[आलोक मिश्रा]। छत्तीसगढ़ में चुनावी शोर को भिलाई से उठे करुण क्रंदन ने सहसा चुप करा दिया है। भिलाई स्टील प्लांट में मेंटेनेंस के दौरान गैस पाइप लाइन फटने से दर्जनभर कर्मवीर काल के गाल में समा गए हैं और खड़ा कर गए वही बुनियादी सवाल कि आखिर हम घटना से पहले चेतना कब सीखेंगे। पाइप लाइन जर्जर थी, बदलने की बात होती थी, आधुनिकीकरण के लिए लंबे समय पहले ही योजना पारित हो चुकी थी, लेकिन स्थिति रही जस की तस। इक्का-दुक्का घटनाएं बीच- बीच में अलार्म बजाती रहीं, लेकिन चेतना जगाने लायक शायद नहीं समझी गईं। एक बड़ा हादसा हो गया। अब सन्नाटा पसरा है, रह-रहकर सिसकियां उसको तोड़ रही हैं।

छत्तीसगढ़ में ताजा-ताजा चुनावी रणभेरी बजी है। मूड-मिजाज बदला-बदला सा हो गया है। ऐसे में स्तब्ध कर देने वाली इस घटना ने सभी चर्चाओं पर ब्रेक लगा दिया। हर बड़ी घटना की तरह जांच के लिए कमेटी बन गई है, मुआवजे का तयतोड़ सत्ता और विपक्ष कर रहे हैं। तरह-तरह से भरपाई की बात हो रही है, लेकिन उसका क्या जो चला गया। बहरहाल यह भी एक बीती घटना हो जाएगी और फिर शुरू हो जाएगा सत्ता संग्राम जिसकी तैयारी में सब जुटे हैं।

भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए ही यह चुनाव महत्वपूर्ण है। लगातार तीन बार सरकार बना चुकी भाजपा के लिए यह नाक का सवाल है वहीं अबकी नहीं तो कभी नहीं के अंदाज में कांग्रेस के अस्तित्व का मामला है। भाजपा के लिए चिंता का विषय है कमजोर होती जमीन। अब संगठन की पड़ताल से यह सामने आ रहा है। इसका कारण भी है, कारण है पिछली तीन बार की सत्ता। इन तीन चुनावों में कार्यकर्ता प्रमोट होकर नेता हो गए और अपेक्षानुरूप नए कार्यकर्ता बने नहीं। कई जगह जमीनी रिपोर्ट हवा में तैयार हो गई।

बूथस्तरीय मैनेजमेंट में सबसे आगे रहने वाली भाजपा के लिए इस बार यही क्षेत्र सबसे बड़ी कमजोरी है जिससे उसे पहले जूझना है। समय कम है और काम ज्यादा। दूसरी तरफ नेता बढ़ने से हर सीट पर दावेदारों की संख्या भी बढ़ गई है। हर कोई किस्मत आजमाना चाहता है। ऐसे में अंसतोष बढ़ने का भी अंदेशा सताने लगा है। हालांकि पिछले दिनों महिलाओं की बड़ी भीड़ जुटाकर अमित शाह भाजपा को उनका सबसे बड़ा हिमायती बता गए हैं और इस बार ज्यादा सीटें उन्हें देने की बात कह आधी आबादी को लुभाने का दांव चल गए हैं। हालांकि सभा में अश्लील सीडी कांड पर कांग्रेस को घेरने पर उनका ज्यादा जोर रहा जिसकी महिलाओं में ही मिश्रित प्रतिक्रिया रही।

उधर सीडी-वीडियो के बीच उलझकर लड़खड़ा चुकी कांग्रेस अब इससे उबर रही है। अश्लील सीडी कांड में जमानत न लेकर जेल जा चुके कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल अंतत: आलाकमान के निर्देश पर बाहर तो आ गए थे, लेकिन इसी बीच उनका एक और वीडियो सामने आ गया जिसमें दो सीटों के बदले वे प्रभारी पीएल पुनिया की किसी कथित सीडी का सौदा कर रहे थे। हालांकि उसमें उनकी फोटो नजर नहीं आ रही थी। इसके बाद प्रभारी पीएल पुनिया से उनके रिश्ते खट्टे होने और आलाकमान के नाराज होने की खबरें भी हवा में तैरने लगी थीं। कांग्रेस इसे भाजपा की साजिश ठहराने लगी और कई अन्य वीडियो होने का आरोप लगाने लगी। इसके बाद कुछ फोन नंबरों का हवाला देकर पीसीसी ने दो अन्य प्राथमिकी दर्ज कराई जो भूपेश के पैसा लेकर टिकट देने से संबंधित थी। बहरहाल यह सीडी-सीडी, वीडियो-वीडियो का शोर अब दम तोड़ता नजर आ रहा है, भाजपाई भी अब चुप्पी साधे हैं और दो-तीन दिन सन्नाटे में रहने के बाद कांग्रेस इससे उबर कर फिर मैदान में कूद पड़ी है। चुनाव प्रचार भी जल्द ही जोर पकड़ेगा।

जोगी और माया की जुगलबंदी

जोगी और माया की जोड़ी 13 को बड़ी रैली कर दमखम दिखाने के फेर में है। गठबंधन कर एक धुरी बनने का संदेश देने में तो फिलहाल दोनों बढ़त हासिल कर चुके हैं, अब प्रयोग यह है कि बड़ी भीड़ दिखाकर मतदाताओं में संदेश दिया जाए कि वे वोट काट कर नहीं सीट जीतकर भला करेंगे। छत्तीसगढ़ में उनके बिना सरकार नहीं बनेगी। मायावती और अजीत जोगी दोनों को ही छत्तीसगढ़ में कर्नाटक सरीखे नतीजे दिख रहे हैं और उसी अनुरूप स्क्रिप्ट को भी धार दी जा रही है। अन्य छोटे-मोटे राजनीतिक दल और विभिन्न संगठन भी इस चुनाव में अपना ठौर तलाशने में जुटे हैं। लाभ-हानि के आधार पर बातचीत चौतरफा जारी है। मोबाइल, साड़ी, बिछिया आदि मतदाताओं को बांटने का काम शुरू हो गया है। पैसे से न लड़ पाने वाले इसकी काट में प्रचारित कर रहे हैं कि तुमको कम मिला, उसको ज्यादा... जाओ और ले आओ। कुछ इसी तरह धीरे-धीरे माहौल रोचकता की तरफ जा रहा है।

[राज्य संपादक,

नईदुनिया, छत्तीसगढ़]