पटना, आलोक मिश्र। कोरोना के बावजूद चुनाव आयोग की कोशिश से बिहार में अब चुनावी बयार बहने लगी है। गठबंधन में बिखराव शुरू हो चला है। दलों की शाखाओं से कमजोर पत्ते टूटने लगे हैं और घोषणाएं अपनी पूरी रौ में हैं। इस समय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तेजी देखने लायक है। विपक्ष पर हमले के साथ ही जनता को लुभाने में वो कोई कसर नहीं छोड़ रहे। जबकि इस बयार से बचने की फिराक में लगा विपक्षी खेमा भी अब जवाबी हमले की तैयारी में जुट गया है। एक-दूसरे पर जुबानी हमले तेज हो चले हैं और एक-दूसरे के घर में सेंधमारी भी। नीतीश के पास अपने बेहतर काम और लालू प्रसाद के शासनकाल के भय का हथियार है तो विपक्ष उनके पंद्रह साल की विफलताओं से वार करने की तैयारी में हैं। कुल मिलाकर माहौल अब पूरी तरह चुनावी हो चला है।

चुनाव के भी कई राउंड होते हैं। बिहार में इस समय पाला बदल राउंड चल रहा है जिसमें पहली चोट नीतीश कुमार को तब लगी, जब कभी लालू के खासमखास रहे उद्योग मंत्री श्याम रजक 11 साल का साथ छोड़ फिर पुरानी गली लौट चले। बाहें फैलाए खड़े तेजस्वी ने तुरंत गले लगाकर नीतीश पर बढ़त बना ली। लेकिन नीतीश तो नीतीश ठहरे, उनके राजद में शामिल होने से पहले ही उन्हें बर्खास्त करने के साथ ही राजद से निकाले गए तीन विधायकों को अपने पाले में कर लिया। इस तीन-एक की बढ़त के बाद भी नीतीश नहीं ठहरे। लालू के बड़े बेटे तेजप्रताप से अपनी बेटी ऐश्वर्या के तलाक तक पहुंची बात से खफा उनके समधी चंद्रिका राय, शेर-ए-बिहार कहे जाने वाले रामलखन यादव के पौत्र जयवर्धन यादव व पूर्व मंत्री अशरफ फातमी के बेटे फराज फातमी को अपने पाले में कर यह बढ़त और बना ली। इसे लालू के माय यानी मुस्लिम-यादव समीकरण पर चोट माना गया। इस चोट के साथ शुरुआती राउंड में नीतीश फिलहाल 6-1 से आगे हैं और यह संख्या बढ़ाने में जुटे हुए हैं। हालांकि इस बढ़त को राजद तवज्जो देता नहीं दिख रहा। उसकी निगाहें भी जदयू के कुछ मौसमी नेताओं व मंत्रियों पर टिकी हैं। राजनीतिक चितेरे मान रहे हैं कि टिकट बंटवारे तक यह राउंड जारी रह सकता है।

नीतीश इसी मोर्चे पर नहीं टिके। लंबे समय से राजद से मुंह फुलाए बैठे उनके पुराने साथी पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी भी गुरुवार को महागठबंधन से अलग हो गए। बार-बार अल्टीमेटम के बाद भी राजद से तवज्जो नहीं मिलने से उनके पास कोई चारा नहीं बचा था। मांझी का टूटना चुनाव से पहले महागठबंधन में बिखराव माना जा रहा है और जदयू खेमे की जीत। मांझी ने पत्ते नहीं खोले हैं कि उनका अगला कदम क्या होगा, लेकिन महागठबंधन के सामने महज एक ही दरवाजा एनडीए का होने के कारण वही उनका रास्ता माना जा रहा है। बस, बात फंसी है मोलभाव पर। मांझी अपनी पार्टी का गठबंधन चाहते हैं, जबकि नीतीश पूरी पार्टी को ही जदयू में विलय कराने के फेर में हैं। महागठबंधन से अलग होने के बाद अब जीतनराम मांझी का पलड़ा भी हल्का दिखाई दे रहा है। लोजपा के नीतीश विरोधी सुर के बीच मांझी का पलटी मारना जदयू के लिए मुफीद माना जा रहा है। हालांकि इस मामले में राजद का नजरिया दूसरा है, वह पहले से ही मांझी को अलग मान कर चल रहा था।

प्रतिद्वंद्वियों के मोर्चे पर यह दांव चलने के साथ ही जनता के बीच भी नीतीश कुमार चुनावी सुर में बोलने लगे हैं। गुरुवार को लगभग पंद्रह हजार करोड़ की पोटली खोलने के दौरान यह कहने से नहीं चूके कि अगली बार मौका मिला तो हर गांव को एक-दूसरे से जोड़ देंगे। उन्होंने इंजीनियरों से अक्टूबर तक पुरानी योजनाओं को पूरा करने का वादा भी लिया। इस दौरान एक मंत्री को यह कहकर टोका कि आप तो अगस्त तक ही मंत्री हैं। इससे स्पष्ट हो गया कि समय पर चुनाव की पैरवी करने वाले नीतीश समय पर ही चुनाव को लेकर आश्वस्त हैं। समय के अनुसार सितंबर के दूसरे सप्ताह में अधिसूचना और नवंबर तक सरकार का गठन होना है। आयोग की तैयारी पूरी है और अब अन्य दल भी इसे मानकर चलने लगे हैं। सत्तारूढ़ दलों की तेजी और पहले राउंड की उसकी बढ़त के बाद अब देखना दिलचस्प होगा कि विपक्ष की काट क्या होती है?

[स्थानीय संपादक, बिहार]