राजीव रंजन चतुर्वेदी। पड़ोसी देश बांग्लादेश में 30 दिसंबर को 11वें संसदीय चुनाव होने जा रहे हैं। भारत अपनी तटस्थता की नीति पर कायम रहते हुए वहां के राजनीतिक हालात पर नजर बनाए रखे हुए है। उसकी ओर से कोई प्रतिक्रिया इसलिए नहीं व्यक्त की गई कि कहीं उसे चुनावी मुद्दा न बना दिया जाए। पिछली बार ऐसा हो चुका है। भारत यह नहीं चाहता कि शेख हसीना की छवि भारत समर्थक नेता के तौर पर उभरे। ध्यान रहे कि बांग्लादेश में कई छोटे दल और खासकर कट्टरपंथी तत्व भारत विरोध का परचम उठाए रहते हैं। इनमें से कई ऐसे हैं जिनके तार पाकिस्तानी कट्टरपंथी तत्वों से जुड़े हैं। एक तथ्य यह भी है कि ऐसे कट्टरपंथी तत्व खालिदा जिया के समर्थक के तौर पर जाने जाते हैं।

बांग्लादेश की राजनीति एक लंबे अर्से से शेख हसीना और खालिदा जिया के इर्द-गिर्द ही घूमती आई है। चुनावों में जंग भी इन्हीं के बीच होती है। राजनीतिक लाभ के लिए जांच में हस्तक्षेप की समस्या दक्षिण एशिया में व्यापक है और बांग्लादेश निश्चित रूप से अपवाद नहीं है। दक्षिण एशिया में एक और आम धारणा है कि राजनीतिक दिग्गज कानून तोड़ने और सार्वजनिक भरोसे का उल्लंघन करने के बावजूद कानून के शिकंजे से बच सकते हैं। हालांकि मध्य वर्ग की संख्या में बढ़ोतरी और लोगों की बढ़ती आकांक्षाओं के साथ दक्षिण एशिया में राजनीति भी बदल रही है। आशा और निराशा के बीच बांग्लादेश की राजनीति भी करवट ले रही है।

बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की अध्यक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री बेगम खालिदा जिया भ्रष्टाचार के मामलों में दोषी ठहराए जाने के बाद जेल में सजा काट रही हैं। उनके बेटे तारिक रहमान को शेख हसीना को जान से मारने के षड्यंत्र में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है और वे लंदन में आत्म निर्वासन में रह रहे हैं। बीएनपी ने 2014 में चुनाव नहीं लड़ा था और उस फैसले में तारिक रहमान की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका थी। 2014 के चुनाव में भागीदारी के लिए पार्टी के भीतर से मजबूत आवाज के बावजूद जिया और उनके बेटे ने चुनाव से बाहर रहने का फैसला किया। उन्होंने सोचा था कि वे सड़कों पर जाकर विरोध-प्रदर्शन और गैर-संसदीय साधनों के माध्यम से सरकार को गिरा सकते हैं। वे अपने इस मकसद में बुरी तरह विफल रहे और शेख हसीना की बांग्लादेश अवामी लीग आराम से लगातार दूसरी बार सत्ता में आ गई। यदि वह आगामी चुनाव में जीतती हैं तो चौथी बार बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बनेंगी।

जिया के कारावास के बाद उनकी पार्टी ने फैसला किया कि बीएनपी का नेतृत्व अब तारिक रहमान द्वारा किया जाएगा, जो निर्वासन में हैं। राजनीतिक नेतृत्व का ऐसा हस्तांतरण दक्षिण एशियाई वंशानुगत राजनीति की वास्तविकता को दर्शाता है। यह निर्णय आगामी चुनाव में बीएनपी के लिए एक गंभीर चुनौती बन सकता है और शायद पार्टी के भविष्य के लिए हानिकारक भी हो सकता है। हालांकि इस बार भी चुनाव से पहले काफी गतिरोध बना रहा, मगर आखिरी समय में बीएनपी और उसके सहयोगी दल गठबंधन कर चुनाव लड़ने को तैयार हो गए। इस गठबंधन में करीब 20 राजनीतिक दल शामिल हैं। अवामी लीग के साथ भी लगभग एक दर्जन दल हैं। तीसरे मोर्चे या तीसरी ताकत के रूप में आठ वामपंथी दलों का भी एक गठबंधन है। हालांकि सीधी लड़ाई अवामी लीग और बीएनपी के नेतृत्व वाले गठबंधनों के ही बीच है। सभी राजनीतिक दलों की चुनाव में भागीदारी बांग्लादेश में लोकतंत्र को सुदृढ़ करने के लिए एक अच्छा संकेत है। यह उल्लेखनीय है कि बांग्लादेश निर्वाचन आयोग ने कई देशों से चुनाव पर्यवेक्षक आमंत्रित किए हैं। उसके अनुरोध पर भारत भी तीन पर्यवेक्षक भेज रहा है।

खालिदा जिया के नेतृत्व वाले बीएनपी के शासनकाल में भ्रष्टाचार विरोधी निगरानी संस्था ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल द्वारा लगातार पांच वर्षों तक बांग्लादेश को दुनिया में सबसे भ्रष्ट देश के रूप में स्थान दिया गया था। उस दौरान बांग्लादेश में कट्टरवाद फला-फूला, राजनीतिक विरोधियों और देश के अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ हिंसा की तमाम घटनाएं भी हुईं। भ्रष्टाचार के मामले में खालिदा जिया को दोषी ठहराने का बांग्लादेश के न्यायालय का निर्णय इस मिथक पर प्रहार साबित हुआ कि राजनीतिक दिग्गज कानून तोड़ने के बाद भी बच सकते हैं। इस फैसले से बांग्लादेश की जनता को भी यह संदेश गया कि शक्तिशाली नेताओं को भ्रष्टाचार के लिए दंडित किया जा सकता है। दक्षिण एशिया में राजनीति की प्रकृति बहुत तेजी से बदल रही है और राजनीतिज्ञों से जिम्मेदारी और पारदर्शिता की उम्मीद बढ़ रही है। शक्तिशाली नेताओं द्वारा जोड़-तोड़ के कारण न्याय में देरी हो जाती है, लेकिन आखिरकार ऐसे फैसलों से उम्मीदें जीवित रहती हैं।

पिछले कुछ वर्षों में अवामी लीग के नेतृत्व में बांग्लादेश ने आर्थिक रूप से अपनी स्थिति में उल्लेखनीय सुधार किया है। खास बात यह है कि बांग्लादेश की स्थिति पाकिस्तान से कहीं बेहतर है। यद्यपि वर्तमान सरकार के खिलाफ कुछ असंतोष और राजनीतिक हिसाब चुकता करने के आरोप हैं, लेकिन अवामी लीग ऐसे आरोपों का भी राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश में है। दरअसल विश्वसनीय विपक्ष के अभाव में सत्तारूढ़ पार्टी के लिए पारदर्शिता को पेश करने, संस्थाओं को मजबूत बनाने और समावेशी विकास लाने के लिए एक प्रभाव पैदा करना आसान रहा। शेख हसीना बांग्लादेश के विकास के मुद्दे पर ही एक बार फिर सत्ता में आना चाहती हैं। पाकिस्तान के विपरीत बांग्लादेश में सेना अधिक समावेशी है और सैन्य अधिकारी केवल कुलीन वर्गों का प्रतिनिधित्व नहीं करते। बांग्लादेश की सेना ने एक संतुलन बनाने का काम किया है, फिर भी यह देखना उल्लेखनीय होगा कि सेना चुनाव प्रक्रिया के दौरान कैसा रुख अपनाती है? फिलहाल यह संतोषजनक है कि चुनाव में संभावित सैन्य हस्तक्षेप के कोई संकेत नहीं हैं, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि विपक्षी दल अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं के उत्पीड़न का आरोप लगा रहे हैं। अभी यह कहना कठिन है कि इन आरोपों में कितनी सच्चाई है। ध्यान रहे जब खालिदा जिया सत्ता में थी तो उनकी सरकार पर इससे भी गंभीर आरोप लगे थे। बांग्लादेश की ‘जातीय संसद’ की सदस्य संख्या 350 है। इनमें से 300 सीटों के लिए मतदान होता है। शेष 50 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। इन 50 सीटों के लिए निवार्चित 300 प्रतिनिधि एकल समानुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर वोट डालते हैं।

(लेखक सिंगापुर की नानयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी में विजिटिंग फेलो हैं)