राजीव रंजन चतुर्वेदी। नेपाल की राजधानी काठमांडू में संपन्न बिम्सटेक की चौथी शिखर वार्ता क्षेत्रीय सहयोग और विकास के लिहाज से अत्यंत महत्वपूर्ण रही। एक क्षेत्रीय समूह के रूप में बिम्सटेक दक्षिण एशिया के पांच (बांग्लादेश, भारत, भूटान, नेपाल और श्रीलंका) और दक्षिण-पूर्व एशिया के दो देशों (म्यांमार और थाईलैंड) का सहयोग संगठन है। इस क्षेत्र का आर्थिक और सामरिक महत्व तेजी से बढ़ रहा है। 2016 में गोवा में आठवें ब्रिक्स शिखर सम्मलेन के साथ हुए बिम्सटेक आउटरीच में सदस्य राष्ट्रों के शीर्ष नेतृत्व के बीच बनी सहमति ने बिम्सटेक में जान फूंकने का काम किया। विगत दो वर्षों में बिम्सटेक की कई उपलब्धियों को देखा जा सकता है। मसलन बिम्सटेक राष्ट्रीय सुरक्षा प्रमुखों की बैठक, आपदा प्रबंधन अभ्यास, टूर ऑपरेटरों की बैठक, पारंपरिक दवा के क्षेत्र में टास्क फोर्स का गठन, बिम्सटेक टेली-मेडिसिन नेटवर्क की स्थापना, व्यापार और औद्योगिक समूहों की बैठकें। एशियाई विकास बैंक (एडीबी) ने बिम्सटेक देशों के बीच संपर्क बढ़ाने के लिए मास्टर प्लान लगभग तैयार कर लिया है। सदस्य देशों के बीच तटीय शिपिंग समझौते और मोटर वाहन समझौते पर सकारात्मक बातचीत की जा रही है। बिम्सटेक ग्रिड इंटरकनेक्शन की स्थापना पर एमओयू के लिए भी बातचीत की प्रक्रिया पूरी हो गई है। सीमा शुल्क मामलों में आपसी सहयोग पर सदस्य देशों में समझौते पर हस्ताक्षर किए गए हैं। गैर-पारंपरिक सुरक्षा क्षेत्रों में भी संबंधित एजेंसियों के बीच सहयोग में काफी प्रगति हुई है। कुल मिलाकर सुरक्षा, आतंकवाद विरोधी सहयोग, परिवहन और संपर्क, पर्यटन, पर्यावरण और आपदा प्रबंधन, ऊर्जा एवं लोगों के आपसी संपर्क सहित सहयोग के विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है।

बिम्सटेक दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के बीच सेतु के रूप में कार्य करता है। इस संगठन के विशेषज्ञ दल ने शिखर सम्मलेन के मेजबान देश नेपाल के प्रधानमंत्री को महत्वपूर्ण नीतिगत मुद्दों पर सलाह दी है। संपर्क, व्यापार एवं निवेश और सांस्कृतिक संबंधों के विभिन्न आयामों के विस्तार के लिए सुझाए गए कदमों के कार्यान्वयन से समूह में एक प्रभावी एशियाई संस्थागत सहयोग विकसित करने की विशाल क्षमता है।

दरअसल इंडो-पैसिफिक यानी हिंदू-प्रशांत क्षेत्र की धारणा के पुनर्जन्म के साथ ही बंगाल की खाड़ी का आर्थिक और सामरिक महत्व और भी तेजी से बढ़ रहा है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं कि बंगाल की खाड़ी और उसके तटवर्ती राष्ट्र हिंदू- प्रशांत क्षेत्र में विकास के नैसर्गिक केंद्रबिंदु के रूप में उभर रहे हैं। बंगाल की खाड़ी एक समय वैश्विक इतिहास के केंद्र में थी, जो बदलते राजनीतिक परिवेश में अप्रासंगिक हो गई। इस क्षेत्र की समृद्ध आर्थिक, सामरिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक विरासत को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से जून, 1997 को बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिए बिम्सटेक सहयोग की पहल हुई। यद्यपि बिम्सटेक प्रक्रिया अपने अस्तित्व के तीसरे दशक में प्रवेश कर गई है और सदस्य देशों के बीच सहयोग को आगे बढ़ाने में पिछले दो दशक में अभी तक उल्लेखनीय प्रगति नहीं हुई है, लेकिन दो वर्षों में सदस्य देशों के बीच नई ऊर्जा का संचार देखने को मिल रहा है।

भारत के पड़ोस में कुछ शक्तियों की अनौपचारिक और अक्सर टकराव की स्थिति के कारण कई देशों की ओर से बिम्सटेक को प्राथमिकता दी जा रही है। इस संगठन की दशा और दिशा तय करने में भारतीय नेतृत्व न केवल अहम, बल्कि अनिवार्य है। भारत सरकार ने बिम्सटेक सदस्यों के साथ बहुआयामी सहयोग के प्रति अपना दृष्टिकोण स्पष्ट किया है और धीरे-धीरे प्रगति भी हो रही है, किंतु भारत से अपेक्षित है कि वह बिम्सटेक क्षेत्रीय सहयोग की दिशा में और ध्यान दे। उसे इस संगठन को दक्षेस के विकल्प के रूप में खड़ा करने की भी कोशिश करनी चाहिए। बिम्सटेक के तहत तीव्र विकास को सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न नीतिगत सुधारों और परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए और अधिक प्रतिबद्धता की जो अपेक्षा है उस पर भारत को खरा उतरना चाहिए। बेहतर हो कि भारत बिम्सटेक सचिवालय को मजबूती प्रदान करने के लिए अपने स्तर पर ठोस कदम उठाए ताकि सदस्य देशों को सहमति वाले मुद्दों के क्रियान्वयन में संस्थागत सहयोग मिले। बंगाल की खाड़ी को सुरक्षित, मजबूत और समृद्ध बनाने के लिए शीर्ष नेताओं के बीच संवाद की आवृति बढ़ने और वादों के निस्तारण से बिम्सटेक निश्चित रूप से हिंदू-प्रशांत क्षेत्र में विकास की धुरी बन सकता है। भारतीय विदेश मंत्रालय के वक्तव्य में ठीक ही कहा गया कि बिम्सटेक बंगाल की खाड़ी में हिमालय की अनूठी पारिस्थिति को जोड़ता है। साझा विरासत, साझा मूल्यों और जीवन के साझा तरीकों के साथ बिम्सटेक हिंदू-प्रशांत क्षेत्र में आपसी सहयोग को सुदृढ़ बनाने के लिए एक स्वाभाविक मंच है। बिम्सटेक सदस्यों के बीच सहयोग में प्रगति, भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के विकास और दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों के साथ संबंधों को गति भी प्रदान करेगा।

(लेखक सिंगापुर स्थित नानयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी में विजिटिंग फेलो हैं)