नई दिल्ली, जेएनएन। सरकार को मई 2019 में एक निर्णायक जनादेश मिला। इसके बाद जब वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने अपना पहला बजट पेश किया, तो उसमें एक सतर्क नीति का प्रवाह देखने को मिला। हालांकि, जब उस बजट पर जनता और उद्योगपतियों से प्रतिक्रिया आयी, तो फौरन उद्योगों के कर दरों को घटाया गया और साथ ही कुछ और बदलाव भी शामिल किये गए। जहां तक बजट 2020 का सवाल है, अगर इस बजट का कोई एक मात्र ध्येय होना चाहिए, तो वो है खपत में वृद्धि करना। डिस्पोजेबल आय बढ़ाने के लिए आयकर दर स्लैब में बदलाव स्पष्ट है कि भारत का प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय कम हो गया है। इसके कारण उपभोक्ताओं के हाथों में डिस्पोजेबल आय बढ़ाने की अत्यंत आवश्यकता है।

10 लाख रुपये से अधिक आय वालों के लिए आयकर दर में बदलाव करने की व्यापक संभावनाएं हैं। मैं डायरेक्ट टैक्स टास्क फोर्स कमेटी के प्रस्ताव से सहमत हूं कि मौजूदा 3 स्लैब के बजाय 4 टैक्स स्लैब लागू किए जाने चाहिए। जहां यह निश्चित रूप से मध्यम वर्ग में डिस्पोजेबल आय में वृद्धि करेगा, इससे भारत सरकार के राजकोष पर 30,000 करोड़ रुपये का भार भी बढ़ जायेगा। राजकोषीय विवेक और विकास के बीच, अब विकास को प्राथमिकता देकर रोजगार पैदा करना ही हमारा लक्ष्य होना चाहिए। भले ही यह एक दीर्घकालिक उपाय है, हम इस दायित्व से स्वयं को अलग नहीं कर सकते।

वर्तमान कर दरें

  • 2.5 लाख तक कुछ नहीं
  • 2.5-5.0 लाख 5 फीसद
  • 5-10 लाख 20 फीसद
  • 10 लाख से ऊपर 30 फीसद
  • टैक्स टास्क फोर्स का प्रस्ताव
  • 2.5 लाख तक कुछ नहीं
  • 2.5-10 लाख 10 फीसद
  • 10-20 लाख 20 फीसद
  • 20 लाख-2 करोड़ 30 फीसद
  • 2 करोड़ से अधिक 35 फीसद

श्रम प्रधान उद्योग हो पुनर्जीवित

भारत में आय व आयकर की चर्चा का आधार इस तथ्य से आरंभ होता है कि हमारे देश में 8 फीसद से कम नागरिक आयकर देते हैं। इसलिए, व्यापक पैमाने पर जीवन को प्रभावित करने के लिए, मात्र आयकर दरों में बदलाव पर्याप्त नहीं होगा। रियल एस्टेट, बुनियादी ढांचे और विनिर्माण सहित श्रम गहन क्षेत्रों को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है। दिस बर 2019 में 102 करोड़ की नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन की घोषणा की गयी थी, जो बुनियादी ढांचे के लिए एक विस्तृत रोडमैप की योजना है। परंतु इसके प्रभाव के लिए, वैल्यू चेन में सम्मिलित सहायक उद्योगों का भी ध्यान रखना होगा; उदाहरण के लिए, सीमेंट उद्योग में इनपुट सामग्री पर आयात शुल्क में कमी; स्टील की खपत को बढ़ाने के लिए ऑटो सेक्टर में उत्पादन क्षमता को बढ़ने की आवश्यकता है। रियल एस्टेट क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देने के लिए, सरकार को अनुबंध प्रवर्तन और समयबद्ध स्वीकृतियों को बढ़ाने के उपायों की घोषणा करने की आवश्यकता होगी।

इसी तरह,अनुसंधान और विकास क्षेत्र में आर्थिक सहयोग, असंतुलित मूल्य निर्धारण पर रोक, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए अनुकूल नीतियों की भी घोषणा करनी होगी। अगर रोजगार ही सतत विकास का उपाय है, तो रोजगार देने वाले उद्योगों की रक्षा और उनके व्यापार की सहूलियत का ध्यान रखना भी हमारी नीतियों का अभिन्न अंग है । ग्रामीण मांग में वृद्धि: इस बजट में निश्चित रूप से ग्रामीण क्षेत्र में निजी निवेश को प्रोत्साहन देने पर जोर दिया जाना चाहिए। ग्रामीण अर्थव्यवस्था के संबंध में आगामी बजट में मनरेगा द्वारा जल संचयन निकाय के निर्माण तथा किसानों के लिए परिवहन सुविधाओं और कोल्ड स्टोरेज चेन को सब्सिडी देने के लिए कुछ बजट आवंटित करना होगा। पिछले बजट में जीरो बजट फार्मिंग की बात की गई थी। इसे सिरे चढ़ाने और खेती को लाभदायक व्यवसाय बनाना ही नीति निर्धारण का केंद्र बिंदु होना चाहिए। नए दशक में प्रवेश करते हुए हमें यह भी स्वीकार करना होगा कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था का रूप बदल गया है।

यह कृषि प्रधान से उत्पादन को आधार बना रही है। हमें कृषि क्षेत्र में जनशक्ति को बनाए रखने के लिए खाद्य प्रसंस्करण को एक आकर्षक विकल्प का रूप देने की आवश्यकता है। किसानों को अपनी उपज का प्रसंस्करण करने के लिए व सूक्ष्म और लघु उद्योगों की स्थापना के लिए कम ब्याज दर पर कर्ज मिलने का प्रयोजन हो, खेत में अप्रयुक्त सामग्री का उपयुक्त उपयोग करने को भी आर्थिक प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है। राजकोषीय अनुशासन में सीमित होकर हम विकास की संभावनाओं को अनदेखा नहीं कर सकते। इस सरकार ने राजकोषीय विवेक को निभाने में अपनी क्षमता का बखूबी प्रदर्शन किया है, अब इस बार वृद्धि को चुनने और खपत को पुनर्जीवित करने में कोई कोताही नहीं करनी चाहिए। देशव्यापी जनादेश इस समय सरकार की ओर बड़ी उम्मीद से देख रहा है, प्रधानमंत्री मोदी अपने समर्थकों को निराश नहीं कर सकते।