नई दिल्ली, [जागरण स्पेशल]। रामजन्म स्थल को लेकर इधर कुछ दिनों से केंद्रीय सत्तारूढ़ नेताओं द्वारा जिस प्रकार के बयान दिए जा रहे हैं, उससे निश्चित रूप से यह समस्या और अधिक उलझ जाएगी। यह दुर्भाग्य की बात है कि यह सुनने में आया है कि राष्ट्रपति तक ने कहा है कि उस स्थान पर पुन: मस्जिद बना दी जानी चाहिए। यदि देश को इसी तरह से चलाना है, तो इतनी बात भी निश्चित मान ली जानी चाहिए र्कि हिंदुओं और मुसलमानों के बीच वास्तविक सद्भाव की स्थिति कभी उत्पन्न होने वाली नहीं है। यह खाई और बढ़ेगी। रामजन्म स्थल पर मस्जिद बने और वह भी वर्तमान सरकार द्वारा बनावाई जाए इसका कोई औचित्य नहीं।

अयोध्या में कौन सा स्थान रामजन्म स्थल है, यह बात न्यायपालिका नहीं तय कर सकती। यह हिंदुओं के लिए आस्था और विश्वास का प्रश्न है। हां, इस बात पर सर्वोच्च न्यायालय के माध्यम से निर्णय प्राप्त किया जा सकता है कि मीर बकी ने कभी किसी मंदिर को तोड़कर वहां मस्जिद बनवाई थी या नहीं? विश्व में हिंदू ही ऐसे अभागे हैं, जो यदि यह कह सकते हैं कि वे हिंदू हैं, तो लोग उन्हें सांप्रदायिक मानने लगते हैं। ऐसी हीन भावना अन्य किसी धर्मावलंबी में देखने को नहीं मिलती। इस हीन भावना से अब हिंदू धीरे-धीरे बाहर निकल रहा है और यह उचित भी है।

समझ नहीं आया कि आया कि भारत सरकार विश्व के समक्ष यह बात क्यों नहीं कह पाती कि अयोध्या में रामजन्म स्थल पर जो विवादित ढांचा था, वह पचास वर्षों से भी अधिक समय से मंदिर है और उस स्थल में सौ वर्षों से भी अधिक समय से पूजा अर्चना कीर्तन होता चला आया है और इसीलिए बहुत लंबे अरसे से वहां नमाज भी नहीं पढ़ी गई। जिस ढांचे को ‘बाबरी मस्जिद’ कहां जा रहा था, वह अगर बाबरी मस्जिद थी, तो वहां नियमित रूप से नमाज क्यों नहीं पढ़ी गई? मुसलमानों के लिए तो वह एक परित्यक्त स्थल था। हिंदुओं के लिए वह रामजन्म स्थल है, अत: मुसलमानों द्वार परित्यक्त होने के बाद भी हिंदुओं ने अपना धार्मिक अनुष्ठान जारी रखा, भजन कीर्तन करते रहे और बाद में लगभग पचास वर्ष पहले वहां रामलला की मूर्ति स्थापित करदी गई। 

क्या जो स्थल पचास वर्षों से मंदिर के रूप में प्रयुक्त हो रहा है, उस स्थान को लेकर यह कहना कि वहां ‘मस्जिद’ को ढहा दिया गया, अनुचित नहीं है। हां, एक ऐसे विवादित ढांचे को ढहाया गया, जिसके अंदर रामलला की मूर्ति थी। एक बात यह भी समझ लेने की आवश्यकता है कि इस समय विश्व की राजनीति और कूटनीति इस्लाम और गैर-इस्लाम के बीच विभाजित हो चुकी है।

अगर अयोध्या में रामजन्म स्थल पर कोई ढांचा बनवाने की बात आएगी भी तो भारत सरकार को उस ढांचे को विवादित ही कहना होगा और उस विवादित ढांचे के अंदर उसे रामलला की मूर्ति ही स्थापित करनी होंगी। यह नहीं हो सकता कि अब रामजन्म स्थल पर रामलला की मूर्ति स्थापित न हो। भारत सरकार उन्हें हटवा नहीं सकती। यदि ऐसी कोई चेष्टा की जाती है, तो वह कांग्रेस के लिए अभिशाप सिद्ध होगी और कम से कम बहुसंख्यक समाज की दृष्टि में तो कांग्रेस का अंत ही हो जाएगा। इतना बड़ा राजनीतिक खतरा कांग्रेस उठाए, इसकी कहीं कोई आवश्यकता नहीं है।

खाड़ी के देश क्या सोचते हैं, क्या नहीं- यह एक अलग प्रश्न है। मुख्य बात यह है कि इस देश का बहुसंख्यक समाज क्या सोच रहा है। यह तो अपने आपको धोखा देने की बात है कि बहुसंख्यक समाज इस बात का पक्षधर है कि रामजन्म स्थल पर पुन: मस्जिद बना दी जाए। रामजन्म स्थल पर पुन: मस्जिद बना देने से किसी प्रकार की कोई भी समस्या हल नहीं होगी, बल्कि समस्या जितनी उलझी हुई है उससे कहीं अधिक उलझ जाएगी और फिर एक बात और है कि अगर मस्जिद बना भी दी गई तो क्या उसे भारत सरकार बाबरी मस्जिद कहेगी? क्या भारत सरकार को हर वह काम करना होगा, जो बाबर ने किए थे और इसीलिए करने होंगे, क्योंकि ऐसा करने से पाकिस्तान खुश हो जाएगा या अन्य मुस्लिम देश खुश हो जाएंगे।

(14 दिसंबर, 1992 को प्रकाशित संपादकीय)