकता होगी।

किसी भी देश के विकास में जैसे शिक्षा की महती भूमिका होती है, वैसे ही आधारभूत ढांचे की भी। अपने देश में कई वर्षों से आधारभूत ढांचे के लिए बजट में लगातार आवंटन हो रहे हैं, पर उसके निर्माण में शिथिलता के साथ गुणवत्‍ता तथा इंजीनियरिंग की जो कमी है, वह दूर होने का नाम नहीं ले रही है। चूंकि ठेकेदारों और संबंधित विभागों के इंजीनियरों में भ्रष्‍टाचार व्‍याप्‍त है, लिहाजा आधारभूत ढांचा सही तरह निर्मित नहीं हो पा रहा है। देश की अनेक परियोजनाएं लंबित चल रही हैं। इस कारण उनका खर्च बढ़ता जा रहा है। यदि राजमार्गों, बंदरगाहों और हवाईअड्डों के निर्माण में आवंटित खर्च बढ़ता जाएगा तो यह वित्‍तीय प्रबंधन के लिए चुनौती बनेगा। यह ध्यान रहे कि सरकार को रक्षा-सुरक्षा और गरीबी उन्‍मूलन की योजनाओं में पर्याप्त धन के आवंटन में संतुलन बैठाने में खासी मशक्कत करनी पड़ती है।

किसी देश की अर्थव्‍यवस्‍था शहरों के विकास से संवरती है, लेकिन हम इसकी अनदेखी नहीं कर सकते कि हमारे नगर निकाय उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पा रहे हैं। इन निकायों की सस्ती राजनीति शहरों के विकास में आड़े आती है। अतिक्रमण और अनियोजित विकास के कारण शहरों का आधारभूत ढांचा लगातार चरमरता जा रहा है। केंद्र सरकार बजट में यह घोषणा तो नहीं कर सकती कि नगर निकाय जबावदेह बनें, लेकिन राज्यों के साथ मिलकर ऐसे उपाय अवश्य कर सकती है, जिससे नगर निकाय शहरों के आधारभूत ढांचे को संवारने के लिए प्रतिबद्ध हों। जब ऐसा होगा तभी शहरी क्षेत्र के लोगों के जीवन स्तर में सुधार होगा।

देश के विकास में उद्योग-व्यापार जगत की भी एक बड़ी भूमिका है। अपने देश में निजी निवेश की जैसी गति दक्षिण के राज्‍यों में है, वैसी उत्‍तर भारत में नहीं है। उत्‍तर भारत के राज्‍य दक्षिण भारत के राज्‍यों से पिछड़ रहे हैं। उत्तर भारत की सरकारों को इस पिछड़ेपन को दूर करने के लिए कमर कसनी होगी। इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि दिल्‍ली-एनसीआर के इर्द-गिर्द खूब निवेश हो रहा है, क्योंकि बात तब बनेगी जब उत्तर के अन्य क्षेत्रों में भी पर्याप्त निवेश हो। चूंकि उत्‍तर भारत के राज्‍य निवेश के मामले में पिछड़ रहे हैं इसलिए उत्तर–दक्षिण में प्रति व्यक्ति आय का अंतर बढ़ रहा है। दक्षिण भारत के राज्यों की यह शिकायत भी बढ़ रही है कि वे उद्योग-व्यापार में प्रगति कर रहे हैं, लेकिन इस अनुपात में उन्हें केंद्रीय आवंटन नहीं मिल रहा है।

देश के सतत विकास के लिए यह भी बहुत आवश्यक है कि न्याय व्यवस्था में सुधार हो। ऐसा न हो पाने के कारण देश का विकास बाधित हो रहा है। इस समय न्यायाधीशों की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट और सरकार के बीच जो टकराव जारी है, वह समाप्त होना चाहिए। इसी के साथ न्यायिक क्षेत्र में सुधार होना चाहिए, ताकि उच्च न्यायालयों के साथ निचली अदालतों में लंबित मुकदमों का बोझ घटे और लोगों को समय पर न्याय मिले। न्याय में विलंब लोगो को निराश और कुंठित करने के साथ उद्योग-व्यापार की गति को थामता है। सभी को सुगम न्याय के लिए आवश्यक आधारभूत ढांचे के निर्माण के साथ निचली अदालतों के स्तर पर पर्याप्त संख्या में न्यायाधीशों की नियुक्ति हेतु बजट में पर्याप्त आवंटन किया ही जाना चाहिए।

एक ऐसा समय जब विश्‍व मंदी के दौर से गुजर रहा है, तब भारत सबसे तेज गति से बढ़ती अर्थव्‍यवस्‍था वाले देश के रूप में आगे बढ़ रहा है। भारत की अर्थव्‍यवस्‍था बढ़ती रहे, इसके लिए अत्‍यधिक कुशल वित्‍तीय प्रबंधन की जरुरत पड़ेगी। सरकार को यह देखना होगा कि वह किसी भी मूल्‍य पर मुद्रासफीति न बढ़ने दे। इसके लिए खर्चों पर नियंत्रण रखना पड़ेगा और देश के नागरिकों की यह शिकायत दूर करनी होगी कि आम लोगों या कंपनियों के टैक्स संबंधी प्रविधान अभी भी जटिल बने हुए हैं। हालांकि सरकार इन प्रविधानों को लगातार सरल बनाने का काम कर रही है, लेकिन अभी बहुत काम किया जाना शेष है।

टैक्‍स से संबंधित विभागों और एजेंसियों की लोगों को शक की निगाह से देखने की मानसिकता खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। ये एजेंसियां लोगों को टैक्स के मामले में उलझाकर रखने की अपनी प्रवृत्ति से भी पीछा नहीं छुड़ा पा रही हैं। इस प्रवृत्ति का परित्याग करने के साथ ही इसकी भी जरूरत है कि लोग ईमानदारी से टैक्स देने की आदत डालें, लेकिन यह तभी संभव होगा, जब टैक्स और जांच एजेंसियां लोगों को अनावश्यक रूप से परेशान करना छोड़ेंगी।

[लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं]