[ सुधींद्र कुलकर्णी ]: मामल्लपुरम में भारत-चीन के शासनाध्यक्षों की मुलाकात से पहले पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान, सेना प्रमुख और आइएसआइ मुखिया के साथ शी चिनफिंग की गलबहियों ने ऐसे भारतीय विश्लेषकों की त्योरियां और चढ़ा दी थीं जिन्हें चीन फूटी आंख नहीं सुहाता। उन्होंने मामल्लपुरम में वार्ता से पहले ही उसका मर्सिया पढ़ना शुरू कर दिया था कि वुहान वाली भावना हवा हो गई और अनौपचारिक वार्ता के दौर की यह दूसरी कड़ी यहीं दम तोड़ देगी, फिर भी मोदी ने इसे सफल बनाया। उन्होंने कहा कि ‘चेन्नई कनेक्ट’ के जरिये परस्पर विश्वास की ऐसी भावना विकसित हुई जिससे भारत-चीन सहयोग में एक नए दौर की शुरुआत होगी। आखिर पासा किसने पलटा? वह शख्स कोई और नहीं, बल्कि माओत्से तुंग के बाद चीन के सबसे शक्तिशाली नेता शी चिनफिंग हैं। उन्होंने पाकिस्तान और भारत को एक साथ साधकर बेहद मुश्किल नजर आने वाली कूटनीतिक बाजी अपने नाम की।

चीन के सामने सबसे बड़ी चुनौती भारत के साथ रिश्ते बनाने की है

चीनी राष्ट्रपति के समक्ष सबसे बड़ी कूटनीतिक चुनौती यही है कि भारत के साथ रिश्ते कैसे बेहतर बनाए जाएं जिनमें परस्पर विश्वास की कमी है। उनकी यह चुनौती तब और जटिल हो जाती है जब उन्हें यह काम पाकिस्तान के साथ चीन के परंपरागत रिश्तों को कमजोर किए बिना करना हो। तमाम भारतीय मानते हैं कि पाकिस्तान के करीबी किसी देश पर भरोसा नहीं किया जा सकता। इसी तरह तमाम पाकिस्तानियों को भी यह खटकता है कि उनका सदाबहार दोस्त उनके ‘दुश्मन’ भारत के साथ मेलजोल बढ़ा रहा है। ऐसे माहौल में पहले इमरान और फिर मोदी के साथ मुलाकात में शी ने दोनों को दोस्ती का भरोसा दिलाया।

पाक के उलट मोदी संग कहीं ज्यादा सहज नजर आए चिनफिंग

शी की भाव-भंगिमा पर गौर करने वालों ने स्वाभाविक रूप से देखा होगा कि पाकिस्तानी राजनीतिक-सैन्य नेतृत्व के साथ औपचारिक वार्ता के उलट मोदी संग अनौपचारिक वार्ता में चीनी राष्ट्रपति कहीं ज्यादा सहज और दोस्ताना नजर आए। ऐसे में ‘चेन्नई कनेक्ट’ महज एक कूटनीतिक जुमले से कहीं ज्यादा मोदी और शी के बीच उभरते नए रिश्तों की अभिव्यक्ति कराता है। सबसे बड़े पड़ोसी के साथ रिश्त सुधारने में मोदी ने गजब की परिपक्वता और चातुर्य का परिचय दिया है और इसमें वह धीरे-धीरे ही सही, लेकिन रणनीतिक कड़ियां भी जोड़ रहे हैं।

चीन के साथ गलबहियां जारी रखना आसान नहीं होगा

इस मुश्किल कवायद में मोदी के समक्ष चुनौतियां स्पष्ट हैं। बतौर प्रधानमंत्री अपने साढ़े पांच वर्ष के कार्यकाल में उन्होंने पाकिस्तान के साथ निरंतरता वाली कोई नीति नहीं अपनाई। न ही पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान ने मोदी के भरोसा बढ़ाने वाले सकारात्मक कदमों पर उचित प्रतिक्रिया दी। मोदी के समर्थक भी पाकिस्तान के प्रति बहुत कट्टर हैं। वास्तव में सत्ता में उनकी दोबारा वापसी कराने में इस पहलू की अहम भूमिका रही। ऐसे में उनके लिए चीन के साथ गलबहियां जारी रखना आसान नहीं होगा, खासतौर से ऐसे देश के साथ जो पाकिस्तान जैसे पुराने सहयोगी का साथ नहीं छोड़ने जा रहा। इसके बावजूद मोदी ने चेन्नई बैठक को लेकर जताई जा रही उन आशंकाओं को निर्मूल साबित किया जो भारत-चीन-पाकिस्तान के बीच अंतर्निहित विरोधाभासों के चलते उसकी नाकामी का अंदेशा जता रही थीं।

इमरान के मुकाबले मोदी और चिनफिंग में अधिक तारतम्य दिखा

इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि हाल के दौर में किसी विदेशी नेता के भारतीय दौरे को लेकर जनता में इतनी उत्सुकता नहीं रही जितनी मामल्लपुरम में शी के आगमन को लेकर रही। बीजिंग में इमरान के साथ शी की मुलाकात में दोनों नेताओं के बीच कोई तारतम्य नहीं दिखा, जबकि चीनी राष्ट्रपति के साथ मोदी की मुलाकात में दिखा कि वह शी के साथ दोस्ती बढ़ा रहे हैं और यह बराबरी के स्तर पर हो रहा है।

मोदी-चिनफिंग बैठक में कश्मीर मुद्दे का जिक्र नहीं हुआ

चेन्नई में मोदी-शी बैठक के इस पहलू ने भी भारतीय जनता का ध्यान आकृष्ट किया कि दोनों की वार्ता में कश्मीर मुद्दे का जिक्र नहीं हुआ। जिक्र हुआ भारत, चीन एवं शेष विश्व के समक्ष आतंकवाद और धार्मिक उन्माद के खतरे का। माना जाता है कि बीजिंग में इमरान, जनरल बाजवा और आइएसआइ प्रमुख से वार्ता में शी ने इसी मसले पर चर्चा की होगी। यह भी संभव है कि शी ने मोदी को इसके बारे में सूचित किया होगा। यह सोचना उचित नहीं होगा कि चीन आतंकवाद या इस्लामिक अलगाववाद के प्रति कोई नरमी रखता होगा, क्योंकि अपने मुस्लिम बहुल प्रांत झिनजियांग में वह खुद इस खतरे को झेल रहा है। पाकिस्तान भी धार्मिक उन्मादियों से पीड़ित है। ऐसे में यह सही समय है कि भारत-चीन और पाकिस्तान इस साझा खतरे से निपटने के लिए सार्थक संवाद शुरू करें। भारतीय, चीनी और पाकिस्तानी नेताओं के साथ अपनी तमाम वार्ताओं में मैंने तीनों देशों के बीच नियमित रूप से ट्रैक-टू कूटनीति को सिरे चढ़ाने की वकालत की है। इससे तीनों देशों के शीर्ष नेताओं के बीच शिखर वार्ता की बुनियाद तैयार होगी।

मामल्लपुरम में मोदी ने चिनफिंग ने साथ एक और पहलू जोड़ा

प्राचीन मंदिरों वाले समुद्र तटीय शहर मामल्लपुरम में शी के साथ संवाद के दौरान मोदी ने एक और महत्वपूर्ण पहलू जोड़ा। यहां हिंदू मंदिरों, आख्यानों और संस्कृति के नयनाभिराम दृश्य दिखाई पड़े। यह प्राचीनकाल में भारत और चीन के बीच सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक कड़ियों को प्रदर्शित करता है जिससे शी भलीभांति परिचित होंगे। शी ने अपने जीवन के 18 वर्ष चीन के दक्षिण पूर्वी फुजियन प्रांत में कम्युनिस्ट पार्टी के कनिष्ठ अधिकारी के तौर पर गुजारे हैैं। फुजियन में ऐसी जगहें हैं जिनके तार भारत विशेषकर तमिलनाडु से जुड़े हैं। कुछ साल पहले मैं ग्वांगझू गया था जहां मैंने 1,300 साल पुराना एक काइयुआन मंदिर देखा जिसमें शिव, कृष्ण और नरसिंह भगवान की प्रतिमाएं थीं।

भारत-चीन रिश्तों की 70वीं वर्षगांठ

मामल्लपुरम में मोदी जब शी को मंदिर दिखा रहे थे तब शी ने ग्वांगझू का जिक्र किया। ग्वांगझू के सामुद्रिक संग्रहालय में मध्यकालीन इतिहास के दौरान भारत और चीन के बीच की तमाम इस्लामिक कड़ियों के नमूने रखे हैं। यह सुखद है कि भारत-चीन रिश्तों की 70वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में मोदी और शी ने एक पोत पर कांफ्रेंस करने का एलान किया जिसमें विश्व की दो प्राचीन सभ्यताओं के बीच ऐतिहासिक जुड़ाव की कड़ियां जोड़ी जाएंगी। इतिहास के इन विस्मृत अध्यायों का पुनरावलोकन चेन्नई कनेक्ट की बड़ी थाती रही।

चिनफिंग ने चीन-भारत संबंधों को सुधारने के लिए 100 वर्षीय एजेंडा पेश किया

चेन्नई सम्मेलन का सबसे खास पहलू यही है कि शी ने चीन-भारत संबंधों को सुधारने के लिए सौ वर्षीय एजेंडा पेश किया। यह सच है कि दोनों देशों के बीच व्यापार घाटे से लेकर सीमा विवाद तक तमाम तरह के मतभेद हैं, लेकिन अगर हम अपनी सभ्यतागत बुद्धिमता से मार्गदर्शन लें और मित्रता को लेकर कोई पूर्वाग्रह न रखें तो हम पाकिस्तान सहित सभी देशों के साथ अपने मसले इस तरह सुलझा सकते हैं जिसमें किसी भी पक्ष को कोई नुकसान न हो। वास्तव में भारत और चीन मिलकर इस दुनिया को एक बेहतर जगह बना सकते हैं।

( लेखक फोरम फॉर ए न्यू साउथ एशिया के संस्थापक हैं )