तरुण विजय, जेएनएन। राम की महिमा अपार है। वह अपने भक्त को अपने से भी बड़ा बना देते हैं। वाल्मीकि ने राम कथा लिखी तो अमर हो गए और उन्हें प्रभु-पद मिला। हनुमान, जटायु, शबरी, विभीषण आदि अनंत उदाहरण हैं, जो राम भक्ति के कारण तर गए, कदाचित राम जैसे पूज्य और आदरणीय हो गए। मैथिलीशरण गुप्त ने तो विनम्र भाव से कहा भी-‘राम तुम्हारा वृत्त स्वयं ही काव्य है, कोई कवि बन जाए सहज संभाव्य है।’

तुलसी के राम और उनके रामचरितमानस ने हजारों लाखों गिरमिटिया हिंदुओं की रक्षा की-जो मॉरीशस, सूरीनाम आदि देशों में अपने धर्म, अपने राम के सहारे जिंदा रहे। पर क्या कभी आदि कवि वाल्मीकि के अनुयायी परम रामभक्त वाल्मीकि समाज के बारे में कभी सोचा है? राजनीति के कुरुक्षेत्र में रामभक्ति दिखा रहे नेता कभी भी क्या वाल्मीकि समाज की अनन्य रामभक्ति के निकट भी आ सकते हैं? अधरों पर राम, नाम के आगे राम, हृदय में राम, सदियों से जाति भेद का अन्याय, अत्याचार सहते हुए भी सिवाय राम की शरण के जिन्होंने दूसरा नहीं ढूंढा, ऐसे वाल्मीकि के वंशज पीढ़ी दर पीढ़ी समाज का मैला ढोते रहे, सफाई कर्मचारी बनते रहे। क्या इससे बढ़कर और कोई विडंबना हो सकती है कि राम, जिन्होंने हनुमान को गले लगाया, शबरी के जूठे बेर खाए, जटायु के लिए आंसू बहाए-उच्च और निम्न जाति में बांट दिए जाएं?

देश में वाल्मीकि समुदाय के प्राय: साढ़े नौ से दस करोड़ नागरिक हैं। प्राय: उत्तर से दक्षिण, सैन्य-असैन्य, सभी नगरों तथा संस्थानों में हमारी गंदगी, शौचालय, सड़कें साफ करने वाले सफाई कर्मचारी वाल्मीकि ही होते हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी वाल्मीकि परिवार में बच्चा जन्मते ही सफाई कर्मचारी बनेगा-यह तय हो जाता है। मंदिर भी भगवान वाल्मीकि के ही बनाते हैं जहां सामान्यत: शेष जातियों के हिंदू जाते ही कम हैं। क्या जाति के आधार पर किसी वर्ग विशेष का सामूहिक कार्य निर्धारण किया जाना न्यायसंगत और संविधान सम्मत है? ऐसा क्यों होता है कि हम पीढ़ी दर पीढ़ी सिर्फ एक जाति वाल्मीकि को, जो परम रामभक्त, निष्ठावान हिंदू, अन्याय सहकर भी धर्मनिष्ठ तथा जरूरत पड़ने पर हिंदुओं के पराक्रमी शौर्यवान लड़ाकू योद्धा भी बन जाते हैं, हम सिर्फ सफाई कर्मचारी ही बनाते आ रहे हैं?

रामभक्त हिंदू नेता, साधु-संन्यासी, अफसर, उद्योगपति-इस बारे में क्या कभी सोचते हैं? उद्योगपति सिर्फ अमीर लोगों के बच्चों के लिए विद्यालय खोलते हैं। क्या उन्होंने इन रामभक्त हिंदूओं के लिए श्रेष्ठ विद्यालय खोले तथा अपने संस्थानों में रामभक्त वाल्मीकि समाज की नई पीढ़ी को आगे बढ़ाया? क्या रामभक्त वाल्मीकि समाज को समानता, प्रतिष्ठा, नया भविष्य देना मंदिर बनाने, मूर्ति बनाने जैसा ही महत्वपूर्ण और सच्ची राम-आराधना नहीं?

यद्यपि यह सत्य है कि तमाम अवरोधों और वर्जनाओं को तोड़ते हुए अनेक वाल्मीकि युवक-युवतियां शिक्षा, स्वास्थ्य और व्यापार में आगे बढ़े हैं, पर उन्हें हर कदम पर बहुत संघर्ष करना पड़ा। देहरादून में 750 से ज्यादा अस्थाई सफाई कर्मचारी (सभी वाल्मीकि) सिर्फ 5,500 रुपये मासिक वेतन में बढ़ोतरी कराने के लिए महीनों लड़े। तब आठ घंटे की कमर तोड़ नौकरी के एवज में इसे बढ़ाकर आठ हजार रुपये मासिक किया गया, पर अब उनके बच्चे एमए, एमबीए, कंप्यूटर इंजीनियर और पत्रकार भी बन रहे हैं। इसे संभव बनाया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन में व्याप्त डॉ. आंबेडकर और अनुसूचित जाति-जनजाति के लिए गहरी संवेदना ने।

मोदी ने प्रधानमंत्री कौशल विकास में मूलत: अनुसूचित जातियों, जनजातियों पर ही केंद्रित ‘स्पेशल प्रोजेक्ट’ बनवाए। धर्मेद्र प्रधान को इसका श्रेय जाता है जिन्होंने बिना विद्वेष, राजनीतिक पसंद-नापसंद दिखाए ऐसे कार्यो में सभी को जोड़ा तथा अनुसूचित जाति-जनजातियों में अधिक वेतन एवं सामाजिक स्तर देने वाले उच्च स्तर के पाठ्यक्रम जैसे हाई एंड कंप्यूटर प्रशिक्षण, कैरेक्टर डिजाइनिंग, रोटो आर्टिस्ट, सेल्स एग्जीक्यूटिव आदि जोड़े। हमने देहरादून में कई महीनों की मशक्कत के बाद वाल्मीकि समुदाय और अन्य अनुसूचित जातियों के लिए उच्च स्तरीय प्रशिक्षण देने का स्वाभाविक प्रचार किया तो बड़े-बूढ़े वाल्मीकि बुजुर्ग रो पड़े। एक ने पूछा ‘साहण, हमको बताओ हमारे बच्चों के हाथों से झाड़ कब छूटेगी? जो भी नेता आता है वह यही कहता है-चिंता मत करो, आपकी तनख्वाह बढ़ा देंगे। कोई यह नहीं कहता बस करो, तुम्हारी पीढ़ियों ने बहुत मैला ढोया, अब कंप्यूटर पकड़ो। सिर्फ मोदी ऐसे नेता हुए जो हमें कंप्यूटर पकड़ा रहे हैं।’

इन शब्दों के भीतर छिपी वेदना समझ कर ही हम रामभक्त वाल्मीकि समाज के विकास की रचना कर सकते हैं। वाल्मीकि समाज के जीवन में टेक्नोलॉजी के माध्यम से आ रहा बदलाव अर्थात टेक्नोलॉजी द्वारा तीन लाख से ज्यादा अनुसूचित जाति, वाल्मीकि समाज के युवाओं का जीवन बदलना न केवल मोदी सरकार की एक सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि है, बल्कि यह विराट परिवर्तन राम मंदिर निर्माण जैसा ही पावन कार्य है जो श्रीराम को अर्पित हमारी अन्यतम पूजा है।

(लेखक राज्यसभा के पूर्व सदस्य हैं)