अभिषेक कुमार सिंह। Bio Bubble एक बार फिर हमारे देश में कोरोना वायरस से पैदा महामारी कोविड-19 को लेकर चिंताजनक हालात बन गए हैं। कई राज्यों में नाइट कर्फ्यू और एकाध शहरों (जैसे कि रायपुर) में कुछ अर्से के लिए संपूर्ण लॉकडाउन का एलान हो चुका है। हालांकि स्कूल-कॉलेजों में कुछ अपवादों को छोड़कर कहीं भी पूरी तरह कक्षाओं का संचालन शुरू नहीं किया गया है और चुनावी रैलियों एवं चुनिंदा जरूरी सेवाओं के अलावा तकरीबन सभी जगहों पर शासन-प्रशासन की ओर से आंशिक पाबंदियां लागू हैं, लेकिन इस बीच सबसे बड़ा सवाल खेलों के आयोजन को लेकर पैदा हो गया है।

ऐसे वक्त में जबकि भारत में रोजाना कोरोना वायरस से संक्रमित होने वाले लोगों की संख्या एक लाख के पार पहुंच गई है, तब पूछा जा रहा है कि क्या देश में आइपीएल और टी-20 विश्व कप जैसे आयोजन हो सकते हैं? वैसे तो पिछले साल टाले जाने के बाद जापान में टोक्यो ओलंपिक की तैयारियां भी चल ही रही हैं, लेकिन भारत में कोरोना के दोबारा विस्फोट के बाद खेल आयोजनों को लेकर दुविधा की स्थिति बनी हुई है। हालांकि इन्हीं आशंकाओं के बीच नौ अप्रैल से देश में इंडियन प्रीमियर लीग (आइपीएल)-2021 की शुरुआत खाली स्टेडियमों में हो गई है। अब तक हुए मैचों के रोमांच को देखकर लगता ही नहीं है कि कोरोना ने आइपीएल के रास्ते में ज्यादा अड़चनें डाली हैं। यहां तक रोहित शर्मा (मुंबई इंडियंस के कप्तान) जैसे क्रिकेटरों ने खुद को भाग्यशाली बताते हुए कहा है कि वह ऐसे समय में क्रिकेट खेल पा रहे हैं, जब बायो सिक्योर बबल (जैव-सुरक्षित माहौल) से बाहर कई लोग अपनी मनपसंद गतिविधियों में शामिल नहीं हो पा रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि इस टूर्नामेंट की शुरुआत से पहले ही चार खिलाड़ी और एक टीम के कंसल्टेंट कोरोना वायरस से संक्रमित पाए जा चुके थे। मुंबई टीम के कंसल्टेंट किरण मोरे के कोरोना संक्रमण का मामला काफी गंभीर माना गया है, क्योंकि वह बायो-बबल में रहते हुए संक्रमित हुए हैं। बहरहाल टूर्नामेंट के दौरान आठ टीमें देश भर के अलग-अलग स्टेडियमों में 60 मैच खेलेंगी। ये मैच दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, अहमदाबाद और कोलकाता में खेले जाएंगे। गौरतलब है कि देश के प्राय: सभी शहरों में कोरोना संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं।

कोरोना वायरस के अत्यधिक संक्रामक स्वरूप को देखते हुए पिछले साल से ही कई तरह के कामकाज में दायरे निश्चित किए जा चुके हैं। इनके तहत ऐसी व्यवस्थाओं को अपनाने की शुरुआत हो चुकी है, जिससे संक्रमण से बचते हुए कामकाज संपन्न हो सके। ऐसी व्यवस्थाओं को बायो-बबल और ट्रैवल या एयर बबल जैसे नाम दिए गए हैं। ट्रैवल बबल का संबंध रेल-बस यात्रओं से तो एयर बबल का संबंध हवाई उड़ानों से है। कोरोना काल में यूं तो ज्यादातर अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर रोक लगी हुई है, लेकिन जिन गिने-चुने रूटों पर उड़ानें संचालित की गई हैं, उनमें व्यवस्था है कि यात्रियों के बीच पर्याप्त दूरी रहे। इसी तरह खेल आयोजनों में बायो सिक्योर बबल के प्रबंध को आजमाया जा रहा है, ताकि खिलाड़ी और संबंधित स्टाफ खेल आयोजन की अवधि के दौरान किसी बाहरी व्यक्ति के संपर्क में न आ सकें। कोविड-19 की बंदिशों के कारण खिलाड़ी बायो-बबल से बाहर किसी से मिल नहीं सकते, जिससे उनके लिए खुद को तरोताजा और प्रेरित रखना मुश्किल हो जाता है। यही कारण है कि कई खिलाड़ी इसे मुद्दे को उठा चुके हैं।

हाल में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के प्रमुख और पूर्व क्रिकेटर सौरव गांगुली ने बायो-बबल को बेहद चुनौतीपूर्ण करार दिया और कहा कि इस मामले में भारतीय खिलाड़ियों ने काफी सहनशीलता का परिचय दिया है। इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के क्रिकेटरों की तुलना में भारतीय खिलाड़ियों को ज्यादा सहनशील बताते हुए गांगुली ने कहा था कि उन्होंने इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलियाई और वेस्टइंडीज के बहुत सारे क्रिकेटरों के साथ खेला है और पाया है कि भारतीय क्रिकेटरों के मुकाबले वे मानसिक स्वास्थ्य के मामले में जल्दी हार मान जाते हैं। गांगुली की बात की पुष्टि आइपीएल के इस सीजन में विराट कोहली की टीम रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु से खेलने वाले ऑस्ट्रेलियाई ऑलराउंडर ग्लेन मैक्सवेल के एक बयान से हो जाती है। मैक्सवेल ने कहा था कि वह बायो-बबल को लेकर परेशान हैं। मैक्सवेल की नजरों में यह मानसिक रूप से कमजोर बनाने वाली बहुत कठिन चुनौती है, जिसका सामना पिछले साल से खिलाड़ियों को करना पड़ रहा है।

बबल इंटिग्रिटी मैनेजरों के भरोसे आइपीएल : ज्यादातर खिलाड़ियों के मत में बायो-बबल एक मुश्किल व्यवस्था है। वे अक्सर यह शिकायत करते पाए गए हैं कि किसी टूर्नामेंट के दौरान सिर्फ होटल में कैद रहना और खेल के वक्त होटल के कमरे से मैदान पर जाना, खेल के दबाव को संभालना और वापस कमरे में आ जाना और फिर से मैदान पर जाना, इस बिल्कुल अलग तरह की जिंदगी ने उन पर भारी दबाव बना दिया है। अगर क्रिकेट की ही बात करें तो कोविड-19 की मार से बचने के लिए इस साल आइपीएल आयोजन के लिए भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने हरेक टीम के वास्ते ‘बबल इंटिग्रिटी मैनेजर’ तक नियुक्त कर रखे हैं। इन मैनेजरों को बायो-बबल की व्यवस्था कायम रखने वाले विशेषज्ञ के तौर पर देखा जा रहा है। हालांकि इस तरह खाली स्टेडियमों में हो रहे आइपीएल मैचों में हिस्सा ले रही प्रत्येक टीम को कोरोना-मुक्त सुरक्षित माहौल देने के प्रयास हो रहे हैं। कोशिश की जा रही है कि इस पूरे टूर्नामेंट के दौरान क्रिकेटर, कोच, अंपायर और होटल स्टाफ से जुड़ा हर व्यक्ति बाहरी लोगों के संपर्क में न आएं। यहां तक कि मुंबई में स्टेडियम के स्टाफ का हर दूसरे दिन कोविड-19 टेस्ट किया जा रहा है। फिर भी ऐसा मानने वालों की कमी नहीं है कि सारे प्रबंधों के बावजूद बायो-बबल को बनाने रख पाना बेहद कठिन होगा।

बायो-बबल की मुश्किलें : इस टूर्नामेंट की सबसे बड़ी कसौटी यह है कि अगर किसी भी वजह से बायो-बबल टूटता है तो न सिर्फ इस टूर्नामेंट को नुकसान होगा, बल्कि पूरे विश्व में आयोजित होने वाले खेल टूर्नामेंट खतरे में पड़ सकते हैं। चुनौती बड़ी क्यों है, इसे समझने के लिए इससे जुड़े कुछ जरूरी तथ्यों पर नजर डालनी होगी। जैसे आइपीएल की आठ टीमों के कुल मिलाकर दो सौ खिलाड़ी हैं जिन्हें खुद बायो-बबल के नियमों का पालन करना है, बल्कि वे सावधानियां भी बरतनी हैं जिनसे उनकी टीमों से जुड़े सपोìटग स्टाफ, टीम प्रबंधन के लोग, कमेंटेटर, प्रसारण करने वाली टीमों के सदस्य, मैदान पर सहायता करने वाले स्टाफ, होटल, कैटरिंग और परिवहन से जुड़े स्टाफ का कोई भी सदस्य कोविड-19 की चपेट में न आए।

खिलाड़ियों के अलावा सहयोगी कार्यो से जुड़ी टीमों में कितने लोग हो सकते हैं, इस बारे में आइपीएल का प्रसारण करने वाले चैनल स्टार स्पोर्ट्स की टीम से अंदाजा लग सकता है। इसमें कुल मिलाकर 700 लोग हैं, जिनमें 100 कमेंटेटर ही हैं। इन सभी को अलग-अलग आठ टीमों के लिए बनाए गए आठ बायो-बबल में बांटा गया है। इनमें से अगर कोई एक बायो-बबल भी टूटता है तो खतरा शेष सात टीमों के सातों बायो-बबल को ही नहीं, बल्कि पूरे टूर्नामेंट को होगा। इसमें कोई संदेह नहीं है कि खेल प्रतियोगिताएं जहां एक ओर प्रतिस्पर्धा की भावना पैदा करती हैं और जोश एवं उमंग का संचार करती हैं। वहीं दूसरे ओर दुनिया इन आयोजनों से आशा और साहस की भावना पैदा होने की उम्मीद भी लगाती है। आइपीएल और ओलंपिक जैसे आयोजन तो दुनिया के कई देशों के लोगों में परस्पर जुड़ाव भी पैदा करते हैं, लेकिन जब बात एक भयानक संक्रमण की हो तो पहली चुनौती उससे लोहा लेने की बन जाती है। ऐसे में अगर बायो-बबल जैसे प्रबंधों से कोई बात बनती है तो यह एक सकारात्मक बात होगी। अन्यथा अच्छा यही होगा कि ऐसे बड़े खेल आयोजन को कोरोना जैसी बड़ी समस्या के हल हो जाने तक स्थगित कर दिया जाए।

क्या होगा टोक्यो ओलंपिक का?: अब से करीब नौ महीने पहले पिछले साल जब वेस्टइंडीज और इंग्लैंड के बीच एक टेस्ट क्रिकेट श्रृंखला का एक मैच बायो-बबल व्यवस्था के तहत संपन्न कराया गया तो यह उम्मीद जगी थी कि वर्ष 2020 के ग्रीष्मकालीन टोक्यो ओलंपिक खेलों का आयोजन भी हो सकेगा। ये ओलंपिक खेल 24 जुलाई से नौ अगस्त, 2020 के मध्य आयोजित होने थे, लेकिन कोरोना वायरस के बढ़ते कहर के मद्देनजर जापान ने इन्हें एक साल के लिए टाल दिया और 23 जुलाई से आठ अगस्त, 2021 की नई तिथियों का एलान किया।

इस वर्ष के आरंभ में माना जा रहा था कि कोरोना वैक्सीन की बदौलत टीकाकरण अभियान गति पकड़ लेंगे और टोक्यो ओलंपिक का आयोजन नई तारीखों में कराया जा सकेगा। खास तौर से यह देखते हुए कि जापान में दूसरे देशों के मुकाबले कोरोना महामारी के इतने अधिक मामले सामने नहीं आए थे, लेकिन हाल में कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ने पर जापान ने अनिवासी विदेशियों (नॉन-रेजीडेंट फॉरेनर्स) के लिए जिस तरह अपनी सीमाएं बंद की है, उससे एक बार फिर टोक्यो ओलंपिक का आयोजन खटाई में पड़ता लग रहा है। दूसरे शहरों समेत टोक्यो में आपातकाल की घोषणा के साथ जापान सरकार ने निजी तौर पर यह निष्कर्ष निकाला है कि टोक्यो ओलंपिक को अब रद ही करना होगा और पूरा ध्यान अब से 11 साल बाद यानी वर्ष 2032 को ओलंपिक खेलों के लिए सुरक्षित (सिक्योर) करने पर लगाना होगा। हालांकि अभी भी अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आइओसी) को उम्मीद है कि जून-जुलाई तक हालात संभल जाएंगे।

आइओसी के अध्यक्ष थॉमस बाक ने हाल में कहा है कि टोक्यो ओलंपिक अपने तय समय और निर्धारित कार्यक्रम के मुताबिक ही होंगे, लेकिन ज्यादातर लोग उनकी बात से सहमत नहीं हैं। यहां तक कि खुद जापान के 80 फीसद नागरिकों ने एक सर्वेक्षण में ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों को स्थगित या रद करने के पक्ष में अपनी राय व्यक्त की है। ऐसे लोगों का मानना है कि विदेशी खिलाड़ियों की आमद से जापान में कोरोना संक्रमण का विस्फोट हो सकता है और तब शायद हालात को संभालना मुश्किल हो जाए।

[संस्था एफआइएस ग्लोबल से संबद्ध]