नई दिल्ली, [डॉ. भरत झुनझुनवाला]। बजट की फिलॉसफी सही दिशा में है। बजट के विभिन्न प्रावधान देश को धीमी चाल से ही सही, ठीक दिशा की ओर ले जाने वाले हैं। वित्त मंत्री ने आगामी वित्त वर्ष में तीन स्रोतों से आय में वृद्धि बताई है। पहला स्रोत व्यक्तिगत आयकर का है। नोटबंदी एवं जीएसटी के लागू होने के बाद आयकरदाताओं की संख्या में वृद्धि हुई है। बढ़ी हुई आय का दूसरा स्रोत सरकारी कंपनियों के शेयरों की बिक्री है। इस मद में आगामी वर्ष में 80000 करोड़ रुपये अर्जित होने का अनुमान है। तीसरा स्रोत आयात करों में वृद्धि है। चुनिंदा माल जैसे मोबाइल फोन पर आयात कर बढ़ाए गए हैं जिससे घरेलू उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा।
सभी आयातों पर समाज कल्याण का तीन प्रतिशत सेस लगाया गया है। इन तीनों स्रोतों से मिली बढ़ी हुई रकम का उपयोग बुनियादी संरचना में निवेश पर किया जाएगा। हाईवे, ग्रामीण सड़क, रेल तथा एयरपोर्टो में निवेश में लगभग 20 प्रतिशत की वृद्धि की गई है जो कि उत्साहवर्धक है।
वित्त मंत्री ने जताई चिंता
वित्त मंत्री ने अपने भाषण में चिंता जताई है कि देश से भारी मात्र में पूंजी बाहर जा रही है। उन्होंने कहा है कि पूंजी के इस पलायन पर सरकार विचार करेगी, परंतु उन्होंने अपना मंतव्य गुप्त रखा है। वैश्वीकरण का उद्देश्य विदेशी पूंजी को आकर्षित करना था। ऐसा लगता है कि यह पलट गया है। अब वैश्वीकरण से देश की पूंजी बाहर जा रही है। इसी क्रम में वित्त मंत्री ने आयात कर बढ़ाकर एक तरह से यह स्वीकार किया है कि अपने बाजार के चारों तरफ दीवार बनाकर संरक्षण का रास्ता अपनाना उत्तम है। इन दोनों स्वीकारोक्तियों से वैश्वीकरण के प्रति वित्त मंत्री का मोहभंग दिखता है जो कि प्रसन्नता का विषय है, परंतु वित्त मंत्री फिर भी विदेशी निवेश का गुणगान कर रहे हैं। विदेशी निवेशकों एवं वैश्विक रेटिंग एजेंसियों की मांग है कि सरकार अपना वित्तीय घाटा नियंत्रण में रखे। मान्यता है कि वित्तीय घाटा नियंत्रण में रहेगा तो वैश्विक निवेशकों का भरोसा बनेगा और भारी मात्र में विदेशी निवेश आएगा। वित्त मंत्री ने वित्तीय घाटा कम करते रहने की बात कही है। वर्तमान वर्ष में वित्तीय घाटा हमारी आय का 3.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है। आगामी वर्ष में वित्त मंत्री ने इसे 3.3 प्रतिशत पर सीमित रखने की बात कही है। उन्हें आशा है कि विदेशी निवेश भारी मात्र में आएगा।
यहां वित्त मंत्री की नीति में एक विरोधाभास है। एक तरफ अपनी पूंजी के पलायन पर चिंता व्यक्त करने तथा आयात करों को बढ़ाकर वित्त मंत्री वैश्वीकरण से मोहभंग का संदेश दे रहे हैं तो दूसरी तरफ वित्तीय घाटे पर नियंत्रण करके उसी वैश्वीकरण के पीछे भाग रहे हैं। वित्त मंत्री के सामने विकल्प था कि वैश्वीकरण से पीछे हटते, सरकारी निवेश में भारी वृद्धि करते, वित्तीय घाटे को बढ़ने देते और देश के विकास की दर में भारी वृद्धि हासिल करते।
भारत की विकास दर कम से कम 12 से 15 फीसद हो
भारत सरीखे देश की सात से आठ प्रतिशत की विकास दर से बात नहीं बनती है। भारत की जैसी जरूरतें है और खासकर निर्धन तबकों को गरीबी रेखा से ऊपर लाने की उसे देखते हुए यह आवश्यक है कि देश 12 से 15 प्रतिशत की विकास दर हासिल करने में सक्षम हो। यह सरकार ईमानदार है। इसे ऋण लेकर यानी वित्तीय घाटा बढ़ाकर निवेश करने में ङिाझक नहीं होनी चाहिए। अपनी विकास दर में तेजी लाने के लिए कई क्षेत्रों में भारी निवेश की जरूरत है। जैसे वित्त मंत्री ने आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के विकास के लिए 3000 करोड़ रुपये की राशि का प्रावधान किया है। सच पूछिए तो इस मद में जरूरत 30000 करोड़ रुपये की थी। अंतरिक्ष के अनुसंधान, मानव जीनोम पर रिसर्च, बुलेट ट्रेन, पांचवीं पीढ़ी का इंटरनेट और सुपर कंप्यूटर आदि प्रत्येक में 50,000 करोड़ रुपये निवेश करने की जरूरत है।
दिखी वित्त मंत्री की समझदारी
ध्यान दें कि चीन 3,000 किलोमीटर बुलेट ट्रेन चला रहा है और अभी हम पहली ही लाइन बिछाने को छटपटा रहे हैं। बुलेट ट्रेन ही चलाना है तो पूरे देश में इसका जाल बिछाएं और 300,000 करोड़ रुपये निवेश करें। तात्पर्य यह कि समय बड़े निवेश का है। मौजूदा माहौल में छोटे कदमों से हम वैश्विक अर्थव्यवस्था का सामना नहीं कर पाएंगे। वित्त मंत्री के सामने विकल्प था कि वैश्वीकरण का मोह छोड़ देते और भारी मात्र में ऋण लेकर ऊपर बताए क्षेत्रों में निवेश करते और वित्तीय घाटा बढ़ने देते। वित्तीय घाटे के मामले में विदेशी विशेषज्ञों के विचारों को एक सीमा तक ही महत्व दिया जाना चाहिए।
वित्त मंत्री के सामने दूसरी नीतियों पर भी तेज गति से चलने की संभावना है। जैसे सरकारी कंपनियों के शेयर बेचकर यानी विनिवेश से आगामी वर्ष में 80,000 करोड़ रकम अर्जित करने का लक्ष्य है। 24 सरकारी इकाइयों का निजीकरण करने की योजना है। इस काम को दस गुणा किया जा सकता था। सरकारी बैंकों का निजीकरण करके ही 800,000 करोड़ रुपये से ज्यादा अर्जित किए जा सकते थे और अंतरिक्ष, मानव जीनोम, 5जी, बुलेट ट्रेन और सुपर कंप्यूटर में भारी निवेश किया जा सकता था। इसी क्रम में मोबाइल फोन पर आयात कर बढ़ाकर घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के मंत्र को चौतरफा लागू किया जा सकता था।
खिलौनों, फुटबॉल और सोलर पैनल पर भी आयात कर बढ़ाकर घरेलू उद्योग को बढ़ावा दिया जा सकता था। देश को 12 से 15 प्रतिशत की विकास दर पर लाने के लिए जरूरी इन कदमों को उठाने से वित्त मंत्री चूक गए हैं। यद्यपि बुनियादी संरचना में जो निवेश उन्होंने बढ़ाया है वह सही दिशा में है। यह अच्छा है कि वित्त मंत्री ने किसानों की दशा सुधारने पर विशेष ध्यान दिया है और गरीबों के इलाज की भी चिंता की है। इस सिलसिले में जो कदम उठाए गए हैं उनका सकारात्मक असर दिखने की उम्मीद है।

(लेखक वरिष्ठ अर्थशास्त्री एवं आइआइएम बेंगलुरु के पूर्व प्रोफेसर हैं)