[डॉ अनिल प्रकाश जोशी]।  देश के प्रधानमंत्री ने हालिया में प्लास्टिक के प्रति एक संवेदनशील आंदोलन का आह्वान किया है। उससे दो बातें बड़ी साफ हैं। पहली बात ये कि अगर देश का प्रधानमंत्री इस समस्या के प्रति गंभीर है तो इसका मतलब प्लास्टिक के दुष्प्रभाव आज बदतर हालात में पहुंच चुके हैं। दूसरी बड़ी बात यह भी है कि अगर प्रधानमंत्री इस मसले में खुद दिलचस्पी ले रहे हैं तो समझिए सरकार इस ओर गंभीर है और प्लास्टिक के इस दुष्प्रभाव से देश को मुक्त कराना चाहती हैं।

उनकी ही पहल पर शुरू हुए स्वच्छ भारत अभियान का गुणगान दुनिया कर रही है। इस अभियान के भी पांच साल पूरे होने जा रहे हैं। प्लास्टिक और स्वच्छता का आपस में बहुत घनिष्ट नाता है। अगर देश को स्वच्छ रखना है तो सबसे पहले हमें इस देश को प्लास्टिक मुक्त करना होगा। इन पांच साल में सरकार तो गंभीर रही लेकिन आमजन ने इसे कभी गंभीरता से नहीं लिया।

20वीं सदी का प्लास्टिक चमत्कार आज 21वीं सदी में गले की फांस बन चुका है। हमारे देश में भगवान को सर्वव्यापी मानते है लेकिन आज प्लास्टिक ने वैसी ही जगह ले ली है। हर गांव-शहर व देश-दुनिया का कोई भी ऐसा कोना नही बचा जहां प्लास्टिक ने विनाश ना कर दिया हो। जल, थल और वायु, सर्वत्र, सर्वव्यापी अविनाशी बना हुआ है।

असल में सिंगल यूज प्लास्टिक ही हमारे जी का जंजाल बना हुआ है। क्योंकि ये दुबारा किसी भी तरह उपयोग मे नहीं आता। इसकी प्रवृत्ति ऐसी है कि अगर ये पृथ्वी पर होगा तो जानवरों के पेट से लेकर नदी नालों तक को जाम कर देगा। और अगर इसे जला दिया जाये तो आसमानी संकट पैदा कर देगा। क्योंकि इसका धुंआ वायुमंडल को ही नही बल्कि ओजोन परत को भी छेड़ने से नही चूकता।

अब सरकार प्लास्टिक से मुक्ति दिलाने को संकल्पित दिख रही है तो हमारा कर्तव्य ही नहीं बल्कि धर्म भी है कि हम इस पहल में अपनी प्रभावी भागीदारी करें। जब तक प्लास्टिक से मुक्ति नहीं मिलेगी तब तक स्वच्छता सहित देश को दीमक की तरह चाट रही कई खामियां खत्म नहीं हो पाएंगी। प्लास्टिक के खात्मे के प्रति हमारी अन्यमनस्कता देश के चरित्र पर भी सवाल खड़ी करती है। हम अक्सर यह मानकर चलते हैं कि यह सरकार की जिम्मेदारी हैं और इसमें हमारा कोई दायित्व नहीं। आज यही हमारे संकट का सबसे बड़ा कारण भी बन चुका है।

अगर पिछले 5 साल में हम देश के स्वच्छता अभियान में बड़ी सफलता नही जुटा पायें तो इसमें सरकार से ज्यादा कहीं ना कहीं दोष हमारा ही है। हम अपने घर के दायित्व के अलावा देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी नहीं मानते। और यह किसी भी देश के स्वभाव का सबसे बड़ा हिस्सा होता है जहां देश में रहने वाला हर व्यक्ति देश के हर कदम से कदम मिलाकर उसे मजबूत करता है।

सोचिए, यह कैसे संभव हो सकता है कि हर गली, घर में हम कूड़ा पैदा करें और नगरपालिका से अपेक्षा करें कि वो इसे ढोयें और निस्तारित करें। हम इस राष्ट्रीय आंदोलन में सरलता से भागीदार बन सकते है। प्लास्टिक के उपयोग पर स्वयं अंकुश लगाएं और उसकी तिलांजलि दे। दूसरा जो भी कचरा हमारे बीच में पंहुच चुका हैं उसके निस्तारण में ईमानदारी से भागीदारी करें।

हमें समझना चाहिए कि सरकार हम ही बनाते हैं और गांव-शहर और देश भी हमारा है इसलिए स्वच्छता अभियान भी हमारे लिए ही है। सच तो यह है अगर आज नहीं संभले तो कल हम सरकार को कोसने के योग्य भी नहीं रहेंगे क्योंकि तब तक परिस्थितियां हमारे हाथ से निकल जाएंगी। यह तय है कि हम अपने को एक ऐसे प्लास्टिक युग में ले जा रहे हैं जहां पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं होगा। आज हम जिस प्लास्टिक को पैदा करते हैं कल वही हमें एक दिन पूरी तरह से निगल लेगा।

लेखक- हिमालयन एनवायरमेंटल स्टडीज एंड कंजर्वेशन ऑर्गनाइजेशन देहरादून के संस्थापक