बिहार, आलोक मिश्र। Bihar Politics: कोरोना के आंकड़े भले ही बढ़ रहे हों, लेकिन लॉकडाउन-4 लोगों को सुकून दे रहा है। अब कोरोना के बढ़ते-घटते आंकड़ों पर उतना ध्यान नहीं है जितना बाजारों की रौनक, रेलगाड़ियों की बुकिंग और हवाई जहाज के चलने पर है। बिहार में इसके अलावा सियासत का बाजार भी गरमाने लगा है। दो महीने के इंटरवल के बाद राजनीतिक दल फिर सक्रिय हैं। घर की खींचतान से लेकर विपक्ष की पहचान तक सबकुछ वैसा ही है जैसा पहले था। बस, कथानक थोड़ा बदल गया है। अब सफलता-विफलता के दावों में कोरोना की भी घुसपैठ है।

बिहार की राजनीति में आई गरमाहट : बिहार में यह चुनावी साल है। लॉकडाउन का असर बिहार की सियासत पर भी खासा पड़ा है। आपदा के समय केवल सरकार ही सक्रिय रही। जो भी रह-रह कर आवाजें उठीं, वो सत्ताधारी दलों की ही उठीं। यदा-कदा विपक्ष ने व्यवस्था को लेकर कोई सवाल उठाए भी तो वे नक्कारखाने की तूती ही साबित हुए। अब जब हालात कुछ-कुछ सामान्य होने लगे हैं तो ठप पड़ी राजनीति भी सक्रिय होने लगी है।

पिछले चार-पांच दिनों से सत्ता हो या विपक्ष, सभी चुनावी कवायद में जुट गए हैं। निचले स्तर तक के कार्यकर्ताओं को सक्रिय किया जाने लगा है। सत्तारूढ़ दल इस कोरोना काल में किए गए कामों को जनता के बीच ले जाने में जुट गया है तो विपक्ष खामियां उजागर करने और सरकारी व्यवस्था से पनपी नाराजगी को एकजुट करने में लग गया है। उसके लिए यह मौका बहुत अहम है, क्योंकि बीच के कुछ दिन छोड़ दिए जाएं तो पंद्रह साल से नीतीश ही सत्ता पर काबिज हैं।

राजनीति का सन्नाटा सबसे पहले तोड़ा राजद ने। तेजस्वी ने निचले स्तर तक के कार्यकर्ताओं से संपर्क साध चुनावी तैयारियों में जुटने का एलान कर दिया। उनका यह रवैया विरोधियों से ज्यादा महागठबंधन के उन दलों को अखरा जो इंटरवल से पहले राजद से खफा दिख रहे थे। बार-बार समन्वय समिति बनाने और टिकटों के बंटवारे पर जोर दे रहे थे। दूसरे ही दिन महागठबंधन से जुड़े हम (हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा) के जीतन राम मांझी, रालोसपा (राष्ट्रीय लोक समता पार्टी) के उपेंद्र कुशवाहा, वीआइपी (विकासशील इंसान पार्टी) के मुकेश सहनी बैठे और पुरानी स्क्रिप्ट दोहराने लगे। हालांकि बाहर यही कहा गया कि हम लोग एकता या टूट की नहीं, अपने दल की ही बात कर रहे थे।

नड्डा ने चढ़ाया बिहार का सियासी पारा : विपक्षी गतिविधियों के बीच भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी कोर कमेटी के साथ बैठक कर ली और सभी सीटों पर बूथ स्तर तक तैयारी का आदेश दे डाला। यह मंत्र भी दिया कि राष्ट्रवाद व कोरोना काल में मोदी सरकार के कदम व राहत की चर्चा तेज करें। हालांकि सभी सीटों पर तैयारी के इस निर्देश को भी सियासी गलियारे में कई पहलुओं से तौला जा रहा है। सत्तासीन नीतीश अपने जदयू के कार्यकर्ताओं को क्वारंटाइन सेंटरों पर निगरानी को लेकर समय-समय पर चर्चा करते ही रहे हैं।

लेकिन इन सबके बीच शुक्रवार को सोनिया गांधी की इंट्री खास रही। उन्होंने महागठबंधन को एकजुट कर लड़ाई को धार दे दी। वैसे तो उनका यह संवाद देश भर के विपक्षी दलों के साथ हुआ, लेकिन बिहार के मसले में यह अलग था। कोरोना को लेकर सरकार के इंतजाम पर अक्सर हमलावर कांग्रेस के लिए बिहार का चुनाव कसौटी है। जिससे परखा जाएगा कि उसका विरोध जनता को कितना भाया? सोनिया के संवाद के केंद्र में प्रवासी कामगार व श्रम कानून में संशोधन रहा। कांग्रेस जानती है यह वर्ग बहुत बड़ा है और ताजा-ताजा आहत है। बेरोजगारी पहले ही मुद्दा थी जो कोरोना ने और बढ़ा दी। बिहार में खास बात यह रही कि इसमें राजद सहित महागठबंधन के सारे दल एकजुट हुए। सबने बीच का समय गंवाया है इसलिए उन्हें भी मालूम है कि बिना एकजुटता भारी पड़ जाएगा चुनाव। इसलिए अब सबका एजेंडा काफी हद तक साफ हो गया है।

नीतीश का सारा फोकस आम लोगों की राहत पर : नीतीश सरकार पिछले पंद्रह साल के अपने कामकाज के अलावा लाखों की संख्या में प्रवासियों को बुलाने, 30 लाख से ऊपर को एक-एक हजार देने, सबको अनाज और कोरोना से लड़ने की कुशल रणनीति को हथियार बनाएगी तो सहयोगी भाजपा राष्ट्रवाद और 20 लाख करोड़ के पैकेज के सहारे दम भरेगी। जबकि विपक्ष बेरोजगारी, श्रम कानून में संशोधन, प्रवासी मजदूरों द्वारा उठाई गई तकलीफों आदि को धार देने में जुट गया है। इस तरह लॉकडाउन-4 में जैसे जीवन बाहर आया है, वैसे ही बंद पड़ी राजनीति भी अब बाहर आ गई है।

[स्थानीय संपादक, बिहार]