भोपाल, सद्गुरु शरण। शिवराज सिंह चौहान का मुख्यमंत्री के रूप में यह चौथा कार्यकाल है, जबकि समग्रता में उनके कार्यकाल का चौदहवां वर्ष प्रगति पर है। लंबे कार्यकाल में उनके नाम कई बड़ी उपलब्धियां दर्ज हैं, पर मौजूदा कार्यकाल जैसे उनके तेवर पहली तीन पारियों में नहीं दिखे। उनकी सर्वाधिक मजबूत छवि उनके बालिका सशक्तीकरण अभियान को लेकर है जिसके चलते उन्हें आम जनता के बीच मामा जैसा प्यारपूर्ण लोक-रिश्ता और संबोधन मिला। उन्होंने बालिका सशक्तीकरण के लिए अब तक 16 चर्चित योजनाएं लागू कीं, जिनमें कई योजनाएं इतनी लोकप्रिय हुईं कि दूसरे राज्यों में भी अपनाई गई हैं।

इसके अलावा शिवराज सिंह किसान कल्याण योजनाओं के लिए भी खासे यशस्वी हुए। वही शिवराज सिंह अपने चौथे कार्यकाल में बहुत सख्त अवतार में नजर आ रहे हैं। पिछले दिनों एक सार्वजनिक कार्यक्रम में उन्होंने माफिया को ललकारते हुए कहा कि मामा फारम (फॉर्म) में हैं। मध्य प्रदेश छोड़कर भाग जाओ, नहीं तो जमीन में गड़वा दूंगा। ढूंढने पर भी पता नहीं चलेगा। शिवराज सिंह के इन तेवरों ने उनके विरोधियों के साथ उनके करीबियों को भी चौंका दिया। बात सिर्फ शिवराज सिंह की गर्जना तक सीमित नहीं है। प्रदेश भर में प्रशासन के बुलडोजर और जेसीबी मशीनें भी गरज रहे हैं। अपनी गुंडागर्दी और दबंगई से आम लोगों को आतंकित करने वाले और अवैध तरीकों से कालाधन अर्जति करके साम्राज्य खड़ा करने वाले माफिया के महलनुमा भवन और व्यावसायिक भवन ढहाए जा रहे हैं।

मध्य प्रदेश के लोगों के लिए यह बिल्कुल नए दृश्य हैं। प्रदेश में अपराध-अपराधियों पर काबू और शांति-कानून व्यवस्था की स्थापना की दृष्टि से इस मुहिम को शिवराज सिंह सरकार का मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है। मध्य प्रदेश में खून-खराबा वाले बड़े अपराध वैसे भी यूपी-बिहार के मुकाबले कम होते हैं। सरकार की मौजूदा अपराध-विरोधी मुहिम देखते हुए संभावना जताई जा रही है कि माफिया को हतोत्साहित करने और अपराध नियंत्रण की कसौटी पर मध्य प्रदेश आने वाले दिनों में रोलमॉडल प्रदेश बन सकता है। सरकार की यह सख्त मुहिम सिर्फ माफिया तक सीमित नहीं है। पिछले दिनों इंदौर और उज्जैन में उपद्रवी तत्वों ने जब धाíमक जुलूसों पर घरों की छत से पथराव किया तो प्रशासन ने इसमें शामिल उपद्रवियों को जेल भेजकर अगले दिन उनके घर ध्वस्त करवा दिए। देश के किसी अन्य राज्य में सांप्रदायिक उपद्रव करने वाले अपराधियों पर इतनी सख्त और त्वरित कार्रवाई इससे पहले ध्यान में नहीं आती।

दरअसल 2018 में विधानसभा चुनाव में सत्ता गंवाने के बाद शिवराज सिंह की लोकप्रिय छवि को गहरा धक्का लगा था, यद्यपि पिछले साल मार्च में कांग्रेस में टूटन के बाद वह सत्ता में लौट आए। जाहिर है, 2018 चुनाव परिणाम के अनुभव से उन्होंने कई सबक लिए होंगे जो अब उनकी कार्यप्रणाली और नीतियों में झलक रहे हैं। वह एक तरफ सुशासन की छाप छोड़ने को व्यग्र दिख रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ भाजपा के राजनीतिक एवं सांस्कृतिक एजेंडे पर भी तेजी से अमल कर रहे हैं। मध्य प्रदेश में लव जिहाद की घटनाएं सीमित हैं, इसके बावजूद शिवराज सिंह चौहान ने इसके खिलाफ सख्त कानून बनवाने की पहल करने में विलंब नहीं किया। जब कोरोना संक्रमण के कारण विधानमंडल का शीतकालीन सत्र आयोजित नहीं किया सका तो मुख्यमंत्री ने अगले सत्र का इंतजार करने के बजाय अध्यादेश लाकर कानून लागू करने का फैसला किया।

किसानों के कल्याण के लिए बेहतर योजना

मुख्यमंत्री की इस सोच और कार्यशैली का प्रभाव प्रदेश के माहौल पर दिख रहा है। किसान-प्रधान प्रदेश होने के बावजूद यहां के किसानों ने पंजाब और हरियाणा के किसान आंदोलन को कतई तवज्जो नहीं दिया। मध्य प्रदेश में अधिकतर प्रमुख जिंसों का एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य अन्य राज्यों के मुकाबले बेहतर है। यह उन चंद राज्यों में शामिल है जहां सरकार ने किसानों की उपज का एमएसपी सुनिश्चित करने के लिए भावांतर योजना लागू कर रखी है। यानी यदि किसानों को अपनी उपज एमएसपी से कम दर पर बेचनी पड़े तो मूल्य के अंतर की भरपाई सरकार करती है। इतना ही नहीं, जिन तीन कृषि कानूनों पर संदेह जताते हुए पंजाब और हरियाणा के किसान आंदोलित हैं, वही कानून मध्य प्रदेश के किसानों के बीच लोकप्रिय एवं लाभदायी साबित हो रहे हैं।

कृषि कानूनों से मिला किसानों को फायदा

होशंगाबाद में एक निजी कंपनी ने जब किसानों के साथ करार का उल्लंघन करके 3,000 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर धान खरीदने में आनाकानी की तो प्रशासन ने नए कृषि कानून का फंदा उस कंपनी के गले में डालकर किसानों की धान 3,000 रुपये की दर पर क्रय करने के लिए बाध्य किया। इसी प्रकार ग्वालियर में एक व्यापारी किसानों की रकम दबाकर फरार हो गया तो प्रशासन ने उसके घर-जमीन को नीलाम करके किसानों का भुगतान करवाया। ऐसे अन्य प्रसंग भी हैं जिनसे मध्य प्रदेश में लोगों की खुशहाली व्यक्त होती है। प्रदेश में अगले विधानसभा चुनाव वर्ष 2023 में होंगे। शिवराज सिंह उस चुनौती को भलीभांति समझते हैं। शायद इसलिए वह बदले तेवरों के साथ पूरे ‘फारम’ में हैं।

(संपादक, नई दुनिया, मध्य प्रदेश)