नई दिल्ली [ मदनलाल ]। गेंद से छेड़छाड़ यानी बॉल टेंपरिंग कोई आज का चलन नहीं है। यह काम न जाने कब से होता चला आ रहा है और कई देशों के तेज गेंदबाज गेंद को रिवर्स स्विंग कराने के लिए किसी न किसी अनुचित तरीके से गेंद से छेड़छाड़ करते आ रहे हैं। मुझे याद है कि जब मैं पाकिस्तान दौरे में कराची में खेल रहा था तो मैंने पाया कि जो गेंद शुरुआती ओवरों में रिवर्स स्विंग नहीं कर रही थी वह 15-20 ओवरों बाद अचानक स्विंग करने लगी। जाहिर है कि यकायक ऐसा इसलिए होने लगा था कि तब तक गेंदबाज और साथ ही पाकिस्तान के अन्य खिलाड़ी गेंद की एक साइड को किसी न किसी तरीके से रगड़कर उसे एक तरफ खुरदुरा कर चुके थे। मुझे यह भी याद है कि गेंद को रिवर्स स्विंग कराने के इरादे से कई बार पाकिस्तानी टीम नई गेंद लेने से भी बचती थी।

बॉल टेंर्पंरग में गेंदबाज के अलावा साथी खिलाड़ी भी शामिल होते हैं। दरअसल यह एक गेम प्लान की तरह होता है। बॉल टेंर्पंरग के कई तरीके हैं। इसमें उसे खास तरह से रगड़ना, खुरचना और पटकना भी शामिल होता है। यह काम करने वाले खिलाड़ी इसमें माहिर हो जाते हैं। उन्हें पता होता है कि कब क्या और कैसे करना है? वे गेंद को खुरचने और रगड़ने के साथ उस पर नाखून का भी इस्तेमाल करते हैं। बॉल टेंर्पंरग तभी तक स्वीकार्य है जब तक गेंद की एक साइड की चमक बरकरार रखते हुए उसकी दूसरी साइड किसी बाहरी चीज की मदद से खुरदरी न की जाए।

रिवर्स स्विंग एक कौशल है, लेकिन तभी तक जब तक गेंद से बेजा तरीके से छेड़छाड़ न की जाए। केपटाउन टेस्ट में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ बेनक्राफ्ट ने जो किया वह खेल भावना के खिलाफ भी था और खेल से खिलवाड़ भी। यह कहना कि बेनक्राफ्ट नया खिलाड़ी था और कैप्टन स्टीव स्मिथ और अन्य सीनियर खिलाड़ियों ने उसे बलि का बकरा बना दिया, सही नहीं। वह चाहता तो सैंड पेपर की मदद से बॉल टेंर्पंरग करने से मना कर सकता था। उसे अच्छे से पता होगा कि वह जो कर रहा है वह गलत है और ऐसा काम खेल के दायरे में नहीं आता।

यही बात कैप्टन स्टीव स्मिथ और वाइस कैप्टन डेविड वार्नर पर भी लागू होती है। बॉल टेंर्पंरग के जुर्म में बेनक्राफ्ट के साथ स्मिथ और वार्नर ने पाबंदी का दंड भुगतने के बाद माफी मांग ली, लेकिन क्या उन्हें और खासकर स्मिथ और वार्नर को यह पता नहीं था कि वे जो कर रहे हैं वह संगीन अपराध है? मुझे संदेह है कि इन सबने पहले भी बॉल टेंर्पंरग की होगी। चूंकि वे पकड़े नहीं गए इसलिए उनकी हिम्मत बढ़ गई। पता नहीं क्यों वे यह भूल गए कि आजकल खिलाड़ियों की हर हरकत तमाम कैमरों की निगाह में होती है?

ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटरों को हम इस निगाह से देखते रहे हैं कि वे पेशेवर तरीके से खेलते हैं और उनसे मुकाबला हमेशा मुश्किल होता है, लेकिन बॉल टेंर्पंरग का कांड करके उन्होंने अपनी टीम के साथ अपने देश को भी नीचा दिखाया। उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट पर एक काला धब्बा लगा दिया जो आसानी से मिटने वाला नहीं है। क्रिकेट को शर्मिंदा करने वाले इस मामले में एक अच्छी बात यह है कि ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट बोर्ड के साथ वहां की सरकार ने भी सख्ती दिखाई। आमतौर पर जब ऐसा कुछ होता है तो क्रिकेट बोर्ड और संबंधित देश की सरकारें अपने खिलाड़ियों के बचाव में खड़ी हो जाती हैं। इस पर गौर करें कि न तो ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट बोर्ड ने ऐसा किया और न ही वहां की सरकार ने।

ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री ने आगे आकर अपने खिलाड़ियों को आडे़ हाथों लिया। उन्होंने तो स्लेजिंग यानी छींटाकशी से भी बाज आने की सलाह दी। बॉल टेंर्पंरग कांड सामने आने के साथ ही यह तय हो गया था कि ऑस्टे्रलियाई क्रिकेट बोर्ड सख्त फैसला लेगा, क्योंकि आईसीसी ने अपने नियमों के हिसाब से जो सजा सुनाई थी वह मामूली थी। अच्छा हो कि आईसीसी यह देखे कि संगीन मामलों और खासकर गेंद की गलत तरीके से शक्ल बिगाड़ने के दोषी खिलाडियों को सख्त सजा के प्रावधान बनें। अगर हम इतिहास में जाएं तो यह पाएंगे कि ऑस्टेलियाई क्रिकेट बोर्ड की यह अच्छी बात है कि वह अपने खिलाड़ियों की गलत हरकत बर्दाश्त नहीं करता। ऑस्टेलियाई क्रिकेट बोर्ड ने जो सख्ती दिखाई वह वक्त की मांग और जरूरत भी थी।

नि:संदेह स्मिथ और वार्नर पर एक साल की पाबंदी सख्त सजा है। मुझे चार-पांच मैच की पाबंदी की ही उम्मीद थी, लेकिन शायद ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट बोर्ड ने अपने खिलाड़ियों को ज्यादा कठोर दंड इसलिए दिया, क्योंकि वह एक उदाहरण पेश करना चाहता था। ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट बोर्ड ने बॉल टेंर्पंरग के दोषी खिलाड़ियों को उम्मीद से ज्यादा सख्त सजा देकर अपने क्रिकेटरों के साथ दुनिया भर की क्रिकेट बिरादरी को भी एक संदेश दिया है और वह यही है कि अगर खिलाड़ी गलती करें तो उनका बचाव करने या उन्हें मामूली सजा देने के बजाय उनके साथ सख्ती से पेश आया जाना चाहिए। इस संदेश को अन्य देशों की क्रिकेट संस्थाओं को भी ग्रहण करना चाहिए। ऑस्टे्रलियाई क्रिकेट बोर्ड के सख्त फैसले के बाद आइपीएल के लिए यह जरूरी हो गया था कि वह बॉल टेंर्पंरग के दोषी खिलाड़ियों के प्रति किसी तरह की नरमी न बरते।

दरअसल यह एक ऐसा मामला था जिसमें मिसाल पेश करने की जरूरत थी ताकि आने वाली पीढ़ियों को सही संदेश जाए कि खेल में छल-कपट के लिए कोई स्थान नहीं हो सकता। मेरे लिए यह सोचना कठिन है कि टेलर, स्टीव वॉ जैसे क्रिकेटरों के देश के क्रिकेटर वैसा कुछ कर सकते हैं जैसा स्मिथ, वार्नर और बेनक्राफ्ट ने किया। अब यह जरूरी हो जाता है कि बॉल टेंर्पंरग की ऐसी हरकतें रोकने के लिए अंपायर और मैच रेफरी और ज्यादा सतर्क रहें। बेहतर होगा कि अंपायर हर 8-10 ओवर के बाद यह चेक करें कि कहीं गेंद से अनुचित तौर-तरीकों से छेड़छाड़ तो नहीं की गई है। अंपायरों की सख्ती से ही ऐसे कांड रुकेंगे। जरूरी हो तो अंपायरों और मैच रेफरी को और अधिक अधिकारों से लैस किया जाए।

क्रिकेट को दो ही चीजों से खतरा है- मैच फिक्सिंग या फिर अनुचित तरीके से की जाने वाली बॉल टेंर्पंरग। माना कि आज के प्रतिस्पर्धी और कॉमर्शियल जमाने में हर कोई जीतना चाहता है, लेकिन खूब पैसे वाला क्रिकेट हो या अन्य कोई खेल, हर खेल के अपने नियम होते हैं और उन्हें नियमों के तहत ही खेला जाना चाहिए, अन्यथा लोग उनमें दिलचस्पी लेना बंद कर देंगे और खेल भ्रष्टाचार का जरिया बन जाएंगे।

( लेखक भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व सदस्य हैं)