पटना, आलोक मिश्र। बिहार में गुरुवार की शाम को पहले चरण का नामांकन समाप्त होते-होते राजनीतिक पारा चरम की ओर अग्रसर था। लेकिन संध्या लगभग साढ़े आठ बजे आई एक खबर ने इस चुनावी हलचल को एकदम से विराम दे दिया। खबर थी केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान नहीं रहे। हालांकि वे पिछले काफी दिनों से बीमार थे, लेकिन अचानक इस सूचना से सभी हतप्रभ रह गए। प्रतिद्वंद्विता दरकिनार हो गई और हर तरफ से उनसे जुड़ी स्मृतियां ताजा होने लगीं। हर जुबान पर केवल और केवल उनकी ही चर्चा।

राजनीतिक विरासत अपने पुत्र चिराग पासवान को सौंपी: बिहार की राजनीति में रामविलास पासवान की प्रासंगिकता को नकारा नहीं जा सकता। दलितों के उत्थान में उनकी अहम भूमिका रही। देश के छह प्रधानमंत्रियों के साथ उन्होंने काम किया। यह भी एक संयोग ही है कि चुनाव से उपजे रामविलास का निधन भी उस समय हुआ, जब बिहार में चुनाव हो रहे हैं। उनकी खासियत यह थी कि संभावित सरकार के भावी समीकरणों का आकलन बखूबी कर लेते थे। इसीलिए लालू प्रसाद उन्हें मौसम विज्ञानी कहते हैं। उनकी दूरदर्शिता ही थी कि समय रहते उन्होंने लोजपा का अध्यक्ष बना अपनी राजनीतिक विरासत अपने पुत्र चिराग पासवान को सौंप दी।

बिहार में राजनीतिक जोड़-तोड़ का लंबा घटनाक्रम : हालांकि इसके बाद बिहार की राजनीति में करवट आई और चिराग ने नीतीश का विरोध करते हुए अकेले लड़ने की घोषणा कर दी। यह सारा घटनाक्रम रामविलास के अस्पताल में रहने के दौरान ही घटा। इसके बावजूद चाहे नीतीश हो या भाजपा, किसी ने भी रामविलास के खिलाफ एक शब्द भी नहीं कहा। सभी ने चिराग पर तो टिप्पणी की, लेकिन यह भी साथ में जोड़ा कि अगर रामविलास होते तो यह नहीं होता। इस घटना से उपजे कुछ समय के सन्नाटे से पहले बिहार में राजनीतिक जोड़-तोड़ का लंबा घटनाक्रम रहा। अब चुनावी चौसर पर पूरी बिसात अपना रूप ले चुकी है। सभी दलों ने अपने ठिकाने तलाश लिए हैं, जिसकी परिणति के रूप में पांच मोर्चे मैदान में हैं। लोजपा के चिराग राजग से अलग हो चुके हैं। भाजपा की 110 सीट को छोड़ कर सभी सीटों पर लड़ रहे हैं। खास बात यह है कि भाजपा के ही तमाम कद्दावर उनके बंगले (चुनाव चिह्न्) की ठौर ले रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काम और नीतीश की नाकामी को लेकर वे मैदान में हैं। इससे जदयू और भाजपा दोनों के लिए दिक्कत खड़ी हो गई है।

विपक्षी इसे भाजपा की बी टीम ठहरा रहे : भाजपा अपनी स्थिति साफ करने के लिए बार-बार कह रही है कि मोदी का नाम केवल एनडीए के ही घटक चार दल ही उपयोग कर सकेंगे, लेकिन चिराग मानते नहीं दिख रहे। उनका कहना है कि केंद्रीय स्तर पर गठबंधन के कारण प्रधानमंत्री के नाम व काम का उल्लेख करने से उन्हें कोई नहीं रोक सकता। विपक्षी इसे भाजपा की बी टीम ठहरा रहे हैं और सहयोगी जदयू में भी भाजपा को लेकर संदेह खड़ा हो गया है। हालांकि लोजपा के जाने की भरपाई भाजपा ने महागठबंधन से अलग होने वाली विकासशील इंसान पार्टी को 11 सीटें देकर कर ली है। राजग में अब भाजपा, जदयू, वीआइपी और हम का कुनबा है।

महागठबंधन में राजद, कांग्रेस और वामपंथी ही बचे हैं। राजद 144, कांग्रेस 70 और वामपंथी 29 सीटों पर अपना भाग्य आजमा रहे हैं। इसके अलावा, छोटे दल दो गुटों में एक हो चुके हैं। एक राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव की पीडीए व दूसरी महागठबंधन से अलग हुई रालोसपा के प्रयासों से ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेकुलर फ्रंट (जीडीएसएफ) है, जिसमें मायावती की बसपा, अससुद्दीन ओवैसी की एआइएमआइएम, पूर्व केंद्रीय मंत्री देवेंद्र यादव की समाजवादी जनता दल, डॉ. संजय जायसवाल की जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) व ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी शामिल है।

जदयू छोड़ सारे दल चरणवार उम्मीदवारों की घोषणा : एनडीए, महागठबंधन, लोजपा के अलावा छोटे-छोटे दलों के बने नए कुनबे पीडीए व जीडीएसएफ ने भी इस चुनाव की रोचकता बढ़ा दी है और साथ ही बड़े दलों की सिरदर्दी भी। कुल मिलाकर लड़ाई रोचक हो चली है। इसी को देखते हुए जदयू छोड़ सारे दल चरणवार उम्मीदवारों की घोषणा कर रहे हैं, जिसमें जिताऊ समीकरण को ही सभी वरीयता दे रहे हैं। पहले चरण का नामांकन खत्म हो गया है और दूसरे चरण के लिए पर्चे भरे जा रहे हैं। परिदृश्य अभी धुंधला है, आगे की लड़ाई बताएगी कि किसके हाथ सत्ता लगती है और कैसे?

[स्थानीय संपादक, बिहार]