फैयाज अहमद फैजी : बीते दिनों हैदराबाद में आयोजित भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अल्पसंख्यकों के पिछड़े तबकों और विशेष रूप से पसमांदा मुसलमानों के बीच पार्टी की पैठ बनाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि चूंकि कमजोर, गरीब और वंचित वर्गों की तरह पसमांदा मुसलमानों को भी विभिन्न जन कल्याणकारी सरकारी योजनाओं यथा-नि:शुल्क राशन, रसोई गैस सिलेंडर, आवास, आयुष्मान भारत, शौचालय संबंधी कई योजनाओं का लाभ मिल रहा है, इसीलिए उन तक पहुंच बनाना कठिन नहीं है। प्रधानमंत्री इसके पहले भी मुस्लिम समुदाय में व्याप्त जातिवाद और पसमांदा मुसलमानों के बारे में चर्चा कर चुके हैं।

उत्तर प्रदेश में रामपुर और आजमगढ़ के लोकसभा उपचुनावों में भाजपा को जिस तरह जीत मिली, वह खासी उल्लेखनीय है। रामपुर में भाजपा की जीत का इसलिए विशेष महत्व है, क्योंकि यहां करीब 50 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है। भाजपा ने उत्तर प्रदेश में 2017 में अपनी सरकार बनने के बाद पसमांदा मुसलमानों को पार्टी से जोड़ने की दिशा में कदम बढ़ाते हुए अल्पसंख्यक आयोग, मदरसा बोर्ड, उर्दू अकादमी आदि के अध्यक्ष पदों पर पसमांदा समाज के लोगों की नियुक्ति की। इसके पहले ऐसे अल्पसंख्यक संस्थानों में आम तौर पर मुस्लिम समाज की उच्च जातियों यानी अशराफ तबके के लोगों को नियुक्त किया जाता था। करीब तीन माह पहले हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में भाजपा को इसका फायदा भी मिला। एक अनुमान के अनुसार भाजपा को लगभग आठ प्रतिशत मुस्लिम वोट मिले। माना जाता है कि ये मुख्यत: उन पसमांदा मुसलमानों के वोट थे, जिन्होंने केंद्र और राज्य सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठाया। यह ध्यान रहे कि इन जनकल्याणकारी योजनाओं के साथ केंद्र सरकार हुनर हाट और उस्ताद जैसी योजनाएं खास तौर पर अल्पसंख्यकों के लिए चला रही है। इन योजनाओं के केंद्र में भी पसमांदा मुस्लिम समाज है। इस बार योगी सरकार में मुस्लिम चेहरे के रूप में पसमांदा समाज के दानिश आजाद अंसारी मंत्री बने हैं।

देश की मुस्लिम आबादी में एक बड़ा हिस्सा करीब 90 प्रतिशत पसमांदा यानी पिछड़े मुसलमानों का है। पसमांदा यानी वे लोग जो पिछड़ गए। वैसे तो अन्य देशों की तरह भारत में भी मुस्लिम विभिन्न फिरकों में बंटे हुए हैं, लेकिन एक तथ्य यह भी है कि अधिकतर मुस्लिम संस्थाओं और राजनीति पर अशराफ तबके का आधिपत्य है। यह वह तबका है, जो अपनी जड़ें अरब, ईरान, अफगानिस्तान और मध्य एशिया के अन्य देशों में देखता है और इसी कारण अपने को श्रेष्ठ मानता है। इसके विपरीत पसमांदा मुस्लिम समाज खुद को भारतीय मूल का मानता है और इस पर गर्व करने के साथ उन परंपराओं का पालन करता है, जो भारतीय संस्कृति में रची-बसी हैं। उसका खान-पान, पहनावा, भाषा आदि सब देशज यानी भारतीय हैं। अशराफ तबके की ओर से देशज यानी पसमांदा मुसलमानों के साथ लंबे समय से भेदभाव किया जा रहा है। इसका सिलसिला मुगलकाल से ही चला आ रहा है। अशराफ तबका खुद को विजेता और देशज पसमांदा मुसलमानों को पराजित समुदाय के रूप में पेश करता आ रहा है। पसमांदा मुसलमानों के हाशिये पर जाने का एक बड़ा कारण भी यही है।

पसमांदा मुस्लिम कार्यकर्ताओं द्वारा लगातार यह सवाल उठाया जाता रहा है कि आखिर इस देश में मुसलमानों के नाम पर संचालित लगभग सभी सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं में उनकी भागीदारी नाममात्र की क्यों है? मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड, वक्फ बोर्ड, मदरसा बोर्ड, उर्दू बोर्ड, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, मौलाना आजाद एजुकेशन फाउंडेशन, जमात-ए-इस्लामी, तब्लीगी जमात, मिल्ली काउंसिल, इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन ट्रस्ट आदि में पसमांदा मुसलमानों की हिस्सेदारी या तो बिल्कुल नहीं है या फिर नगण्य है।

कथित सेक्युलर और सामाजिक न्याय की बात करने वाले दलों द्वारा भाजपा का भय दिखाकर पसमांदा मुसलमानों का एकमुश्त वोट तो जरूर हासिल किया गया, पर उन्हें कभी समुचित भागीदारी देने का प्रयास नहीं किया गया। इक्का-दुक्का पसमांदा को भागीदारी मिली भी तो केवल मुसलमानों के नाम पर, न कि देशज पसमांदा मुसलमानों के सामाजिक एवं आर्थिक उत्थान के उद्देश्य से। विडंबना यह है कि अशराफ नेता दलितों-पिछड़ों के सामाजिक न्याय की बात तो खूब करते हैं, लेकिन अपने ही समाज के पिछड़े यानी पसमांदा मुसलमानों की सुध नहीं लेते। वे यह भी मानने को तैयार नहीं कि मुसलमान भी हिंदुओं की तरह जातियों में बंटे हुए हैं और उनमें भी ऊंच-नीच है।

मुसलमानों के बीच पैठ बनाने की बात कहकर प्रधानमंत्री मोदी ने यही संदेश दिया है कि उनकी पार्टी और सरकार मुस्लिम समाज के वंचित तबके के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं। अब जबकि प्रधानमंत्री ने पसमांदा मुसलमानों की ओर हाथ बढ़ाया है, तब फिर इस समाज के लिए भी यह आवश्यक हो जाता है कि वह भी अपना हाथ बढ़ाए। ध्यान रहे ताली दोनों हाथ से बजती है। मुसलमानों और खासकर पसमांदा मुसलमानों को उन दलों और छद्म सेक्युलर लोगों से सावधान रहना होगा, जो यह माहौल बनाने में लगे हुए हैं कि मोदी के भारत में मुसलमानों को दबाया-सताया जा रहा है, क्योंकि जनकल्याणकारी योजनाओं के आंकड़े तो कुछ और ही कहानी बयान करते हैं। इन आंकड़ों के अनुसार, आवास, शौचालय, मुद्रा, किसान सम्मान निधि जैसी योजनाओं के लाभार्थियों में एक बड़ी संख्या मुसलमानों की है। इन योजनाओं से पसमांदा मुसलमान इसलिए अधिक लाभान्वित हुआ है, क्योंकि वह गरीब है।

(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हैं)