[तसलीमा नसरीन]। अगर अमेरिका में रह रहे जाने-माने लेखक सलमान रुश्दी (Salman Rushdi) पर जानलेवा हमला किया जा सकता है तो इस्लाम की आलोचना करने वाले किसी भी व्यक्ति पर हमला किया जा सकता है। मैंने कभी नहीं सोचा था कि ऐसा भी होगा। वह पश्चिम में रह रहे थे और 1989 से उनको सुरक्षा मिली हुई थी। अगर अन्य उपासना पद्धतियों की आलोचना हो सकती है तो इस्लाम की क्यों नहीं? इस्लाम को अपनी अवैज्ञानिक और अतार्किक बातों पर गौर करना होगा। जब तक इस्लाम में सुधार नहीं होता, तब तक वह सिलसिला कायम रहेगा जो सलमान रुश्दी पर हमले के रूप में नए सिरे से सामने आया। इस्लाम के आलोचकों की हत्या सातवीं सदी में ही शुरू हो गई थी। 21वीं सदी में भी ऐसा हो रहा है।

मैं सभी की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में यकीन करती हूं। यहां तक कि अपने घोर शत्रु की भी। मैं सबके लिए लड़ती हूं। धार्मिक भावनाएं आहत होने के नाम पर भारतीय उपमहाद्वीप में उपद्रव होते रहते हैं। आगजनी, तोडफ़ोड़, फतवा, हत्या कुछ भी नहीं थम रहा। भावनाओं को ठेस पहुंचने का हवाला देकर कट्टरपंथी अपने मजहब के समालोचकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता छीन लेना चाहते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं, वे उनके अस्तित्व को भी मिटाना चाहते हैं।

अजमेर शरीफ के खादिम सलमान चिश्ती ने एक वीडियो पोस्ट कर कहा था कि जो नुपुर शर्मा (Nupur Sharma) का सिर काटकर लाएगा, उसे मैं अपना घर इनाम में दूंगा। इसके पहले मोहम्मद रियाज और गौस मोहम्मद ने धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के नाम पर उदयपुर के कन्हैयालाल की हत्या कर दी थी। कन्हैया के हत्यारे इतने उत्साहित थे कि उन्होंने गला काटने वाले चाकू को हवा में नचाते हुए उसका वीडियो अपलोड किया। धार्मिक भावनाओं को ठेस लगने का हवाला देकर ऐसा कोई अवैध और असंवैधानिक काम नहीं है, जो उन्मादी तत्व नहीं करते।

बांग्लादेश में तो प्राय: ही तर्कवादियों और मुक्त विचारधारा वालों पर कट्टरपंथी और सरकार, दोनों ही टूट पड़ते हैं। जान के डर से विद्वजन चुप हो जाते हैं। बांग्लादेश में हिंदुओं को संकट में डालने के लिए मुसलमान ही हिंदुओं के पूजा मंडप में कुरान रखकर आते हैं। देश से हिंदुओं को भगाना ही उनका मकसद है। इस जिहाद के लिए जिस चीज की जरूरत है, वह है धार्मिक भावनाओं को आघात पहुंचाने की अफवाह फैलाना। मैंने जब इस्लामी प्रथाओं के बारे में कुछ अप्रिय, किंतु सत्य बातें कही थीं, तब भी उन्मादियों ने बवाल मचाया था।

ज्यादातर उन्मादियों को मालूम ही नहीं था कि मैंने क्या लिखा था? उत्पात मचाने से पहले वे यह जानना जरूरी नहीं समझते कि किसने क्या कहा है? जो कहा है, उसके साथ सच्चाई का कोई संबंध है या नहीं? वे यह जानने की भी जरूरत नहीं समझते कि सच्चाई क्या है? उन्मादियों के कानों में अगर कोई यह खबर पहुंचा देता है कि उनके मजहब या धर्मगुरु को लेकर किसी ने कुछ कहा है, वैसे ही वे सड़कों पर उतर पड़ते हैं। कोई भी सवाल नहीं कर सकता, आलोचना नहीं कर सकता, अनुसंधान नहीं कर सकता, यहां तक कि कोई सच भी नहीं बोल सकता। अब तो ऐतिहासिक सत्य बोलने पर भी मनाही है। धार्मिक पुस्तकों में क्या लिखा है, यह बताना भी मना है।

अभी तक कट्टर मुसलमान ही धार्मिक भावनाओं को आघात पहुंचाने का आरोप लगाकर हिंसा करते आ रहे थे, लेकिन अब हिंदू भी धार्मिक भावनाओं को आघात पहुंचाने का आरोप लगा कर आपत्ति जताने लगे हैं। आदिकाल से मनुष्यों के एक वर्ग ने भगवान को माना है, दूसरे ने भगवान को नहीं माना है अथवा सभी भगवानों की समालोचना की है। इसे लेकर किसी हिंदू ने आपत्ति नहीं की, असंतोष भी नहीं जताया, लेकिन आजकल आपत्ति, आरोप और असंतोष का अंत नहीं है। लगता है हिंदू यह सब कट्टर मुसलमानों से सीख रहे हैं। सवाल है कि जिस चीज से आप खुद नफरत करते हैं, उसे क्यों ग्रहण कर रहे हैं?

मैंने लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाई, यह आरोप लगाकर मुझे देश से निकाल दिया गया। धार्मिक भावनाओं को ठेस लगने का आरोप लगाकर कट्टरपंथी क्या-क्या कांड कर सकते हैं, यह सिर्फ बांग्लादेश, पाकिस्तान और भारत के ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लोग अच्छी तरह से जानते हैं। सलमान रुश्दी पर हमले के बाद वे और अच्छे से जान जाएंगे।

हकीकत यह है कि भावनाओं पर आघात किए बिना समाज को बदला नहीं जा सकता। इसके अलावा और कोई उपाय नहीं है। समाज को एक जगह पर खड़ा रखने से काम नहीं चलेगा। जो लोग समाज को जैसा है, वैसा ही रखना चाहते हैं, वे हर तरीके से उसके आगे बढऩे में बाधा डालते हैं।

यदि कोई कहता है कि वह अपनी भावनाओं को किसी तरह से ठेस लगते नहीं देखना चाहता तो निश्चित तौर पर उसे वास्तविकता का बोध नहीं है। हमें ऐसा कोई इंसान नहीं मिलेगा, जिसकी किसी भी भावना को आज तक ठेस न पहुंची हो। लोगों के भिन्न-भिन्न मत हैं। हमारी भावनाओं को ठेस लगती रहती है। हम लोग इसी तरह जिंदगी जीते हैं। अगर लोकतंत्र का अस्तित्व कायम रखना है तो मत प्रकट करने की स्वतंत्रता का अस्तित्व रहना जरूरी है। धार्मिक भावनाओं के नाम पर राजनीति अब भयावह रूप धारण कर रही है।

दुनिया में कहीं भी नारी विरोधियों की भावनाओं पर आघात किए बिना नारी को अधिकार नहीं मिला है। कहीं भी मानव अधिकार विरोधी लोगों की भावनाओं पर आघात दिए बिना मानव अधिकार नहीं मिले हैं। कहीं भी लोकतंत्र विरोधी लोगों की भावनाओं पर आघात किए बिना लोकतंत्र की प्रतिष्ठा नहीं हुई है। दुनिया में कहीं भी धर्मांध लोगों की भावनाओं पर आघात किए बिना विज्ञान की प्रतिष्ठा नहीं हुई है।

(लेखिका जानी-मानी साहित्यकार हैं)