[राज्यवर्धन राठौड़]। आज भारत स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरा करने जा रहा है। मोदी सरकार इस गौरव को जन-जन और गांव-गांव में पहुंचाने के लिए एक वर्ष से आजादी का अमृत महोत्सव के रूप में कार्यक्रमों की चला रही है। जनभागीदारी की भावना वाला यह जन-उत्सव कई अर्थों में जनभावना और दायित्वबोध को उभार देने वाला है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने कहा है कि आजादी अमृत महोत्सव का अर्थ स्वतंत्रता की ऊर्जा का अमृत है, यह स्वतंत्रता संग्राम के योद्धाओं की प्रेरणाओं का अमृत; नए विचारों और संकल्पों का अमृत और आत्मनिर्भरता का अमृत है। विगत आठ वर्षों में आत्मनिर्भरता का यह अमृत किस प्रकार ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सबल बना रही है, यह खादी व ग्रामोद्योग को लेकर मोदी सरकार के प्रयासों की सफलता की चामत्कारिक गाथा में दिख रहा है।

यद्यपि, जिस वस्त्र निर्माण की हस्त कला का सबसे पहला उल्लेख ऋग्वेद में आंतु और तंतु के रूप में मिलता है, जिस कताई व बुनाई को वैदिक काल में एक यज्ञ माना जाता था और जो प्राचीन काल से लेकर आधुनिक भारत में खादी व ग्रामोद्योग के रूप में ग्रामीण अर्थव्यवस्था का आधार था; वह पिछले कुछ दशकों से पूर्ववर्ती सरकारों की उपेक्षा और गलत नीतियों के कारण संकट से गुजर रहा था। वह तो धन्य हैं हमारे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री मोदी जी जिन्होंने खादी को ना सिर्फ पुनर्जीवित किया, अपितु अंतराष्ट्रीय ब्रांड बना दिया। मोदी सरकार ने रोजगार युक्त गांव योजना आरंभ कर प्रति गांव 72 लाख रुपए की पूंजी निवेश सब्सिडी और व्यापारिक साझेदार से प्राप्त कार्यशील पूंजी में 1.64 करोड़ रुपए की सीमा से ग्रामीण जनता को उसके गांव में ही रोजगार उपलब्ध कराना आरंभ किया, साथ ही खादी और ग्रामोद्योग की आठ अलग-अलग योजनाओं को अम्ब्रेला योजनाओं ‘खादी विकास योजना’ तथा ‘ग्रामोद्योग विकास योजना’ में विलय कर दिया।

इन प्रयासों का सुखद परिणाम यह है कि यह ग्रामीण स्वावलंबन और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार का बड़ा साधन बनता जा रहा है। 2021-22 में खादी का टर्नओवर एक लाख करोड़ के आंकड़े को पार कर गया है। प्रधानमंत्री मोदी जी ने ‘खादी फार नेशन, खादी फार फैशन’ नारा देकर इसे देश-विदेश में इतना लोकप्रिय बना दिया है कि 17 से अधिक देशों में खादी ब्रांड के तौर पर लोकप्रिय हो चुका है और इन देशों में खादी की बिक्री हो रही है। सही नीति और सबका प्रयास हो तो कैसे बड़ा बदलाव आता है, इसका एक बड़ा उदाहरण आज खादी व ग्रामोद्योग का विकास और विस्तार में दिखता है।

अप्रैल से जून 2021 के बीच देश में लाकडाउन था, इसके बावजूद खादी का टर्नओवर नई ऊंचाइयों को छूने वाला रहा। मोदी सरकार आने के एक वर्ष के भीतर 2014-15 में नई खादी इकाइयों की संख्या में 114 प्रतिशत की वृद्धि हुई, खादी उद्योग से जुड़े कामगारों को मार्जिन धन वितरण में 165 प्रतिशत की वृद्धि हुई, खादी क्षेत्र में रोजगार सृजन में 131 प्रतिशत की वृद्धि हुई। खादी व ग्रामोद्योग क्षेत्र में रोजगार सृजन में 39 प्रतिशत की दर से हो वृद्धि रही है। मोदी जी ने खादी फार ट्रांसफार्मेशन का नारा देकर जिस प्रकार इसे नया स्वरूप दिया है, उससे 2014 से 2022 के बीच देश में खादी परियोजनाओं की 4,63,364 नई इकाइयां बनी हैं। चालीस लाख से अधिक नए रोजगार सृजित हुए हैं, साथ ही इसकी व्यापार वृद्धि 5052 करोड़ रुपये हो गई है।

मोदी सरकार ने खादी ग्रामोद्योग को पुनर्जीवित कर भारत के ग्रामीण क्षेत्र के लगभग डेढ़ करोड़ महिलाओं और पुरुषों को स्थाई प्रकृति का रोजगार उपलब्ध कराने की दिशा में काम कर रही है, जिससे ग्रामीण क्षेत्र के गरीब आर्थिक स्वावलंबन की ओर बढ़ रहे हैं और ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी सुदृढ़ हो रही है।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने के मोदी सरकार के प्रयास पूरे समाज को सशक्त करने, सबको विकास के लाभ का भागीदार बनाने, सबको आगे बढ़ाने की मंशा से किए जा रहे हैं। अब भारत की खादी लोकल से ग्लोबल हो रही है। नए भारत के इस आत्मविश्वास और पुरुषार्थ को देखकर हम सबका विश्वास और बढ़ जाता है कि आने वाला समय भारत का है, भारत के गांव के विकास का है, ग्रामीण जनसंख्या की उत्पादकता का है, गांवों और नगरों के युवाओं के सपनों और देश की आकांक्षाओं को पूरा करने के अवसरों का है, भारत की 135 करोड़ जनता की प्रगति और कल्याण का है, विश्व में शक्तिशाली भारत के उदय और नेतृत्व का है। हमें मिलकर इस विश्वास के साथ, इसी ऊर्जा के साथ, संकल्पित भाव से आगे बढ़ते जाना चाहिए।

(लेखक भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं)